shabd-logo

भूखा बचपन

9 जून 2016

1604 बार देखा गया 1604
article-image


रोटी की सही कीमत जानता है ,

भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,
ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,
जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,
जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |


झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से पहले ,
जो रोटी के कुछ टुकड़े कहीं और खाकर चल रहा था उससे आगे |


जलन होती है उस भूखे बेसहारा बच्चे को उस कुते के सौभाग्य से ,
जो बंगले के लॉन में बैठा मजे से करता है, हर सुबह मक्खन लगी रोटी का नाश्ता |


सोचता है वह भूख से बेहाल बच्चा कि वह यदि किसी बंगले का कुता होता,
तो वह भी खाता भरपेट मक्खन लगी रोटी ,
और नहीं भटकता यूँ जुगाड़ने को रोटी |


बीनता है बेचारा बच्चा, सड़ांध मारते घूरे पर पड़ा कचरा, ढूँढने को ऐसी कोई वस्तु ,
जिसे बेच कर वो पा सके कुछ पैसे और खरीद सके रोटी ,
भरने को पीठ से चिपके उस पापी पेट को, जो ढंग से कभी पूरा भरा ही नहीं |


अधभूखा सोने को मजबूर वह बच्चा, रोज देखता है एक ही सपना ,
हाथ में पकड़ी भोजन भरी थाली का |


पर अभागा सपने में भी रह जाता है अधभूखा |


खा चुकता है जब वो सपने में ,
नरम -गरम ,हल्की-फुल्की,गोल -मटोल ,चिकनी -चुपड़ी ,फूली -पतली
मक्खन लगी स्वादिष्ट पहली रोटी ,
तब भाग जाता है छीन कर थाली ,
दो पैरों पर चलनेवाला कोई भयानक प्राणी |


इस पर एक चीख के साथ टूट जता है उसका सपना
और भूखा बचपन सहला कर रह जाता है, चिपका पेट अपना |


*********************************************************

भूख से बेहाल, बेसहारा, गरीब बच्चे की दारुण दशा का कारुणिक चित्रण प्रस्तुत करती कविता

दुर्गेश नन्दन भारतीय की अन्य किताबें

रवि कुमार

रवि कुमार

कविता जी , किसी पत्थर को पिघलाने के लिए काफी है ये कविता . जितनी भी तारीफ करूँ कम है

5 जनवरी 2017

4
रचनाएँ
sahityasangam
0.0
साहित्य की विभिन्न विधाओं का सरस संगम
1

देख असर ये होली का

9 मार्च 2016
0
4
0

######## देख असर ये होलीका ########@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@गूँज रहा है स्वर फिजा में, होली की ठिठोली का ।घाव भरने लगा है मानो,कड़वे बोल की गोली का ॥रंग बदल रहा है मौसम , गौरी सूरत भोली का ।छायी बहार हर चमन में ,देख असर ये होली का ॥गीत गूँजने लगा कानों में, मस्तानों की टोली का ।होने लगा दिल पे असर , हमजो

2

भूखा बचपन

9 जून 2016
0
5
1

रोटी की सही कीमत जानता है ,भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से प

3

लूट की झूट

9 जून 2016
0
0
0

रिश्वत खोरी पर व्यंग करती कविता -लूट की छूट लूट कर यात्रियों को लूटेरों ने ,लौटा दिया सारा धन -माल |सोचने लगे यात्री सारे ,क्या है यह कोई इनकी चाल ?|डर रहे थे सब यात्री ,पर एक बालक बोला करते खाज |डाकू सर प्लीज बताओ , इस दया का क्या है राज ?|डाकू बोला ,यह दया नहीं है ,यह है रिश्वत का सवाल |हर लूट पर

4

विडम्बना

9 जून 2016
0
1
0

हवाई सफ़र ने दुनिया को ,बहुत छोटा कर दिया |आराम दिया विज्ञान ने ,पर सुकून सारा हर लिया ||दूरियां पार कर ली हमने ,सात समंदर पार की |पर दूर हो गये दिल हमारे ,क्या बात करें संसार की||छोटी हो गयी दुनिया अपनी ,पर फ़ैल गये शहर विकराल |मोबाईल का ज़माना आया ,फैला अजब अंतर जाल ||अजनबी अब फेसफ्रेण्ड है ,पर नहीं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए