shabd-logo

ख़ुद सक्षम बन दूसरों को सिखा रही मुक़ाबला करना

9 अप्रैल 2016

289 बार देखा गया 289
featured image

अपराध की घटनाएं अखबारों में पढ़कर व टीवी में देखकर निन्दी ही नहीं बल्कि उसके परिवार का हर सदस्य डर जाता था। निन्दी झुग्गी बस्तियों की तरह तंग जिंदगी जीते हुए हर दिन नरक सा अनुभव करती थी। टॉयलेट जाते समय कभी बस्ती के युवक उसको अपशब्द कहते तो कभी स्कूल जाते समय मनचले उस पर फब्तियां कसते। निन्दी मन मसोस कर रह जाती। दसवीं की पढ़ाई के दौरान जब सब्र टूट गया तो उसने आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट सीखना शुरू किया, जिसके बाद उसने बस्ती की युवतियों को सक्षम बनाने को अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया। 19 वर्षीय निन्दी ने बताया कि वह परिवार के साथ जहांगीरपुरी एमआइजी ब्लॉक में रहती है। झुग्गी बस्ती का जीवन जीते हुए कई बार उसने अपने आप को असहाय पाया। टॉयलेट जाने से लेकर स्कूल व बाजार जाते हुए उससे कई बार छेड़छाड़ की गई। गुस्सा आता था कि ऐसे लड़कों को सबके सामने थप्पड़ रसीद कर दें, पर अपराध और लोकलाज का भय सामने आकर खड़ा हो जाता। इसी बीच वह एक स्वयंसेवी संस्था के संपर्क में आई। निन्दी ने बताया कि पहले उसने खुद मार्शल आर्ट सीखा। स्कूल स्तर पर मार्शल आर्ट की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इसके पीछे मकसद, झुग्गी बस्ती में रहने वालों की संकीर्ण मानसिकता को बदलना था। वह कहती है कि पहले लोग मुझे चिढ़ाते थे कि देखो हाफ पैंट पहनकर जा रही है, लड़कियों को बर्बाद कर देगी, लेकिन मुझे स्कूलों में पुरस्कार मिले तो लोगों का नजरिया भी बदला। कई ऐसे अभिभावक भी आए जिन्होंने खुद उनकी बेटियों को मार्शल आर्ट सिखाने की गुजारिश की। 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली निन्दी अब तक 200 से ज्यादा युवतियों को मार्शल आर्ट सिखा चुकी है। उसने खुद भी अनेक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और विजेता बनी है। वह अब तक चार गोल्ड, एक कांस्य और एक सिल्वर मेडल के साथ ही कई प्रमाण पत्र भी हासिल कर चुकी है।

संजीव कुमार मिश्र, नई दिल्ली।
(दैनिक जागरण)


20
रचनाएँ
lifesketch
0.0
इस आयाम के अंतर्गत आप विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जाने-माने व्यक्तियों की संक्षिप्त जीवनी की झलक पा सकते हैं ।
1

बाल-श्रमिकों का मसीहा

1 अक्टूबर 2015
0
6
4

‘अपने लिए जिए तो क्या जिए...ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए’...कितने ही लोगों ने सुना होगा ये गीत और आगे बढ़ गए होंगे जबकि कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हुए जिनके लिए ये गीत प्रेरणा बन गया और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतार दिया । ऐसा ही एक नाम है ‘कैलाश सत्यार्थी’ । भारत के मध्य प्रदेश (विदिशा) में 11 जनवरी 1954 क

2

शिल्प-जगत का आकाश-दर्पण

1 अक्टूबर 2015
0
6
2

कला और कलाकार किसी एक देश के नहीं होते बल्कि सम्पूर्ण विश्व के होते हैं । कला, देश की सीमाओं के बन्धन में नहीं बंधती । कलाकार नील गगन में उन्मुक्त उड़ान भरते विहगों के सदृश होते हैं उनके लिए पूरी धरती और आकाश एक होते हैं ।मशहूर बुत-तराश अनीश कपूर ने वर्ष 2006 में अपनी एक कृति, एक विशाल आकाश दर्पण के

3

नन्हीं 'पाखी' की उड़ान...

5 अक्टूबर 2015
0
4
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

4

माटी का चितेरा

6 अक्टूबर 2015
0
5
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

5

सारी बस्ती क़दमों में है...

4 नवम्बर 2015
0
6
9

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

6

महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय

5 नवम्बर 2015
0
7
4

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

7

बच्चों तुम तक़दीर हो...

14 नवम्बर 2015
0
6
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

8

लक्ष्य

17 नवम्बर 2015
0
4
3

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

9

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...

18 नवम्बर 2015
0
17
7

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

10

कामयाबी के साथ, दुर्गा रघुनाथ

21 नवम्बर 2015
0
6
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

11

मानवता की अनूठी मिसाल : रोटी बैंक

31 दिसम्बर 2015
0
4
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

12

दृष्टिहीनों का दीपक- लुई ब्रेल

4 जनवरी 2016
0
4
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

13

गणतंत्र दिवस, समर्पण का दिन

25 जनवरी 2016
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

14

जब तान छिड़ी मैं बोल उठा : हरिशंकर परसाई

28 जनवरी 2016
0
1
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

15

हौसलों से उड़ान होती है...

1 फरवरी 2016
0
2
2

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXML

16

ज्योति कलश छलके

11 फरवरी 2016
0
4
2

'ज्योति कलश छलके', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'तुम आशा विश्वास हमारे' जैसे अनेक कालजयी गीतों के रचनाकार, साहित्य और गीतलेखन के गुरु द्रोणाचार्य और विविध भारती के पितामह, भले ही पार्थिव शरीर त्यागकर वृजन् में विलीन हो गए हों, लेकिन हमारी यादों से कभी विलग नहीं होंगे। २८ फरवरी १९१३ को उत्तर प्रदेश के खुर्

17

प्रेरक है भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन

2 अप्रैल 2016
0
5
2

बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में 2 अप्रैल 1942 को जन्मे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह गणित के असंख्य विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत और देश का गौरव हैं। उन्होंने बिहार में ही रहकर मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह बचपन से ही पढाई में बहुत तेज़ थे। कहा जाता है कि पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के द

18

ख़ुद सक्षम बन दूसरों को सिखा रही मुक़ाबला करना

9 अप्रैल 2016
0
5
0

अपराध की घटनाएं अखबारों में पढ़कर व टीवी में देखकर निन्दी ही नहीं बल्कि उसके परिवार का हर सदस्य डर जाता था। निन्दी झुग्गी बस्तियों की तरह तंग जिंदगी जीते हुए हर दिन नरक सा अनुभव करती थी। टॉयलेट जाते समय कभी बस्ती के युवक उसको अपशब्द कहते तो कभी स्कूल जाते समय मनचले उस पर फब्तियां कसते। निन्दी मन मसो

19

थोड़ी सीख पटना के भाई गुरमीत सिंह से...

12 अप्रैल 2016
0
7
0

पटना के सरदार गुरमीत सिंह मौजूदा कपड़ों की अपनी पुश्तैनी दुकान संभालते हैं।लेकिन रात होते ही वे 90 साल पुराने और 1760 बेड वाले सरकारी पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के मरीज़ों के लिए मसीहा बन जाते हैं। बीते 20 साल से गुरमीत सिंह हर रात लावारिस मरीज़ों को देखने के लिए पहुंचते हैं। वे उनके लिए भोजन और

20

छिपा हुआ सत्य

26 अप्रैल 2016
0
1
0

कितना अद्भुत, कितना सत्य !यह घटना भूमध्यसागर के सिसली द्वीप की है। अपराह्न के समय, सड़क पर अपने काम-धंधों में व्यस्त लोगों तथा व्यापारियों का जमघट लगा था। अचानक एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी, 'मिल गया, मिल गया।' एक नंगा आदमी सड़क के बीचो-बीच दौ

---

किताब पढ़िए