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आत्ममुग्ध होने की गुंजाइश नहीं

4 फरवरी 2015

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संयुक्त राष्ट्र की ताजा रपट शायद ही किसी को चौंकाए. यह बताती है कि भारत में अब भी करीब 30 करोड़ लोग भयावह गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं. ऐसे समय में जबकि देश में विकास के नित नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, ये आंकड़े हमें थोडा बहित चिधाएंगे ही. बेशक, हमारे पास मिसाइलें हैं, तकनीक है, कम्प्यूटर हैं, मोबाइल फोन हैं, उद्योग तरक्की कर रहे हैं तो कृषि में भी बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है. फिरभी गरीबी है कि इस देश का पिंड नहीं छोड़ रही है. यह सचमुच दुखद है. रिपोर्ट के मुताबिक यह स्थिति तब है जबकि सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (एमजीडी) के कार्यक्रम अगले साल यानी 2015 में समाप्त होने जा रहे हैं. देश में संयुक्त राष्ट्र के इस कार्यक्रम को वर्ष 2000 में अपनाया गया था, जिसमे गरीबी अनुपात को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित है. इस आठ सूत्री कार्यक्रम में निरक्षरता, लिंग समानता, महिला सशक्तिकरण, शिशु मृत्यु दर में कमी तथा मातृत्व स्वास्थ्य में सुधर जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. देश की जनसँख्या इस समय 125 करोड़ से अधिक हो चुकी है. पीटीआई भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र के एशिया प्रशांत के लिए आर्थिक एवं सामजिक आयोग (ईएससीएपी) के कार्यकारी सचिव शमशाद अख्तर का, हालांकि कहना है कि भारत ने एमजीडी के मामले में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन आत्मुग्ध होने की कोई गुंजाइश नहीं है. बकौल अख्तर, ‘व्यापक अवसर हैं और हासिल करने के लिए काफी गुंजाइश है. यह भी महत्वपूर्ण है कि एमजीडी की अवधि इस साल समाप्त हो रही है तो हम इस साल काम तेज करें ताकि हम सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) एजेंडे को लागू कर सकें. रपट में कहा गया है कि भारत के पास सतत विकास में अग्रणी बनने का अवसर है. उसने गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य हासिल किया है, लेकिन प्रगति असंगत है. यहाँ यह भी जान लें कि एमजीडी की अवधि समाप्त होने के बाद संयुक्त राष्ट्र एसडीजी कार्यक्रम शुरू करेगा. बहरहाल, यहाँ यह देखना दिलचस्प रहेगा कि बाकी अवधि में लक्ष्यित तबके की बेहतरी के लिए किस तरह के प्रयास किये जाते हैं. बेशक इस क्षेत्र में बहुत सारा काम हुआ है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि और भी बेहतर किया जा सकता था. अब देखना है कि समय रहते कितना कुछ हासिल हो पाता है.

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