अकाल, दुर्भिक्ष, सूखा, भुखमरी – ये सब किस्से, कहानियों की चीज़ें होती है, जो शायद ही शहरों मे रहने वाले लोगों ने देखी या महसूस की होती है. उनके लिए तो हफ्ते मे १ या २ दिन होने वाली वॉटर या पावर कट ही सूखा या ब्लैक आउट होता है. जिसका भी उन्हे अड्वान्स मे नोटीस मिला होता है, जिसकी वजह से १०-१५ बड़े-बड़े ड्रम्स मे ३ दिन का पानी वो पहले से ही इकट्ठा कर के बैठे होते हैं. फ्रीज़ मे सारी भरी हुई बोतलों को अगर हम काउंट ना करें तो. हाल बद से बदतर होती है इन बहुमंज़िला इमारतों के आस पास झुग्गी-झोपड़ियों मे रहने वालों के लिए, जहाँ ५०-१०० घर के लिए भी एक नल होता है, जो कभी-कभी लीगल होता है. तो कभी-कभी बड़े-बड़े पानी के पाइप्स से रीस रहा पानी ही इनकी सस्ती ज़िंदगी का सहारा होता है. खैर जो भी हो, अमीर या ग़रीब, आख़िर शहरों मे कम या ज़्यादा पानी मिल ही जाता है, जिससे गुज़रा हो जाता है.
लेकिन अगर बात भारत के गाँवों की आ जाए, तो मामला कुछ और हो जाता है. गाँवों मे जहाँ खेती करने के लिए भारी मात्रा मे पानी की ज़रूरत होती है वहीं किसी-किसी गाँव मे तो पीने का पानी लेने के लिए कोसो तक चलना पड़ता है. ऐसे हाल मे अगर समय पर बारिश ना हो तो खेती, रोज़गार और ज़िंदगी तीनो पर एकसाथ अस्तित्व का ख़तरा मंडराने लगता है. कुछ ऐसा ही हाल आज भारत के ४० करोड़ लोगों का है. गुजरात, हरियाणा, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र-ये कुछ ऐसे राज्य हैं जो इनकी चपेट मे हैं. जहाँ खेती तो कुछ महीनो से चौपट है ही, लोग ढंग का खाना खाने को भी तड़प रहे हैं. पीने का पानी भी अब मयस्सर नही हो पा रहा.
ऐसे मे हर राज्य जहाँ डिनाइयल मोड मे हैं, वहीं हमेशा की तरह मीडीया अपने कुछ “ज़रूरी” मुद्दों मे बिज़ी है, जैसे सिम्मर मक्खी कैसे बन गयी, सलमान की शादी कब होगी या फिर भले पुरुष केजरीवाल ने आज किसकी डिग्री फर्जी घोषित कर दी. कुछ ऐसा ही हाल हमारे आपके बीच भी है. यहाँ सोशियल मीडीया पर. ना कोई शोर, ना कोई हंगामा. पेरिस और बेल्जियम मे कोई हमला होता है तो हम पागल हो जाते हैं, जहाँ ना हम हम गये हैं, ना अधिकतर लोग कभी जा पाएँगे. हालाँकि हल्ला करना जायज़ है, आख़िर किसी की जान तो कीमती है ही. फिर वही हल्ला हम अपने लोगों के लिए क्यूँ नही कर रहे, जो संख्या मे २०-२५ नही है, बल्कि ४० करोड़ के आसपास है. क्या इसलिए की ये मुद्दे मायने नही रखते या फिर इसलिए की ऐसे मुद्दों को उठाने से आपका फ़ेसबुक वॉल गंदा हो जाएगा.
चाहे जो भी बात हो, मुद्दे महत्वपूर्ण है, क्यूंकी इन्ही किसानो के वजह से हमे सब्जी और रोटी नसीब होती है. याद रखिए, ये चीज़ें सूपरमार्केट मे “मिलती” है, “उगती” नही है, उगती वो उसी ग़रीब के खेत मे हैं, जिसको उगा कर वो और दिन-ब-दिन ग़रीब होता जा रहा है. आपसे मै कुछ करने को नही कह रहा, बस कह रहा हूँ की चीज़ों को समझना शुरू कीजिए. जानिए वो चीज़ें भी ज़रूरी होती है जो न्यूज़ आवर, प्राइम टाइम या सोशियल मीडीया पर कभी नही आती. एक बार आप समझना शुरू कर देंगे, तो फिर करना भी शुरू कर देंगे, इतना तो भरोसा है मुझे अभी तक हिन्दुस्तान और हिंदुस्तानियों पे.
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