संसद में सार्थक बहस के साथ एक दिन महिला सांसदों को बोलने तथा नए सांसदों को भी अपनी बात रखने का मौका दिए जाने की पहल के अपील से क्या आपको लगता है कि संसद में अब आगे सार्थक बहस संभव होगी ? क्या इस कारण कुछ वर्षों में केवल बेमतलब की बयानबाजी का केंद्र की अपनी साख से संसद उबर सकेगा और आने वाले दिनों में भी क्या इसके स्वरुप में कुछ सकारात्मक बदलाव आएगा ??