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वादा गुरुदक्षिणा का (कहानी) - राम लखारा 'विपुल'

15 जून 2016

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जानकी मैडम???


बाहर से रौनक की आवाज सुनाई दी। जानकी अपना नाम सुनते ही रसोई से बाहर निकली, गरमी के दिन थे और वो पसीने से भीगी हुई थी। बाहर आकर उसने देखा रौनक आया है।


"अरे आईये ना आप।" जानकी ने मुस्कुराते हुए घर का दरवाजा खोल दिया।


रौनक गणित का ज्ञाता और शोधार्थी था और कक्षा पांचवी तक जानकी का विद्यार्थी रह चुका था। जानकी एक प्राईमरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका थी। रौनक के छात्र दिनों में वह उसकी गणित की अध्यापिका हुआ करती थी।


जिस प्रकार कुम्हार अपने बनाए हुए घड़ों को देखते ही पहचान जाता है, वैसे ही जानकी ने रौनक को देखते ही पहचान लिया था।


रौनक को जानकी मैडम का आप कहना अखरा था, साथ ही उसे आश्चर्य भी था कि मैडम ने इतने वर्षों बाद भी उसे नाम सहित पहचान लिया था।


'कहो रौनक आज यहां कैसे आना हुआ?' जानकी ने उसी मृदु मुस्कान के साथ पूछा।

'वो मैडम! मैनें कल ही सुना कि आप यहां रहती है, तो मैं आपसे मिलने के लिए यहां आ गया।'

'अच्छा! यह तो बहुत अच्छा किया तुमने, जो मिलने के लिए आ गए।'

'जी शुक्रिया मैडम।'


'रौनक आजकल आप करते क्या हो?' जानकी ने पूछा।


'मैडम पहली बात तो मुझे आप मत कहे, आप के सिवाय कुछ भी कह लीजिए। अपनी शिक्षिका के मुंह से आप शब्द सुनकर ही दिल पर चोट सी लगती है।' रौनक ने अपनी व्यथा समझाते हुए कहा।

'अरे अरे! ऐसी कोई बात नहीं थी। अच्छा बताओं क्या करते हो आजकल तुम।' जानकी ने स्थिति संभालते हुए कहा।

'मैडम मैं गणित विषय में पीएचडी कर चुका हूं और अब दिल्ली के एक काॅलेज में प्रोफेसर हूं।'


'अरे वाह! गणित विषय में। यह तो बहुत अच्छी बात है। जानकी खुश होकर बोली, वह अपने विद्यार्थी को गणित का प्रोफेसर बनते देखकर खुश थी। हां मैडम! और अभी कुछ महीने पहले ही मैनें बीजीय गणनाओं को सटीकता और शीघ्रता से हल करने के लिए नए समीकरण का प्रतिपादन किया है।' रौनक ने गर्व से कहा।


यह सुनते ही जानकी का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। 


'क्या!!! क्या वह रौनक तुम ही थे? जिसके बीजीय सूत्र की चर्चा कुछ महीनों पहले के राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय अखबारों में थी।'

'जी मैडम।'

'तब तो रौनक मैं यह जानकर बहुत खुश हूँ , मुझे गर्व भी है कि मैनें भी कभी तुमको गणित पढाई थी।'

'हां मैडम आपके ज्ञान ने मुझे इस मुकाम तक पहुंचने में बहुत मदद की है। वास्तव में आज मैं आपसे लिए गए एक वादे को पूरे करने के लिए आया हूं।'

'कौनसा वादा? जानकी ने अचंभे से पूछा।'

'वही वादा मैडम। जब आपने हम पांचवी कक्षा के बैच को विदाई देते हुए गुरुदक्षिणा के नाम पर लिया था कि आगे चलकर हम सब कुछ अच्छे बन जाए तो आपसे एक बार मिलने के लिए जरूर आए।' रौनक ने बीती याद ताजा करते हुए कहा।

'ओहहह! रौनक। इसका मतलब आज अपना वादा पूरा करते हुए तुम मुझसे मिलने के लिए आ गऐ। बहुत अच्छा किया। तुम न आते तो मैं इसी भ्रम में जीती रहती कि इस बीजीय सूत्र की खोज करने वाला रौनक कोई और ही है। तुमने मुझे गर्व करने का मौका दिया है, मेरे बेटे!' जनकी ने भावुक होते हुए कहा।


'मैडम मैनें आपसे लिया वादा पूरा किया है, लेकिन आधे रूप से। आज मैं इसे पूरा करना चाहता हूं।'


'कैसे?' जानकी मुस्कुराते हुए बोली।


'मैडम मैने इस बीजीय समीकरण का नाम आपके सम्मान में रखा है - जानकीयन फाॅर्मूला!!और इस नए नाम से लिखे हुए समीकरण के शोधपत्र की प्रतिलिपि मैं आज आपको गुरूदक्षिणा में सौंप रहा हूं।' रौनक ने जानकी के हाथ में शोधपत्र की काॅपी देते हुए कहा।


जानकी यह सुनकर द्रवित हुई और उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।


'प्रिय रौनक! तुम्हारे जैसा एक शिष्य भी किसी को मिल जाए तो वह शिक्षक धन्य होगा। तुम्हारा गुरूप्रेम अतुलनीय है।


इतना सुनकर रौनक ने जानकी के पैर पकड़ लिये।


लेखक - राम लखारा 'विपुल' 

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