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लघुकथा- गलत मतलब By राम लखारा 'विपुल'

17 जून 2016

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गांव के नुक्कड़ पर लगे बड़े से बरगद के पेड़ की छाया में मोहन और दीनू काका बैठे होते है।


बातों ही बातों में गाँव के ही वृद्ध श्यामलाल का जिक्र छिड़ते ही दीनू काका मोहन से कहते है - 

“अरे मोहन ! तुम श्यामलाल से मिलने नहीं जाते। वो तो तुम्हारे पिताजी के परम मित्र थे। तुम्हे पता होगा कि श्यामलाल की हालत आजकल बहुत खराब होने लगी हैं, और हो भी क्यों नहीं। उसकी उम्र 85 से पार हो चली हैं। संतान उनके कोई थी नहीं और बीवी भी कुछ बरस पहलें ही साथ छोड़ कर चली गयी। ऐसे में तुम्हे उनके घर जाकर उनकी खैर खबर तो पूछनी चाहिए।”


“क्या करू? दीनु काका! मुझे श्याम काका की बड़ी चिंता है लेकिन श्याम काका के भतीजे राजु को तो आप जानते ही है कि वो कितना झगड़ालू किस्म का हैं? मुझे मालूम हैं कि उनकी तबीयत आजकल कुछ ज्यादा ही ठीक नहीं रहती, लेकिन मुझे मन ही मन राजू के झूठे आक्षेपों से डर लगता हैं। जैसे ही मैं श्याम काका से मिलने जाऊंगा राजू जरूर इस बात पर झगड़ा करने आ जायेगा कि मैं श्याम काका की जायदाद हथियानें के लिए उनके पास जा रहा हूं। वह तो यही समझता है कि मैं उन्हें बहला फुसलाकर अपने पक्ष में कर रहा हूं और एक ना एक दिन उनकी जायदाद पाने में सफल भी हो जाउंगा। राजू के साथ दुर्बुद्धि गाँव वाले भी यही समझेंगे। बस इसी कारण मैं श्याम काका के घर उनकी तबीयत पूछने नहीं जाता। किसी आने जाने वाले से ही उनकी तबीयत पूछ लेता हूं।“ मोहन ने अपनी लाचारी दीनू काका को बताते हुए कहा।" 


दीनू काका भी मोहन की ऐसी बात सुन कर चुप हो गये और मन ही मन सोचने लगें- बात तो मोहन की भी सहीं हैं- 

आज के जमाने में किसी की तबीयत पूछने जाओं तो भी लोग गलत मतलब निकाल लेते हैं।


- राम लखारा 'विपुल' 

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