11 अप्रैल 1951 को पुणे में जन्मी हिंदी फ़िल्म जगत की ज़बरदस्त अभिनेत्री ने अपने करीअर की शुरुआत मराठी रंगमंच से की थी। बचपन से ही उनकी आत्मा थिएटर में बसी थी और वो सिर्फ एक कलाकार बनना चाहती थीं। उन्होंने फ़िल्मों के बारे में सोचा ही नहीं था इसी लिए उनके FTTI उनके होम टाउन में होने के बावजूद उन्होंने 1971 में NSD ज्वाइन किया। असली अभिनय सिर्फ़ थिएटर से ही सीखा जा सकता है, ये बात उन्होंने अपने पिता अनंत ओक से सीखी थी। एनएसडी दिल्ली में ही उनकी मुलाक़ात बैच-मेट जयदेव हट्टंगड़ी से हुई जो आगे चलकर उनके जीवनसाथी बन गए।
उन्होंने हिंदी फिल्मों में शुरुआत की सन् 1978 से, सईद अख्तर मिर्ज़ा की फिल्म थी, अरविन्द देसाई की अजीब दास्तान। फिर इसके बाद 1980 में फिल्म आई 'अलबर्ट पिंटो को ग़ुस्सा क्यों आता है'। इन दोनों ही फिल्मों को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड से नवाज़ा गया। 1982 में रिचर्ड एटनबर्ग की फिल्म 'गांधी' में कस्तूरबा के अभिनय के लिए उन्हें दुनिया भर में सराहा गया। इस फिल्म में सहायक अभिनेत्री के रूप में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए उन्हें BAFTA अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा अर्थ, सारांश, पार्टी, मोहनजोशी हाज़िर हो, अग्निपथ, दामिनी, घातक और पुकार जैसी तमाम फ़िल्मों में उनके ज़बरदस्त अभिनय को सराहा गया।
ऐसे फनकारों के अभिनय की वो पराकाष्ठा है कि लगता है तमाम पुरस्कार, अवार्ड्स भी मुस्तैद होकर मुन्तज़िर रहते हैं, और कार्य के प्रति उनके समर्पण के आगे नतमस्तक हो, हँसते-मुस्कराते उनकी झोली में जा बैठते हैं। उनकी अभिनय-कला के असंख्य चाहने वालों की ओर से रोहिणी हट्टंगड़ी को उनके जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ !
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D