आज कार में एफ एम ऑन किया तो सुनाई दिया "पहला साल बेमिसाल, दिल्ली सरकार"। आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं रहती हूँ गुजरात में। आज तक मैंने केंद्र सरकार के भी सिर्फ जनहित से संबन्धित प्रचार ही सुने हैं - सफाई, शिक्षा, कन्या शिक्षा आदि से संबन्धित, और सुने हैं मध्य प्रदेश के टूरिस्म से संबन्धित प्रचार। थोड़ा बहुत सोशल मीडिया पर नज़र घुमाई तो पता चला कि सिर्फ रेडियो ही नहीं, अखबारों में भी दो-दो पेज के विज्ञापन हैं, वो भी बेंगालुरु, चेन्नई तक के अखबारों में।
आश्चर्य के बाद धीरे धीरे क्रोध आने लगा। यह तो जन निधि का सरासर दुरुपयोग है वह भी पूरे भारत में एक पार्टी और एक नेता के प्रचार के लिए। अभी पिछले महीने ऑड ईवन के दौरान भी ऐसे ही सभी टीवी चैनल पर इतने प्रचार चलाये गए। दिल्ली के चौराहों पर मुख्यमंत्री की डमीज लगाई गईं। डमीज तक तो फिर भी ठीक था पर यह जो सारे देश में टीवी पर प्रचार किया गया वह कहाँ तक सही था? ऐसे प्रचारों का औचित्य क्या है?
मन में सवाल यह उठता है कि जनता का पैसा एक पार्टी के चुनावी प्रचार के लिए ऐसे इस्तेमाल करना कहाँ तक जायज़ है? ज्यादा दुखदायी बात यह है कि यह एक ऐसी पार्टी और नेता कर रहे हैं जिन्हें जनता ने सब से अलग समझा था। इस पार्टी की नीतियाँ, चुनाव मैनीफेस्टो जो बताए गए थे और असलियत में जो वह कर रहे हैं उनका दूर दूर कोई नाता नज़र नहीं आता। अब तक जमीनी तौर पर क्या काम हुआ यह तो दिल्ली की जनता ही ठीक ठीक बता सकती है। जितना मैंने देखा और समझा है यह सरकार शुरू से ही अपने पद और सरकारी मशीनरी का बुरी तरह से दुरुपयोग करती आ रही है।
कुछ तो उम्मीद जगी थी कि एक अलग तरह की राजनीति का प्रादुर्भाव भारत में हो रहा है। अलग तरह की राजनीति की शुरुआत तो हो गयी, परंतु खेद कि बात है कि उम्मीद से बिलकुल परे।