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क्यूंकि माँ- तेरा 'सिर्फ एक' दिन नहीं हो सकता!

8 मई 2016

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अरे माँ, मॉम, मम्मी या अम्मा,
कितने भी ‘मास्टर शेफ’ कि डिश खा लूँ,
पर तेरी सूखी रोटी आज भी शहद लगती है,

कितने भी फेमस ‘हबीब’ से मसाज करा लूँ,
तेरे हाथ से की मालिश से ही,
मुझे आज भी बेस्ट आँख लगती है!

कितने भी बड़े ‘रामदेव’ का योगा कर लूँ,
तेरे आँचल के तले ही गहरी शांति मिलती है.

क्यूंकि,
तू मेरे पेट का साइज़ नहीं,
आज भी उसकी भूख देखती है.

तू मेरे गंजे सर पे,
आज भी कहीं से तो बाल ढूँढ़ लेती है.

तेरी ये 'जान' ९ महीने पेट में,
और फिर पूरी ज़िन्दगी तेरे दिमाग में करवट लेती है.

क्यूंकि,
कभी भी क़र्ज़ अदा कर पाने की तो छोडो,

बस ये एहसास करा दूँ कि,
तुझे हर दिन याद करता हूँ,
और याद करने को,
किसी Mother’s day की बाँट नहीं जोहता हूँ.

बस, मेरा कुछ फ़र्ज़ ज़रूर अदा हो जायेगा.

इसलिए,
तेरा 'सिर्फ एक' दिन नहीं हो सकता,
और तुझे 'एक दिन' में समेंट लूँ ऐसा हो नहीं सकता!

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

माँ केवल माँ हैं उसका कोई एक दिन नहीं हो सकता . वह तो हर पल हर घड़ी मन में कल्पनाओ में रहती हैं उसकी एक एक बात पग पग पर हमारा मार्ग दर्शन करती है उसको आदर सम्मान देने के लिए तो पूरी एक उम्र भी कम है ----- अलोक सिन्हा

10 मई 2016

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

एक दम सच है

8 मई 2016

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क्यूंकि माँ- तेरा 'सिर्फ एक' दिन नहीं हो सकता!

8 मई 2016
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अरे माँ, मॉम, मम्मी या अम्मा,कितने भी ‘मास्टर शेफ’ कि डिश खा लूँ,पर तेरी सूखी रोटी आज भी शहद लगती है,कितने भी फेमस ‘हबीब’ से मसाज करा लूँ,तेरे हाथ से की मालिश से ही,मुझे आज भी बेस्ट आँख लगती है!कितने भी बड़े ‘रामदेव’ का योगा कर लूँ,तेरे आँचल के तले ही गहरी शांति मिलती है.क्यूंकि,तू मेरे पेट का साइज़ न

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हैप्पी father’s डे तुम्हे मेरे बच्चे.

18 जून 2016
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हैप्पी father’s डे तुम्हे मेरे बच्चे.जब तुम पैदा हुए, मैं तुम्हारा ही नहीं तुम्हारी मां का भी ‘बाप’ बना.जब तुम गर्मी में झुंझला के मां के आँचल से चिपक जाते,रात भर मेरे पंखे का झोंका दे,या तुम्हारे हर एग्जाम में बाहर पहरा दे कई बार, कई बार उखडमैं अर्दली, पहरेदार बना.तुम्हारे आँखों के आंसू “इग्नोर”कर,

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झूठ ही कह दो, सच हम मान लेंगे!

10 जुलाई 2016
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सुनो ज़रा !जैसे बारिश की बूँदें ढूंढें पता,गरम तपते मैदानों का.जैसे माँ के आने का देता था बता,सुन शोर पायल की आवाज़ों का.वैसे ही गर महसूस कर सको मुझे आज,बग़ल की खाली जगह पर,हर हसने वाली वजह पर,बिन बात हुई किसी जिरह पर.कह दो न,जैसे,तुम ‘झूठमूठ’ का कहते थे,और हम ‘सचमुच’ का मान लेते थे.जैसे,तुम कह देते थे

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याद सिर्फ सफ़र की होती है, मंजिल की नहीं!

7 अगस्त 2016
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याद सिर्फ सफ़र की होती है, मंजिल की नहीं! जानती हो- सुनो न! सुनो न! कहना, सुना देने से ज़्यादा अच्छा लगता है.... बार बार मिलने का बहाना, मिल लेने से ज़्यादा मज़ा देता है. ठीक वैसे ही, जैसे- बारिश के इंतज़ार में, लिखी नज़्म और कविता येँ, खुद, बारिश से ज़्यादा भीगी लगतीं हैं. बिलकुल जैसे- अधखिली कलि और उलझ

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