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विश्व पर्यावरण दिवस

5 जून 2016

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                               दिन पर दिन बढती जा रही  हमारी वैज्ञानिक प्रगति और नए संसाधनों से हम सुख तो उठा रहे हैं लेकिन अपने लिए पर्यावरण में विष भी घोल रहे हैं . हाँ हम ही घोल रहे हैं . प्रकृति के कहर से बचने के लिए हम अब कूलर को छोड़ कर किसी तरह से ए सी खरीद कर ठंडक का सुख उठाने लगे हैं लेकिन उस ए सी  से निकलने वाली विपरीत दिशा में जाने वाली गैस के उत्सर्जन  से पर्यावरण को और प्रदूषित कर रहे हैं . सभी तो ए सी नहीं लगवा  सकते हैं . इस भयंकर गर्मी से और वृक्षों के लगातार कम होने से पशु और पक्षी भी अपने जीवन से हाथ धोते चले जा रहे हैं . 

                        मैं  लम्बे लम्बे भाषणों को सुनती चली आ रही हूँ  और सरकार भी प्रकृति को बचने के लिए मीटिंग करती है और लम्बे चौड़े प्लान बनाते है और फिर वह फाइलों में दब कर दम तोड़ जाते है क्योंकि शहर और गाँव से लगे हुए खेत और बाग़ अब अपार्टमेंट और फैक्ट्री लगाने के लिए उजाड़े  जाने लगे हैं और अगर उनका मालिक नहीं भी बेचता है तो उनको इसके लिए विभिन्न तरीकों  से मजबूर कर दिया जाता है कि वे उनको बेच दें और मुआवजा लेकर हमेशा के लिए अपनी रोजी-रोटी और अपनी धरती माँ से नाता तोड़ लें. कुछ ख़ुशी से और कुछ मजबूर हो कर ऐसा कर रहे है। ऊंची ऊंची इमारतें और इन इमारतों में जितने भी हिस्से या फ्लैट बने होते हैं उतने ही ए सी लगे होते हैं . उनकी क्षमता के अनुरूप उनसे गैस उत्सर्जित होती है और वायुमंडल में फैल जाती है . हम सौदा करते हैं अपने फायदे के लिए, लेकिन ये भूल रहे है कि हम उसी पर्यावरण में  विष घोल रहे है ,जिसमें उन्हें ही नहीं बल्कि हमें भी रहना है, 

                    मोबाइल के लिए टावर लगवाने का धंधा भी खूब तेजी से पनपा  और प्लाट , खेत और घर की छतों पर काबिज हो गए लोग बगैर ये जाने कि इसका जन सामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है ? उससे मिलने वाले लाभ को देखते हैं और फिर रोते भी हैं कि  ये गर्मी पता नहीं क्या करेगी ? इन टावरों निकलने वाली तरंगें स्वास्थ्य के लिए कितनी घातक है ? ये भी हर इंसान नहीं जानता है लेकिन जब इन टावरों में आग लगने लगी तो पूरी की पूरी बिल्डिंग के लोगों का जीवन दांव पर लग जाता है . इन बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में पेड़ पौधे लगाने के बारे में कुछ ही लोग सोचते हैं और जो सोचते हैं वे छतों पर ही बगीचा  बना कर हरियाली  फैला रहे है . 

                     हम औरों को दोष क्यों दें ? अगर हम बहुत बारीकी से देखें तो ये पायेंगे कि  हम पर्यावरण को किस तरह प्रदूषित कर रहे हैं और इसको कैसे रोक सकते हैं ? सिर्फ और सिर्फ अपने ही प्रयास से कुछ तो कर ही सकते हैं . यहाँ ये सोचने की जरूरत नहीं है कि  और लोगों को चिंता नहीं है तो फिर हम ही क्यों करें? क्योंकि आपका घर और वातावरण आप ही देखेंगे न . चलिए कुछ सामान्य से प्रयास कर पर्यावरण दिवस पर उसको सार्थक बना ही लें ------


* अगर हमारे घर में जगह है तो वहां नहीं तो जहाँ पर बेकार जमीन दिखे वहां पर पौधे लगाने के बारे में सोचें . सरकार वृक्षारोपण के नाम पर बहुत कुछ करती है लेकिन वे सिर्फ खाना पूरी करते हैं और सिर्फ फाइलों में आंकड़े दिखने के लिए . आप लगे हुए वृक्षों को सुरक्षित रखने के लिए प्रयास कर सकते है . 

* अगर आपके पास खुली जगह है तो फिर गर्मियों में ए सी चला कर सोने के स्थान पर बाहर  खुले में सोने का आनंद लेना सीखें तो फिर कितनी ऊर्जा और गैस उत्सर्जन से प्रकृति और पर्यावरण को बचाया जा सकता है .

*  डिस्पोजल वस्तुओं का प्रयोग करने से बेहतर होगा कि  पहले की तरह से धातु बर्तनों का प्रयोग किया जाए या फिर मिट्टी से बने पात्रों को , जो वास्तव में शुद्धता को कायम रखते हैं,  प्रयोग कर सकते हैं . वे प्रयोग के बाद भी पर्यावरण के लिए घातक नहीं होते हैं . 

* अगर संभव है तो सौर उर्जा का प्रयोग करने का प्रयास किया जाय जिससे हमारी जरूरत तो पूरी होती ही है और साथ ही प्राकृतिक ऊर्जा का सदुपयोग भी होता है . 

* फल और सब्जी के छिलकों को बहार सड़ने  के लिए नहीं बल्कि उन्हें एक बर्तन में इकठ्ठा कर जानवरों को खिला दें . या फिर उनको एक बड़े गमले में मिट्टी  के साथ डालती जाएँ कुछ दिनों में वह खाद बन कर हमारे हमारे पौधों को जीवन देने लगेगा . 

* गाड़ी जहाँ तक हो डीजल और पेट्रोल के साथ CNG और LPG से चलने के विकल्प वाली लें ताकि कुछ प्रदूषण को रोक जा सके .  अगर थोड़े दूर जाने के लिए पैदल या फिर सार्वजनिक साधनों का प्रयोग करें तो पर्यावरण के हित में होगा और आपके हित में भी . 

* अपने घर के आस पास अगर पार्क हो तो उसको हरा भरा बनाये रखने में सहयोग दें न कि  उन्हें उजाड़ने में . पौधे सूख रहे हों तो उनके स्थान पर आप पौधे लगा दें . सुबह शाम टहलने के साथ उनमें पानी भी डालने का काम कर सकते हैं .

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रचनाएँ
merasarokar
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लघुकथा ! बहुत दिनों से सोच रही थी कि कभी किसी वृद्धाश्रम में जाऊं और वहाँ रहने वाले बुजुर्गों से मिलूँ - कुछ पल उनके साथ बैठ कर शायद कुछ पा सकूं और कुछ दे सकूं। पता चला कि घर से कुछ ही किलोमीटर की दूर पर एक वृद्धाश्रम है। उस दिन निकल ही ली। वृद्धाश्रम के परिसर में गुट बनाकर बैठे बुजुर्ग हँस रहे थे , बातें कर रहे थे, पुरुष औरमहिलायें दोनों ही थे। लग रहा था कि जैसे एक परिवार जैसा हो। वही देखा दूर बेंच पर एक</s
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जल संरक्षण !

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हाँ मैं रिश्ते बोती हूँ , धरती पर उन्हें रोपकर निश्छल प्यार ,निस्वार्थ भाव,और अपनेपन की खाद - पानी देकर उनको पालती हूँ। धूप , पानी और शीत से कभी बहा कर पसीना कभी देकर सहारा कभी पौंछ कर आंसू उन्हीं के लगाकर काँधे समेत कर सिसकियाँ बेटी , बहन और बहू के रिश्ते जीवन में संजोती हूँ । बेटे , भाई और दोस्त क

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नारी हूँतो यही  प्रश्न है , जीवन समर्पित किया अपनी हर उम्र में बेटी बनी,एक गर्भ से,एक घर में, जन्म लेकर पली बढ़ी  सब कुछ किया.पर कही पराया धन ही गयी.बेटा सब कुछ पा  गया.उसका वही घर बना। मुझको कहा गया --ऐसा 'अपने घर ' जाकर करना ये मेरे वश में नहीं.पराया धनअपनी समझ सेसब कुछ देकर विदा कियाजिनकी अमानत

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माँ मुझको बतलाओक्यों मुझको सौपातुमने इन हत्यारों को?दूर कहीं जाकरफेंका था मुझकोनिर्जन  गलियारों में.बोल नहीं सकती थीपर अहसास तोकर ही सकती थी ,एक फटे कपडे मेंलिपटीकब तक झेल सकी थीमैंबारिश के तेज थपेडों कोचली गईदुनिया की नजरों में.पर बसी हूँअब भीतुम्हारी सूनी आंखों मेंमैंने भी देखा थामाँ तुमकोओंठ भीं

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29 जून 2016
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कोई शब्द या वाक्य क्या एक पूरे विचार और लेख का वॉयस बन जाता है . बेटी या लड़कियों के प्रति हमारा नज़रिया दिन पर दिन बदलता जा रहा है लेकिन वह कितने प्रतिशत में ? हम क्या इसके बारे में कोई अनुमान लगा सकते हैं ? शायद नहीं .            आज सिर्फ एक संवाद सुना और पता नहीं कितने सवाल पैदा हो गये ? क्या पुरुष

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1 जुलाई 2016
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8 अगस्त 2016
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           जीवन में बेटे अपना फर्ज निभाते है और अपने माता-पिता या फिर अपने पालने वाले की देखभाल करते हैं और हमारे सामाजिक मूल्यों के अंतर्गत यही न्यायसंगत माना जाता है. लेकिन बदलते हुए परिवेश और सामाजिक वातावरण में बेटे इस कार्य को न भी करें तो कोई अचरज की बात नहीं समझी जाती है. माता-पिता अगर सक्षम

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तीन चरित्र : आज फिर

28 सितम्बर 2016
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जीवन में लोगों के लिए , ये तीनों महान आत्माएं प्रश्नों के उत्तर लेकर फिर से आयीं हैं। कलयुग में उठ रहे प्रश्नों को लेकर अपने चरित्र पर उछलते कीचड से बचाने को अपने अस्तित्व को खुद आये हैं। ये तीनों राम , सीता और लक्ष्मण हैं। हम बार बार उठाते है प्रश्न ?राम को कायर , विवश और स्वार्थी

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ठंडा ठंडा - कूल कूल : कितना घातक ?

2 अक्टूबर 2016
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आज की जीवन शैली और जीवन में बढ़ता तनाव - इंसान को परेशान करके रखा है। चाहे ऑफिस वालों , चाहे बिज़नेस वालों या फिर चाहे कॉर्पोरेट जगत में लगे लोग हों। अपनी जगह को , अपनी साख को या फिर अपने परिवार को सुख से रखने के लिए संघर्ष की स्थिति से गुजरने वालों लोगों की संख्या करीब करीब 80 % है। इसमें महिला

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अपनी पसंद !

14 अक्टूबर 2016
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हम लड़के और लड़कियों के भेद को ख़त्म करने के लिए सतत प्रयास कर रहे है लेकिन आज भी आज की पीढी में ऐसे लोग हैं , जिन्हें सिर्फ और सिर्फ लड़के चाहिए। इसके पीछे उनकी क्या मानसिकता है ? इसको इस घटना से समझा जा सकता है। बात अभी कल की ही है मेरे एक रिश

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