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“मजदूर”

5 मई 2016

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मैं मजदूर हूँ
मजबूत हूँ
परिश्रम की साख पर
बैठा हुआ 
देवदूत हूँ 
.
.
संघर्षों के बीच पैदा हुआ
संघर्ष में ही पला-बढ़ा 
संघर्ष के अनुभवों से 
मेरा कण कण गढ़ा
.
.
हर रोज 
मिलता हूँ प्रकृति से 
संघर्ष करता हूँ 
उसके हठीले स्वभाव से 
और जीता हूँ 
स्वच्छंदता की साँस से 
.
.
मैं थकावट को वरण कर
स्वेद की गंगा में
हिलोरे लेता हूँ
कभी तेज धूप को
चीरता हूँ
अपने वक्ष से
तो कभी खेलता हूँ
मखमली बौछार से
.
.
देखता हूँ जब कभी 
हथेली पर उगती ठिकारें
मोतियों सी चमकती हुई 
महसूस होती 
त्याग की वेदी पर 
मेहनत का हार बनती........ क्रमशः

रचनाकार :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी 
दिनाँक :- १ मई २०१६

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“मजदूर”

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मैं मजदूर हूँमजबूत हूँपरिश्रम की साख परबैठा हुआ देवदूत हूँ ..संघर्षों के बीच पैदा हुआसंघर्ष में ही पला-बढ़ा संघर्ष के अनुभवों से मेरा कण कण गढ़ा..हर रोज मिलता हूँ प्रकृति से संघर्ष करता हूँ उसके हठीले स्वभाव से और जीता हूँ स्वच्छंदता की साँस से ..मैं थकावट को वरण करस्वेद की गंगा मेंहिलोरे लेता हूँकभी

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