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वर्चुअल रियलिटी: आंखों से दो इंच की दूरी पर होगी मनोरंजन की दुनिया

29 मई 2016

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हाथों में स्मार्टफोन यानि एक से बढ़कर एक खूबियों वाले महंगे हैंडसेट के बाद आने वाले दिनों में लोग हेडसेट के दीवाने बन जाएंगे। कारण वर्चुअल रियलिटी(वीआर) टेक्नीक का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में काफी हद तक बढ़ सकता है और मनोरंजन से लेकर सोशल नेटवर्किंग, चिकित्सा, शिक्षा, गेम्स, फिल्में, विभिन्न जानकारियां, किताबें एवं कल्पनशीलता का रोमांच ठीक हमारी और केवल हमारी आंखों के सामने सकता है। हम मन और मस्तिष्क से उन जगहों पर तुरंत पहुंच सकते हैं, जहां जाना असानी से संभव नहीं हो सकता है। अगर यह हमें कई मामलों में संभावनाओं और आत्मविश्वास को जागृत कर रचनात्मक बना सकता हैै, अनोखा अनुभव करवा सकता है, तो जानकारियों को सीधे दिमाग में भर सकता है और हमारा मददगार भी बन सकता है। वह दिन दूर नहीं जब कानों में हेडफोन लगाने और हैंडसेट रखने  वाले लोग आंखों पर आयताकार डब्बानुमा करीब 315 ग्राम का मोटा वजनी चश्मा पहने नजर आएंगे।

हाल ही में स्मार्टफोन की बहुचर्चित कंपनी सैमसंग ने आॅक्यूलस द्वारा निर्मित गियर वीआर हेडसेट -कामर्स और चुनिंदा रिटेल के बाजार में उतारा है, जिसका सफल प्रदर्शन आॅक्युलस कनेक्ट काॅन्फ्रेंस के दौरान बीते साल सितंबर माह में  किया जा चुका है। कंपनी का दावा है कि यह पिछले हेडसेट गियर वीआर इनोवेटर एडिशन के मुकाबले 22 प्रतिशत हल्का है। इसका आकार लंबाई में 21 सेंटीमीटर, चैड़ाई में 12 सेंटीमीटर और मोटाई में 9 सेंटीमीटर के करीब है, जिसकी कीमत 8,200 रुपये रखी गई है। कंपनी के अनुसार इसमें अगर एकोमोडेट ग्लास सिकी मास्क के साथ फोम का इस्तेमाल किया गया है, तो आंखों पर अच्छी पकड़ बनाए रखने के लिए इलास्टिक वेल्क्रो की पट्टियां लगाई गई हैं। यह सभी तरह के स्मार्टफोन के साथ काम करने में सक्षम है और उससे माइक्रो यूसएबी पोर्ट के जरिए कनेक्ट हो सकता है, जबकि इसमें सेंसर के तौर पर एस्केलेटर, ग्रायोमीटर और प्रोक्सिमिटी टू डिटेक्स माउंटिंग अनमाउंटिंग दिए गए हैं। 

क्या है वर्चुअल रियलिटी?

वीआर हेडसेट का सिद्धांत कंप्यूटर सिमुलेटेड रियलिटी या इमर्सिव मल्टीमीडिया का ही विकसित रूप है, जिसकी परिकल्पना वर्ष 1938 में ही एंटोनियो आर्तोद ने की थी। बाद में लेखक डेमिन ब्रोड्रिक ने इस टर्म का उपयोग 1982 में प्रकाशित अपने विज्ञान-कथा वाले एक उपन्यास में किया था, जिसे  आॅक्सोफोर्ड डिक्शनरी में वर्ष 1987 में शामिल कर लिया गया था।

वर्चुअल रियलिटी की परिभाषा दोनों शब्दों वर्चुअल और रियलिटी के अनुसार यहां वर्चुअल का अर्थ नियर अर्थात निकटता से है, जबकि रियलिटी का अर्थ उस अनुभव से है, जिसे मानवीय तौर पर अनुभव किया जाता है। इस तरह से वर्चुअल रियलिटी का अर्थ उस वास्तविकता लगाया जा सकता है, जो काफी निकट है। जाहिर है कि ऐसा कुछ भी हो सकता है, लेकिन सामान्य तौर पर वास्तविक अनुकरण एक विशेष प्रकार का ही होगा। वैसे आज की तारीख में यह साफ्टवेयर द्वारा बनाया जाने वाला एक तरह का बनावटी वातवरण है, लेकिन इसको देखने वाला व्यक्ति केवल वास्तविक वातावरण को महसूस करता है, बल्कि इसे काफी हद तक स्वीकारता भी है। इसमें हमारी पांचों इंद्रियों में से केवल दो इंद्रियां, आंख और कान ही पूरे माहौल का अनुभव करवाती है, जिससे हम दिल-दिमाग से काफी संभावनाओं के साथ जल्द जुड़ जाते हैं। इसका साधारण सरल रूप थ्रीडी की तस्वीरें या वीडियो हैं। इन्हें पर्सनल कंप्यूटर कीबोर्ड की कूंजी या माउस के जरिए मनचाहे ढंग से संचालित किया जा सकता है। तस्वीरें दाएं-वाएं और विभिन्न दिशाओं में घूमती हुई या काफी बड़ी या फिर छोटी कर देखी जा  सकती है।

इस तरह से बनने वाले माहौल को बंद कमरे या घिरी हुई स्क्रीन, या फिर पूरी तरह से  लिपटे हुए हैप्टिक्स उपकरणों में देखा जा सकता है। यही बोलचाल की भाषा में हेडसेट कहलाता है। वैसे वीआर के उपयोग को दो वर्गों में बांटा जा सकता है। एक प्रशिक्षण या शिक्षा के लिए प्रभावी अनुकरणीय संसाधन जुटान है, तो दूसरा गेम या प्रभावशाली कथा-कहानी की प्रस्तुति के लिए काल्पनाशील माहौल को विकसित करना है। यह सब साॅफ्टवेयर प्रोग्रामिंग भी भाषा वर्चुअल रियलिटी माॅडलिंग लैंग्वेज(वीआरएमएल) के जरिए तैयार किया जा सकता है। इससे खास तरह की तस्वीरों को बनाने और उसे प्रदर्शन एवं जुड़ाव का एहसास देने योग्य निर्देश दिए जा सकते हैं। वीडियो के लिए खास तरह के 360डिग्री वाले कैमरे से फिल्मांक किया जाता है। इसके व्यापक इस्तेमाल की संभावनाएं आर्किटेक्चर, मेडिसीन, कला, मनोरंजन और शिक्षा के क्षेत्र में है। हालांकि यह रोमांचक खोजों या शोध के लिए उपयोगी साबित हो सकता है।

 

हेडसेट में देखें लाइव आॅपरेशन

अगले माह की 14 अप्रैल वीआर हेडसेट के लिए एक खास दिन होगा, क्योंकि उस दिन दोपहर एक बजे राॅयल लंदन अस्पताल से लोग एक कैंसर मरीज के होने वाले आॅपरेशन को स्मार्टफोन और वर्चुअल रियलिटी हेडसेट के सहयोग से लाइव देख सकेंगे। यह सीधा प्रसारण सेंट बार्थाेलोम्यू अस्पताल के सलाहकार सर्जन डाॅ शफी अहमद के द्वारा किए जाने वाले एक ब्रिटिश कैंसर मरीज के अॅपरेशन का होगा। ऐसा दुनिया में पहली बार होगा जब किसी सर्जरी को स्मार्टफोन और हेडसेट की मदद से वर्चुअल रियलिटी टेक्नीक के जरिए लाइव किया जाएगा। इसे दखने वाले दर्शकों को ठीक वैसा ही महसूस होगा, जैसे वे आपरेशन थियेटर में ही सर्जन के सामने मौजूद हों।

सर्जरी के लिए डाक्टरी साजो-सामान की तैयारियों के साथ-साथ आईटी के वैज्ञानिकों ने इसके सीधा प्रसारण के लिए आपरेशन टेबल पर कई कैमरे लगाए हैं। इस सर्जरी में तीन से चार घंटे का समय  लगने की उम्मीद है। डाॅ शफी अहमद वर्चुअल रियलिटी टेक्नीक इस्तेमाल करने के चैंम्पियन माने जाते हैं और उन्हें चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में नया प्रयोग करने के लिए बुलाया गया है। सत्तर वर्षीय मरीज पेट के कैंसर से ग्रसित हैं और वे इस बात को लेकर काफी उत्साहित हैं कि हजारों लोग दुनियाभर में उसके जटिल आपरेशन को लाइव देखेंगे। यह दूसरे चिकित्सकों या मेडिकल स्टूडेंट के लिए भी सीखने-समझने का एक अवसर देगा। डाॅ अहमद वही सर्जन हैं, जिन्होंने पहली बार वर्ष 2014 में एक सर्जरी के दौरान गूगल ग्लास और 360 डिग्री कैमरों का इस्तेमाल किया था। उनका कहना है कि इस नई टेक्नोलोजी से सर्जरी संबंधी इलाज में वैश्विक असमानाताओं को संबोधित कर दूसरे सर्जनों को जोड़ा जा सकता है और जानकारियों का आदान-प्रदान सहजता से किया  जा सकता है, या फिर सुदूर बैठे डाक्टर को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि इसका व्यापक उपयोग विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में किया जाना चाहिए। यह आने वाले दिनो में किसी गेम चेंजर से कम नहीं साबित होगा।

सोशल नेटवर्क की बदलेगी दुनिया

बहुचर्चित सोशल साइट फेसबुक भी वर्चुअल रियलिटी तकनीक को अपनाने के लिए तैयारी कर ली है। इसके लिए उसने एक वीआर टीम का गठन किया है, जिसे इस तकनीक के उपयोग और लोगों से कनेक्ट किए जाने संबंधी जानकारियां मुहैया करने का जिम्मा सौंपा गया है। यह माना जा रहा है कि यह तकनीक आनेवाले दिनों में महत्वपूर्ण कंप्यूटिंग प्लेटफार्म बन सकता है और लोग हैंडसेट के बजाय हेडसेट में ही अपनी सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल करेंगे। यह अगर उनके लिए निहायत ही निजीपन का ऐहसास देगा तो बगल में बैठे व्यक्ति को डिस्टर्ब नहीं करेगा। यानि कि यह ठीक किसी रोचक उपन्यास पढ़ने जैसा अनुभव देगा। टीम के सदस्य अमेरिकी वर्चुअल रियलिटी कंपनी आॅक्यूलस और अन्य टीम के साथ काम शुरू कर चुके हैं।

इस बारे में कंपनी का कहना है कि हमने मोबाइल डिवाइसेज पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, मैसेंजर और वाट्सऐप आदि को विभिन्न तरीकों से लोगों को आपस में जुड़ने में मदद की है, अब हम चाहते हैं कि नया माध्यम वीआर हेडसेट भी ऐसा ही हो। इसी साल स्पेन के वार्सिलोना में आयोजित होने वाले मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस 2016 में फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने कहा कि वीआर हमारा अगला प्लेटफार्म है। हम जल्द ही ऐसी दुनिया में आने वाले हैं, जहां हर किसी के पास प्रत्येक चीज शेयर करने की कुशल क्षमता होगी। इसी के साथ मार्क यह मानते हैं कि फिलहाल वीआर शुरूआती चरणों में ही है ओर इसमें हार्डवेयर साॅफ्टवेयर संबंधी काफी चुनौतियां है, जिसे फेसबुक को ठीक करना है।

इस सिलसिले में फेसबुक ने अगर आॅक्यूलस रिफ्ट नामक हेडसेट बना चुकी है, तो सोनी ने भी हेडसेट के लिए प्रोजेक्ट माॅर्फियस की घोषणा की है। माइक्रोसाॅफ्ट भी इस कतार में शामिल होकर एक्सबाॅक्स नाम का वीआर हेडसेट बनाने जा रही है। और तो और, गुगल भी एक उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर हेलमेट विकसित करने की योजना बना चुकी है, जिसका इस्तेमाल वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में किया जाएगा। वीआर हेडसेट वास्तव में हेड-माउंटेड डिस्प्ले(एचएमडी) है, जो चश्मे की तरह ही होता है।  इसमें तीन आयामी चित्रों को दर्शाया जाता है। हेडसेट में आंखों के लिए एक अलग माॅनिटर हाता है, जिससे  स्टीरियोस्कोपिक प्रभाव बनता है और देखने वाले को यह भ्रम होता है कि वह आभासी माहौल में वास्तविक तौर पर मौजूद है। आॅडियो और वीडिया के मेल से यह बहुत ही असली लगता है।

हेडसेट में टीवी

टेलीविजन देखना अब नया अनोखा अनुभव हेडसेट के जरिए मिलने वाला है। हुलु ने इसे और भी रोमांचक बना दिया है। उसके लांच किऐ गए पहले वीआर एप की मदद से हेडसेट पर टीवी देखने का आनंद लिया सकता है। यानि कि आप अपने घर के किसी भी हिस्से, लिविंग रूम, स्टडी रूम, किचन, बालकनी या फिर गर्डेन में हों, यदि हुलु का यह ऐप आपको हेडसेट पर आपके पसंदीदा टीवी कार्यक्रम को दिखा सकता है। वह भी बड़े पर्दे के एहसास के साथ। इसमें बाहरी असहज वातावरण या प्रकाश व्यवस्था बाधक नहीं बनेगी। अगर सबकुछ इसी गति से चलता रहा, तो आने वाले दिनों में लोगों को हेडसेट पर ही 70एमएम की फिल्म देखने को मिलेगी और फिल्मकार हेडसेट के प्लेटफार्म पर अपनी नई फिल्म रीलिज करना पसंद करेंगे।

कुछ आशंकाएं

वीआर टेक्नोलोजी के इस क्रांतिकारी परिवर्तन को लेकर अगर मनोरंजन का दायरा विकसित हो सकता है, जो यह जीवन में असहज बना देने वाली अनैतिकता को आने का मार्ग और भी सुलभ बना सकता है। अभी तक कंप्यूटर या किताबों तक सिमटी एक्स या थ्री एक्स रेटेड अश्लील सामग्री के वीआर हेडेसेट में समाने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।  इसके लिए पोर्न की एडल्ड इंडस्ट्री भी कमर कस चुकी है। पार्नोग्राफी का बड़े पैमाने पर वीआर हेडसेट पर  हमला हो सकता है, क्योंकि इससे संबंधित कंपनियां हमेशा से अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए नई तकनीक का सहारा लेती रही हैं। उल्लेखनीय है कि एडल्ट इंडस्ट्री एचडी और 3डी तकनीक को पहले से ही अपना चुकी है, तो इसमें वीरआर हेडसेट के लिए पोर्नहब ने तो पहल भी कर दी है। ऐसे नई पीढ़ी पर नजर रखना काफी मुश्किल हो सकता है।    

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