shabd-logo

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार

15 फरवरी 2016

528 बार देखा गया 528
featured image

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार

पथ ही मुड़ गया था।


गति मिली मैं चल पड़ा

पथ पर कहीं रुकना मना था,

राह अनदेखी, अजाना देश

संगी अनसुना था।

चांद सूरज की तरह चलता

न जाना रात दिन है,

किस तरह हम तुम गए मिल

आज भी कहना कठिन है,

तन न आया मांगने अभिसार

मन ही जुड़ गया था।


देख मेरे पंख चल, गतिमय

लता भी लहलहाई

पत्र आँचल में छिपाए मुख

कली भी मुस्कुराई।

एक क्षण को थम गए डैने

समझ विश्राम का पल

पर प्रबल संघर्ष बनकर

आ गई आंधी सदलबल।

डाल झूमी, पर न टूटी

किंतु पंछी उड़ गया था।

-शिवमंगल सिंह 'सुमन'

10
रचनाएँ
kavya
0.0
इस आयाम के अंतर्गत आप कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविताएँ पढ़ सकते हैं I
1

चलना हमारा काम है

15 फरवरी 2016
0
1
0

गति प्रबल पैरों में भरी फिर क्यों रहूं दर दर खड़ा  जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पड़ा  जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है। कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गया अच्छा हुआ, तुम मिल गई कुछ रास्ता ही कट गया क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है, चलना हमारा काम

2

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार

15 फरवरी 2016
0
0
0

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वारपथ ही मुड़ गया था।गति मिली मैं चल पड़ापथ पर कहीं रुकना मना था,राह अनदेखी, अजाना देशसंगी अनसुना था।चांद सूरज की तरह चलतान जाना रात दिन है,किस तरह हम तुम गए मिलआज भी कहना कठिन है,तन न आया मांगने अभिसारमन ही जुड़ गया था।देख मेरे पंख चल, गतिमयलता भी लहलहाईपत्र आँचल में छिपाए म

3

असमंजस

15 फरवरी 2016
0
0
0

जीवन में कितना सूनापनपथ निर्जन है, एकाकी है,उर में मिटने का आयोजनसामने प्रलय की झाँकी हैवाणी में है विषाद के कणप्राणों में कुछ कौतूहल हैस्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पनपग अस्थिर है, मन चंचल हैयौवन में मधुर उमंगें हैंकुछ बचपन है, नादानी हैमेरे रसहीन कपालो परकुछ-कुछ पीडा का पानी हैआंखों में अमर-प्रतीक्षा

4

वरदान माँगूँगा नहीं

17 फरवरी 2016
0
0
0

यह हार एक विराम हैजीवन महासंग्राम हैतिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।वरदान माँगूँगा नहीं।।स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिएअपने खंडहरों के लिएयह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।वरदान माँगूँगा नहीं।।क्‍या हार में क्‍या जीत मेंकिंचित नहीं भयभीत मैंसंधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी स

5

पर आंखें नहीं भरीं

17 फरवरी 2016
0
0
0

कितनी बार तुम्हें देखा पर आंखें नहीं भरींसीमित उर में चिर असीम सौन्दर्य समा न सकाबीन मुग्ध बेसुथ कुरंगमन रोके नहीं रूकायों तो कई बार पी पी कर जी भर गया छकाएक बूंद थी किन्तु कि जिसकी तृष्णा नहीं मरीकितनी बार तुम्हें देखा पर आंखें नहीं भरींकई बार दुर्बल मन पिछलीकथा भूल बैठाहर पुरानी, विजय समझ करइतराया

6

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

17 फरवरी 2016
0
0
0

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला हैलहरों का यौवन मचला हैआज हृदय में और सिन्धु मेंसाथ उठा है ज्वारतूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलोइस अंधड में साहस तोलोकभी-कभी मिलता जीवन मेंतूफानों का प्यारतूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार यह असीम, निज सी

7

सूनी साँझ

17 फरवरी 2016
0
0
0

बहुत दिनों में आज मिली हैसाँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।पेड़ खड़े फैलाए बाँहेंलौट रहे घर को चरवाहेयह गोधुली, साथ नहीं हो तुम,बहुत दिनों में आज मिली हैसाँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।कुलबुल कुलबुल नीड़-नीड़ मेंचहचह चहचह मीड़-मीड़ मेंधुन अलबेली, साथ नहीं हो तुम,बहुत दिनों में आज मिली हैसाँझ अकेली, साथ नहीं हो

8

मृत्तिका दीप

17 फरवरी 2016
0
0
0

मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेषएक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष।हाय जी भर देख लेने दो मुझेमत आँख मीचोऔर उकसाते रहो बातीन अपने हाथ खींचोप्रात जीवन का दिखा दोफिर मुझे चाहे बुझा दोयों अंधेरे में न छीनो-हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष।तोड़ते हो क्यों भलाजर्जर रूई का जीर्ण धागाभूल कर भी तो कभीम

9

बात की बात

17 फरवरी 2016
0
1
0

इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैंजब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं।तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता हैकुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूँयों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूँकवि की अपनी सीमाऍं

10

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के

17 फरवरी 2016
0
1
0

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाएँगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए