सांझ अब ढलने लगी है, हे प्रिये तुम लौट आओ . सांस अब थमने लगी है , हे प्रिये तुम लौट आओ . आँख मैं आंसू भरे हैं, स्वर हुआ है अनसुना, हो गई है आज तुमसे दूर क्यों संवेदना . क्यों घुटन सी हो रही है , क्यों चुभन सी हो रही है . अहसास क्यों खामोश हैं , वो छुअन रो सी रही है . आस अब पलने लगी है , हे प्रिये तुम लौट ..... साया लिपटता है तिमिर मैं, देर है काफी सहर मैं . मन की बेचैनी किसी से क्या कहे ये सहूँ कैसे विरह के शब प्रहर मैं और अब शीतल हवा चलने लगी है ,साँझ अब ढलने लगी है हे प्रिये तुम ............... <br>
स्नेहा
14 जून 2016बहुत सुन्दर तड़प के भाव है. अच्छा लिखा है. पर ठीक से दिख क्यों नही रहा ? क्या आप इसे फिर से कट और पेस्ट करेंगे.