इस तरफ आओ इधर पहरा नहीं है,
यार समंदर है मगर गहरा नहीं है।
संदेश प्यार का लाता तो रोज है,
क़ासिद है कौन मैंने देखा नहीं है।
वीरान है सुनसान भी सन्नाटा है,
ये जगह निर्जन है मगर सहरा नहीं है।
है नदी ब्याकुल बहुत प्यासी भी है,
आकर कोई सागर मिलता नहीं है।
एक साया बुन रही है ज़िन्दगी फिर से,
कशमकश का शोर है थमता नहीं है।
बर्फ ज़िद की पिघल रही है कहीं शायद,
वक़्त ने दामन मेरा छोड़ा नहीं है।
अँधेरा ही उजाले की कसौटी है,
रंगीनियों का स्वस्थ उजाला नहीं है।
अरे रोज ज़िन्दगी में इम्तहान रहेगा,
भूखे हैं बच्चे घर में निबाला नहीं है।