है तो यह फिल्म वक़्त का मशहूर गीत | लेकिन सौ फीसद सच बात है | शुरुआत में जब इंसान को जीवन का अनुभव नहीं होता तो उसे लगता है कि वक़्त उसकी मुट्ठी में है | यौवन में तो ऐसा लगता है वक़्त ना केवल मुट्ठी में बल्कि उसका गुलाम है |
फिर अचानक ऐसा पल आता है | ऐसी स्थितियां बन जाती हैं कि सब कुछ मुट्ठी से छूटता नज़र आता है | जितने ख़्वाबों को मान के चल रहा था कि ये तो पूरे होंगे ही | वस्तुस्तिथि ऐसी बनती है कि उन्हीं ख्वाबों में खोकर रह जाता है |
ये परमात्मा की माया मानिये या व्यक्ति का प्रारब्ध वक़्त तो तब बादशाह बन जाता है | बाज़ी पलट जाती है जिसे कभी गुलाम
मानता था वह व्यक्ति अचानक से उसका गुलाम बनता हुआ समझता है फिर भी बन जाता है | शायद इसिलए वक़्त फिल्म का यह गीत प्रासंगिक है और सदा सार्वकालिक भी रहेगा ...