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अजनबी जब से तुमको देखा है - राम लखारा 'विपुल'

16 जून 2016

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टेबल पर बैठ कर सोचता हूं क्या लिखूं? भविष्य को दुलारू या भूत को दुत्कारू।


कुछ भी तो नहीं लिखा जाता।


अभी आॅफिस पहुंचा हूं। चारों तरफ कागज के बण्डल बार बार यह एहसास करवाते रहते है, आरसी! दुनिया में अकेले तुम ही उपेक्षित नहीं हो। 


स्वीपर का काम है, मेरे आते ही सफाई करना। कर रहा है। 

अपने मोबाईल के आॅडियो प्लेयर से उसने गाना लगाया है, मेरे प्रिय गीतकार निदा फाजली का लिखा, लता का गाया फिल्म 'स्वीकार किया मैनें' का गाना ”अजनबी जब से तुमको देखा है“। 


अरे! कितना आसान है?


आप सोचो क्या लिखना है? तभी कोई झोंका आपके कान के पास से गुजरते हुए बता जाता है कि क्या लिखना है।

मनोवैज्ञानिक और बड़े लेखक इसे आकर्षण का नियम कहते है। हां! हां। यही कहते है।


फिर से खो गया हूं, उस अजनबी की याद में। जब पहले पहल देखा था, आज भी तो वैसी ही लगती है। 


आंखे भी कितनी खुदगर्ज है जो चीज उन्हें अच्छी लगती है, वो हमेशा उसे अच्छी दिखाती है।


#अतीत_के_पन्नों_से

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