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मेरा नया बचपन

16 फरवरी 2016

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बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।

गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥


चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।

कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?


ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?

बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥


किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।

किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥


रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।

बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥


मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।

झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥


दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे।

धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे॥


वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई।

लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई॥


लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमँग रँगीली थी।

तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी॥


दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी।

मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी॥


मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने।

अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने॥


सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी हैं।

प्यारी, प्रीतम की रँग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं॥


माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है।

आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहनेवाला है॥


किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।

चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना॥


आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति।

व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति॥


वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।

क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?


मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।

नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी॥


'माँ ओ' कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आयी थी।

कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लायी थी॥


पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा।

मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा॥


मैंने पूछा 'यह क्या लायी?' बोल उठी वह 'माँ, काओ'।

हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा - 'तुम्हीं खाओ'॥


पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।

उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया॥


मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ।

मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ॥


जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया।

भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया॥

-सुभद्राकुमारी चौहान

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मेरा नया बचपन

16 फरवरी 2016
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ठुकरा दो या प्यार करो

16 फरवरी 2016
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देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झ

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यह कदम्ब का पेड़

16 फरवरी 2016
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यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता। अम

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तुम

17 फरवरी 2016
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जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो, है जीवन में जीवन।कोई नहीं छीन सकता तुमको मुझसे मेरे धन॥आओ मेरे हृदय-कुंज में निर्भय करो विहार।सदा बंद रखूँगी मैं अपने अंतर का द्वार॥नहीं लांछना की लपटें प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं।पीड़ित करने तुम्हें वेदनाएं न वहाँ आएँगीं॥अपने उच्छ्वासों से मिश्रित कर आँसू की बूँद।शीतल

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मेरा गीत

17 फरवरी 2016
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जब अंतस्तल रोता है, कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?इन टूटे से तारों पर, मैं कौन तराना गाऊँ??सुन लो संगीत सलोने, मेरे हिय की धड़कन में।कितना मधु-मिश्रित रस है, देखो मेरी तड़पन में॥यदि एक बार सुन लोगे, तुम मेरा करुण तराना।हे रसिक! सुनोगे कैसे?फिर और किसी का गाना॥कितना उन्माद भरा है, कितना सुख इस रोने में?उनक

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प्रभु तुम मेरे मन की जानो

17 फरवरी 2016
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मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥इसीलिए इस अंधकार में, मैं छिपती-छिपती आई हूँ।तेरे चरणों में खो जाऊँ, इतना व्याकुल मन लाई हूँ॥तुम दे

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स्मृतियाँ

17 फरवरी 2016
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क्या कहते हो? किसी तरह भी भूलूँ और भुलाने दूँ?गत जीवन को तरल मेघ-सा स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?शान्ति और सुख से ये जीवन के दिन शेष बिताने दूँ?कोई निश्चित मार्ग बनाकर चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?कैसा निश्चित मार्ग? ह्रदय-धन समझ नहीं पाती हूँ मैं वही समझने एक बार फिर क्षमा करो आती हूँ मैं।जहाँ तुम्हारे च

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स्वदेश के प्रति

17 फरवरी 2016
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आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,स्वागत करती हूँ तेरा।तुझे देखकर आज हो रहा,दूना प्रमुदित मन मेरा॥आ, उस बालक के समानजो है गुरुता का अधिकारी।आ, उस युवक-वीर सा जिसकोविपदाएं ही हैं प्यारी॥आ, उस सेवक के समान तूविनय-शील अनुगामी सा।अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र मेंकीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥आशा की सूखी लतिकाएंतुझको पा

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परिचय

17 फरवरी 2016
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क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैं ललित-कलित कविताएं।चाहो तो चित्रित कर दूँ जीवन की करुण कथाएं॥सूना कवि-हृदय पड़ा है, इसमें साहित्य नहीं है।इस लुटे हुए जीवन में, अब तो लालित्य नहीं है॥मेरे प्राणों का सौदा, करती अंतर की ज्वाला।बेसुध-सी करती जाती, क्षण-क्षण वियोग की हाला॥नीरस-सा होता जाता, जाने क्यों मेरा ज

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आराधना

17 फरवरी 2016
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जब मैं आँगन में पहुँची, पूजा का थाल सजाए।शिवजी की तरह दिखे वे, बैठे थे ध्यान लगाए॥जिन चरणों के पूजन को यह हृदय विकल हो जाता।मैं समझ न पाई, वह भी है किसका ध्यान लगाता?मैं सन्मुख ही जा बैठी, कुछ चिंतित सी घबराई।यह किसके आराधक हैं, मन में व्याकुलता छाई॥मैं इन्हें पूजती निशि-दिन, ये किसका ध्यान लगाते?हे

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