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संकल्प भारत मिशन वंदे मातरम !

16 मार्च 2016

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" मैं एक देशभक्त नागरिक होने के पूर्ण अधिकार से मानननीय सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन करता हूँ की देशद्रोही कन्हैया कुमार को 6 महीने के अन्दर-अन्दर fast कोर्ट trail पर लेकर दण्डित करने की कृपा करें| कन्हैया कुमार एक विकृत सोच और देशद्रोही मानसिकता वाला व्यक्ति ही नहीं बल्कि गन्दी राजनैतिक सोच द्वारा पैदा की हुई वो विष-वेल| ये धीरे-धीरे राष्ट्रऔर राष्ट्रियएकता पर खतरे की तरह फ़ैल रही है | मेरा मानना है की देश जन भावनाओं से बना एक शरीर है ,कन्हैया कुमार इस शरीर का वो अंग है जिसमें एक लाइलाज सडन पैदा हो गई है,इसका एकमात्र उपचार है की इसे काटकर पूर्णतः नष्ट कर दिया जाये | अन्यथा सड़ी हुई विकृत मानसिकता से पोषित होने वाले कीड़े-मकोड़े(कांग्रेस,सीपीआई जद) इसे अपना घर बना लेंगे,बल्कि बना चुके हैं,जोएक विषाणु की तरह तेजी से फ़ैल रहा है, मेरे जैसे करोड़ों देशभक्त लोग बीमार हो रहे हैं और एसे लोगो के गंदे खून से अपने हाथ रंगने का मन बना चुके हैं जैसे की मैं 'मैं संकल्प लेता हूँ की अगर देशद्रोहीओं को उचित सजा नहीं मिली तो इसे मैं दण्ड दूँगा और कन्हैया/उमार खालिद की जीभ काटकर माँ भारती के चरणों में अर्पित कर दूंगा| ये मेरा संकल्प है और राष्ट्रभक्त राजपूत का वचन भी| क्योंकि योगीराज श्रीकृष्ण ने कहा है""की जब न्याय व्यवस्था उचित निर्णय लेने में अक्षम या असहज हो तो राष्ट्रभक्तों को स्वयम दंडाधिकारी बनकर न्याय करना चाहिए""
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया प्रस्तुत- संकल्प भारत मिशन

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल, कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद!

17 सितम्बर 2015
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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुलकॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद------1858 में Indian Education Act बनाया गया।इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपो

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काका हाथरसी का हास्य

24 सितम्बर 2015
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एक पुलिंदा बांधकर कर दी उस पर सीलखोला तो निकले वहां लखमी चंद वकीललखमी चंद वकील, वजन में इतने भारीशक्ल देखकर पंचर हो जाती है लारीहोकर के मजबूर, ऊंट गाड़ी में जाएंपहिए चूं-चूं करें, ऊंट को मिरगी आए

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काका का ठहाका !

24 सितम्बर 2015
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सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमाराहम भेड़-बकरी इसके यह गड़ेरिया हमारासत्ता की खुमारी में, आज़ादी सो रही हैहड़ताल क्यों है इसकी पड़ताल हो रही हैलेकर के कर्ज़ खाओ यह फर्ज़ है तुम्हारासारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.चोरों व घूसखोरों पर नोट बरसते हैंईमान के मुसाफिर राशन को तरशते हैंवोटर से वोट लेकर व

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बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं

25 सितम्बर 2015
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बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,और नदियों के किनारे घर बने हैं ।चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,हम नहीं हैं आदमी, हम झुन

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महान साहित्यकार , कमलेश्वर प्रशाद सक्शैना 06 जनवरी 1932 मैनपुरी, [[[उत्तरप्रदेश]

25 सितम्बर 2015
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कमलेश्वर (६ जनवरी१९३२-२७ जनवरी २००७) हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके ले

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हालांकि मैंने वक़्त का रास्ता नहीं देखा !

6 अक्टूबर 2015
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अब तो हर शै उदास लगती है

8 नवम्बर 2015
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अब तो हर शै उदास लगती है,हर तरफ आग-आग दिखती है । ढूंढता फिर रहा जिसे अब तक ,वो  मेरे  साथ - साथ   रहती  है ।सब मिला आपसे वफ़ा ना मिली,ज़िन्दगी  फिर  तलाश  करती  है।वो जो  अपने  बिछड  गए  हमसे,हो   मुलाक़ात   ख्वाब   लगती है ।रफ्ता-रफ़्ता तड़प-तड़प के मिली,दिल की धड़कन कयास  लगती है।जब   से  मशहूर    क्या  

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बेटियां शीतल हवा होती है।। इन्हें बचा कर रखे

29 नवम्बर 2015
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पहला दृश्य --एक कवि नदी के किनारे खड़ा था ! तभी वहाँ सेएक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था तो तभीकवि ने उस शव से पूछा ----कौन हो तुम ओ सुकुमारी,बह रही नदियां के जल में ?कोई तो होगा तेरा अपना,मानव निर्मित इस भू-तल मे !किस घर की तुम बेटी हो,किस क्यारी की कली हो तुम ?किसने तुमको छला है बोलो,क्यो

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दिलों की क़ैद से बाहर निकल

6 दिसम्बर 2015
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दिलों की क़ैद से बाहर निकल,नज़ारा देख रुक थोडा  संभल।बिखरने दो अभी खुश्बू हवा में,ना जाने कौन ,कब जाये बदल। तुम्हारा काम,बातें बनाना छोड़,बढाया ताप गर तू जायेगा उबल।तमाशा बन गया क्यों आदमी तू,ना पैसा काम आयेगा ना  महल। बुलंदी ठीक है ऊंचा ना उड़ना पंख,जमींनो से जुडो,उठो आगे निकल।कल्पना साथ मे,कर्तव्य करत

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दर्द चेहरे पर उभारा जाएगा

11 मार्च 2016
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दर्द चेहरे पर उभारा जाएगा,नाम जब मेरा पुकारा जाएगा। शुक्रिया कहना पड़ेगा वक़्त को,लौटकर शायद दोवारा आएगा। मेरी कश्ती है अभी मंझधार में,लड़ तू लहरों से किनारा आएगा। देखना सीने से लग जायेगा वो,दौड़कर बच्चा हमारा आएगा। मूक संकेतों से वो समझा गया,वक़्त फिर अच्छा हमारा आएगा। खर्चना दिल खोलकर इस प्यार को, शायद

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16 मार्च 2016
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