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जयशंकर प्रसाद : परिचय

2 मार्च 2016

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हिन्दी के महान कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे जयशंकर प्रसाद| हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद जी का जन्म माघ शुक्ल 10, संवत्‌ 1889 वि. में काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण १७ वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी के क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान्‌ इनके संस्कृत के अध्यापक थे। इनके गुरुओं में 'रसमय सिद्ध' की भी चर्चा की जाती है। घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 'कलाधर' के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर 'रसमय सिद्ध' को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे नागरीप्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे। क्षय रोग से जनवरी 14, 1937 (उम्र 47) को उनका देहांत काशी में हुआ।

आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए है; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढते हैं। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उन्होंने उद्घाटन किया। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएं लिखीं| उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी विविध प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से समृद्ध किया हो।


कृतियाँ:

प्रसाद जी के जीवनकाल में ऐसे साहित्यकार काशी में वर्तमान थे जिन्होंने अपनी कृतियों द्वारा हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की। उनके बीच रहकर प्रसाद ने भी अनन्य गौरवशाली साहित्य की सृष्टि की। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक ओर निबंध, साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में उन्होंने ऐतिहासिक महत्व की रचनाएँ कीं तथा खड़ी बोली की श्रीसंपदा को महान्‌ और मौलिक दान से समृद्ध किया। कालक्रम से प्रकाशित उनकी कृतियाँ ये हैं : उर्वशी (चंपू) ; सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (निबंध); शोकोच्छवास (कविता); प्रेमराज्य (क) ; सज्जन (एकांक), कल्याणी परिणय (एकाकीं); छाया (कहानीसंग्रह); कानन कुसुम (काव्य); करुणालय (गीतिकाव्य); प्रेमपथिक (काव्य); प्रायश्चित (एकांकी); महाराणा का महत्व (काव्य); राजश्री (नाटक) चित्राधार (इसमे उनकी 20 वर्ष तक की ही रचनाएँ हैं)। झरना (काव्य); विशाख (नाटक); अजातशत्रु (नाटक); कामना (नाटक), आँसू (काव्य), जनमेजय का नागयज्ञ (नाटक); प्रतिध्वनि (कहानी संग्रह); स्कंदगुप्त (नाटक); एक घूँट (एकांकी); अकाशदीप (कहानी संग्रह); ध्रुवस्वामिनी (नाटक); तितली (उपन्यास); लहर (काव्य संग्रह); इंद्रजाल (कहानीसंग्रह); कामायनी (महाकाव्य); इरावती (अधूरा उपन्यास)। प्रसाद संगीत (नाटकों में आए हुए गीत)।

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रचनाएँ
jaishankarprasad
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हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार जयशंकर प्रसाद जी की चर्चित एवं लोकप्रिय रचनाओं का संकलन...
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जयशंकर प्रसाद : परिचय

2 मार्च 2016
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हिन्दीके महान कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे जयशंकरप्रसाद| हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद जीका जन्म माघ शुक्ल 10, संवत्‌ 1889 वि. में काशी केसरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे औरइनके पिता बाबू देवीप्रसाद

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कहानी : चूड़ीवाली / जयशंकर प्रसाद

3 मार्च 2016
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 “अभी तो पहना गई हो।” “बहूजी, बड़ी अच्छी चूडिय़ाँ हैं। सीधे बम्बई से पारसल मँगाया है।सरकार का हुक्म है; इसलिए नयी चूडिय़ाँ आते ही चली आतीहूँ।” “तो जाओ, सरकार को ही पहनाओ, मैं नहीं पहनती।” “बहूजी! जरा देख तो लीजिए।” कहती मुस्कराती हुई ढीठ चूड़ीवाली अपना बक्स खोलने लगी। वहपचीस वर्ष की एक गोरी छरहरी स्

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कहानी : चित्तौड़-उद्धार / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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दीपमालाएँआपस में कुछ हिल-हिलकर इंगित कर रही हैं,किन्तु मौन हैं। सज्जित मन्दिर मेंलगे हुए चित्र एकटक एक-दूसरे को देख रहे हैं, शब्द नहीं हैं। शीतल समीर आता है, किन्तु धीरे-से वातायन-पथ के पार हो जाता है, दो सजीव चित्रों को देखकर वह कुछ नहीं कह सकता है। पर्यंकपर भाग्यशाली मस्तक उन्नत किये हुए चुपचाप बै

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कहानी : गुंडा /जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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वहपचास वर्ष से ऊपर था| तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ औरदृढ़ था| चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं| वर्षा की झड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कड़कती हुई जेठ की धुप में, नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था| उसकी चढ़ी हुई मूंछ बिच्छू के डंक की तरह, देखनेवालों के आँखों में चुभती थीं| उसका सांवला रंग सां

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कहानी : छोटा जादूगर/ जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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कार्निवलके मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हंसी और विनोद का कलनाद गूंज रहा था। मैं खड़ाथा उस छोटे फुहारे के पास, जहां एक लड़का चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सीपड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुंह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्यकी रे

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कहानी : नूरी / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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भाग 1 “ऐ; तुम कौन?“......”“बोलते नहीं?” “......” “तो मैं बुलाऊँ किसी को—” कहते हुए उसने छोटा-सा मुँह खोला ही था कि युवक ने एक हाथ उसके मुँह पर रखकरउसे दूसरे हाथ से दबा लिया। वह विवश होकर चुप हो गयी। और भी, आज पहला ही अवसर था, जब उसने केसर,कस्तूरी और अम्बर से बसा हुआयौवनपूर्ण उद्वेलित आलिंगन पाया था।

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कहानी : चंदा / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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चैत्र-कृष्णाष्टमीका चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश 'चन्द्रप्रभा' के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंगको छोड़कर धवलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरेबह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद' ...गा रही है। गीत अधूरा ही ह

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कहानी : अपराधी / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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वनस्थलीके रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुरियाँ, बसन्त-पवन के पैरों के समान हिल रही थीं। पीले पराग काअंगराग लगने से किरणें पीली पड़ गई। बसन्त का प्रभात था। युवती कामिनी मालिन का काम करती थी। उसे और कोई न था। वह इसकुसुम-कानन

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कहानी : गुलाम / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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फूलनहीं खिलते हैं, बेले की कलियाँ मुरझाई जा रही हैं।समय में नीरद ने सींचा नहीं, किसी माली की भी दृष्टि उस ओर नहींघूमी; अकाल में बिना खिले कुसुम-कोरकम्लान होना ही चाहता है। अकस्मात् डूबते सूर्य की पीली किरणों की आभा से चमकता हुआएक बादल का टुकड़ा स्वर्ण-वर्षा कर गया। परोपकारी पवन उन छींटों को ढकेलकर उ

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कहानी : इंद्रजाल / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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गाँवके बाहर, एक छोटे-से बंजर में कंजरों का दलपड़ा था। उस परिवार में टट्टू, भैंसे और कुत्तों को मिलाकर इक्कीसप्राणी थे। उसका सरदार मैकू, लम्बी-चौड़ी हड्डियोंवाला एक अधेड़पुरुष था। दया-माया उसके पास फटकने नहीं पाती थी। उसकी घनी दाढ़ी और मूँछों केभीतर प्रसन्नता की हँसी छिपी ही रह जाती। गाँव में भीख माँ

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