भक्त बनने की परंपरा हमारे देश में सदियों से है ।पहले भगवान ,यहाँ तक तो ठीक था , फिर संत फिर नेता ,अभिनेता ....सबके। इन भक्तों की अपनी पहचान नहीं होती क्या, इन्हें तो कोई न कोई पूजने को चाहिए कभी कांग्रेस नेता कभी वामपंथी ,कभी भाजपाई नहीं कन्हैया भी चलेंगें हद है ऐसे चोंचलों की।विचारधारा मानने तक बात ठीक है।आदर्श होने तक तो ठीक है वैसे मेरा कोई आदर्श नहीं हैं ,हाँ कुछ लोग हैँ जो इस खांचे के आस-पास फिट बैठते हैं नीलेश मिसरा, सौरभ द्विवेदी ,मनीषा पांडेय, साइना नेहवाल बस ,पर हमसे तो भगवान की पूजा भी नहीं होती। बस बड़ी कोफ्त होती है इन भक्तों से ,इतना ही कह सकते हैं भगवान बचाए इन भक्तों से।
आलोक सिन्हा
05 जून 2016बिलकुल सच कहा आपने | दरअसल ये आत्मिक भक्त नहीं होते | ये बरसाती भक्त होते हैं | जो मोसम के अनुसार अपनी भक्ति का आधार बदल लेते हैं |