shabd-logo

क्यां यही प्यार है ...?

18 जून 2016

215 बार देखा गया 215
featured image




अब बारिश होने लगी थी जोर की, बिजली भी कड़की थी, लोग अपने बैग सर पे रख के भागे, कुछ रेन कोट में थे, कुछ छाते में, पता ही नहीं चला, उस पुल पर कब तुम और में अकेले खड़े रह गए..अँधेरा सा हो गया है . . लेकिन हमारे हाथो की पकड़ काम नही हुयी थी। 


फिर वो बोली : छोड़ना भी मत....यूँही पकड़े रहना... मैं खुद को टूटते हुए देखना चाहती हूँ तुम्हारी बाहों में


मैंने कहा : कुछ टुकड़े मैं तुम्हारे करता हूँ, कुछ तुम मेरे करो, फिर हवा के एक झौंके में उड़ जाएंगे, जिगसॉ पज़ल की तरह जुड़ के एक नयी तस्वीर बनाएंगे.


जब बारिश थमी, वो मेरे सीने में मुंह छुपाये हुए बोली..तुम एक सपने की तरह मेरी आँखों में उतरे... वो सपना जिस में मैंने मेरे हिस्से की ज़िन्दगी मेरे हिसाब से जी ली.....


और मैंने उसके चेहरे को हाथो में भर कर कहा...वो सपना जिस में, मैंने वो किरदार जिया, जिसे एक कहानीकार अपने उपन्यास के नायक के रूप में गढ़ता है...जिसकी में शायद कल्पना ही कर सकता हूँ..


वो बोली, गुज़रे तीन साल में तुम, मुझ में से हो कर अनगिनत बार गुज़रे..... जाने कितनी बार जी उठी मैं, जाने कितनी बार मरी ।


मैंने कहा, जिंदगी के सफर में धूप छाँव होती ही है...इसे जीना-मरना भी कह सकते है...या जिंदगी जीना भी..मैंने धूप में भी तुम्हे देखा और छाँव में भी तुम्हे देखना चाहा..


उसने कहा, गुज़रे एक साल में तुम्हारे नाम से, मेरे दिल की सरहदें, जाने कितनी बार आबाद हुई, जाने कितनी बार उजड़ी ....


मैंने कहा : मैं रिफ्यूजी ही तो हूँ, सरहदों से मेरी कभी नहीं बनी..


आज फिर से बारिश थम चुकी है ..लेकिन ठंडी हवा के साथ एक ठंडी झन्न पड़ रही है ..हमारे दरम्यान एक लम्बी ख़ामोशी है ..चारो तरफ धुंधलका सा छाया हुआ है …अब उँगलियों ने एक दुसरे को विदा कर दिया है ......और अपने होटल की बालकनी से ठंडी हवा के झौंकों के साथ सारी रात उस ब्रिज को देखता रहा...


और उसका मेसेज पढता रहा..."जानती हूँ की तुम नहीं हो जानती हूँ के कभी हो भी नहीं सकते पर फिर भी तुम्हारे होने.... तुम्हारे और मेरे यूँ होने के सपने देखना अच्छा लगता है" ।


शून्य में ताकते हुए बस यही सोचता रहा..


तुम खेलो तो भी लगता है प्यार है....


समाप्त

मृदुल पाण्डेय की अन्य किताबें

1

मिटटी का पुतला

9 जून 2016
0
10
4

भाग :1“ अरे मेरीमुमताज ! अब तुम बड़ी हो गयी हो गयी हो और अभी भी तुम मिटटी से खेल रही हो ... पागलकहीं की ! “ कहते हुएमाधव ने मुमताज की चुटिया खीच ली .मुमताज तेजी से पीछे पलटी और गीली मिट्टी से सने अपने हाथ माधव केखादी के कुरते पर पोछते हुए बोली “ शहजादे माधव मियां ! मै मिट्टी से खेल नही रही हूँ , मै त

2

सहर होने तक

10 जून 2016
0
4
0

उसकी आँखे अंदर तक धँस चुकी थीं, कम रोशनी में देख ले तो बच्चे डर जायें, बालों में कब तेल लगाया था याद भी नहीं, सर धोये हफ्तों गु़ज़र गये, Zoology, Botany, Physics, Chemistry, Organic, Physical, Inorganic सारी किताबों में जगह-जगह हल्दी के निशान लगे हुऐ थे, दाल , चावल, लहसुन मसालों की महक रह रह कर किताब

3

तुम सा कोई और …

14 जून 2016
0
3
1

ऑफिस से बाहर निकला तो बारिश की हल्की फुहारेबदन को भिगो रही थी ,दिन शाम केसाये से गुजरता हुआ रात के आगोश की और बढ़ चूका था , मेरी मंजिल यंहा से 19किलोमीटरदूर मेरा घर था ,मुझे पता हीनही चला कब बाइक हाइवे पर आई और कान में लगी Hands-free से होते हुए ताल Movie के गाने दिल तक पहुचने लगे , हाँ मुझे आज भी या

4

अनजान रिश्ता

15 जून 2016
0
3
0

पारुल मेहता , खिड़की के पास बैठी पिछले 40 मिनट से से बारिश को देख रही थी , बारिश की बूंदे उस तक आना चाहती थी , उसको भिगोना चाहती थी लेकिन बारिश की बूंदो और पारुल के बीच में कांच की एक दीवार थी ,पारुल बूंदो को देख तो सकती थी पर महसूस नही कर सकती थी कुछ उस तरह ही जैसे उसकी ज़िंदगी में अनदेखी दीवार खड़ी ह

5

धुंध

17 जून 2016
0
7
3

स्नेहा ने अपनी डेस्क का काम निपटा कर घड़ी कीतरह देखा 3बजने वाले थे , उसे बहुत तेज़ भूख लग रही थी ,किसी बात पर नाराज हो कर आज वो अपना लंच बॉक्स नही लायी थी ,उसे पति के हाथ कि बनायीं मैगी की याद आ रही थी ,अनजानेमें ही उसने अपने पति का नंबर डायल कर दिया ," मुझे भूख लगी है "" तो कुछ खा लो "" नही मुझे मैगी

6

क्यां यही प्यार है ...?

18 जून 2016
0
3
0

अब बारिश होने लगी थी जोर की, बिजली भी कड़की थी, लोग अपने बैग सर पे रख के भागे, कुछ रेन कोट में थे, कुछ छाते में, पता ही नहीं चला, उस पुल पर कब तुम और में अकेले खड़े रह गए..अँधेरा सा हो गया है . . लेकिन हमारे हाथो की पकड़ काम नही हुयी थी। फिर वो बोली : छोड़ना भी मत....यूँही पकड़े रहना... मैं खुद को टूटते

7

.. वो आखरी कॉल

20 जून 2016
0
2
0

मोहित ने चाय का आखिरी घूंट पिया और घडी की ओर देखा , शाम के 5 बजे थे , ऑफिस बंद होने में सिर्फ एक घंटा बचा था और अभी बहुत काम बाकी था , तभी उसका मोबाईल बज उठा , स्कीन पर स्नेहा का नाम देख कर मोहित बरबस ही मुस्करा उठा , अपनी शादी के पूरे 3 महीने और19 दिन बाद पहली बार स्नेहा ने मोहित को कॉल कर रही थी ,

8

भंवर

23 जून 2016
0
1
0

जंहा तक नजर जाती सिर्फ पानी ही पानी , गहरा नीला पानी , और इस समंदर केबीचो बीच एक छोटा सा मालवाहक जहाज हिचकोले खा रहा था , इस जहाज में 300 से ज्यादा लोगभरे हुए थे , इस भीड़ में सब थे बच्चे ,बूढ़े , जवान स्त्री पुरुष सब   ये लोग भागे थेअपने उस वतन को छोड़ कर जिसने कभी उन्हें अपना नही माना था , ये निकले थ

9

“ रामलाल को आज ही मरना था ”

6 जुलाई 2016
1
7
2

 सुबह के 10 बजे थे , किस्सा ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था , तभी उसका फ़ोन बजा ... उसके एक दूर के रिश्तेदार रामलाल जी जोकिशायद 89 वसंत देख चुके थेनही रहे थे . और किस्सा को ऑफिस के बजाय वंहा जाना पड़ा .किस्सा जब वंहा पंहुचा तो देखा घर बहार बरमादे से लेकर सड़कतक ” रंगमहल टेंट हॉउस “ से आई लाल रंग की कुर्सिय

10

कानपुर की घातक कथाएँ

12 जुलाई 2016
0
3
0

हाँ तो बात ये है कि, दुनियां के अनगिनत शहरों की तरह एक शहर और भी है कानपुर . ये क्यों कैसे और किसने बसाया ये जानना अलग बवाल है . अभी सीन ये है की तमाम धार्मिक – अधार्मिक , भौतिक – अभौतिक , ऐतिहासिक –आधुनिक खूबियों खामियों के बीच घटना -दुर्घटना ये है की हम कानपुर में बसते है और हम में थोडा सा कानपुर 

11

मामा समोसे वाले

21 जुलाई 2016
1
2
0

8 जुलाई 2009 को शाम 5 बज कर 17 मिनट पर कानपुर के मोहल्ला जवाहर नगर की सरहद से लगे नेहरुनगर के कमला नेहरु पार्क वाली गली में मास्टर त्रिभुवन शुक्ला के घर में चिक चिक मची थी . बवाल ये रहा की शुक्ल महराज बम्बारोड सब्जी मंडी से 20 रुपिया के सवा किलो दशहरी आम लाये थे . और शुक्लाइन चाची आम की पन्नी आंगन म

12

..... हाँ तो फिर बोलो “ हैप्पी हिंदी डे “

15 सितम्बर 2016
0
0
0

पहलू :01 “ हिंदी तेरे दर्द की किसे यहाँ परवाह.. एक अंग्रेजी साल भर , एक हिंदी सप्ताह .” “ देश के एक बड़े संस्थान ने हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर अपने विचारो को रखन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए