shabd-logo

विज्ञान कथा परिवर्तन : भाग - 1

19 जून 2016

930 बार देखा गया 930

लेखक - जीशान जैदी 


बेरोज़गारी के धक्कों ने उसे बेहाल कर दिया था. दो दिन से उसके पेट में एक दाना भी नहीं गया था. मीठे पानी को तो वह बहुत दिन से तरस रहा था, क्योंकि पानी अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति हो चुका था. समुन्द्र का खारा पानी वह किसी तरह पी रहा था. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुन्द्र में नमक कम हो गया था और कुछ हद तक उसका पानी पीने योग्य हो गया था. गरीबों के लिए यही पानी अब भूख प्यास मिटाने का एकमात्र सहारा बचा था.

'अगर दो तीन दिन में मुझे नौकरी न मिली तो मैं मर जाऊँगा.' उसके शरीर ने उसके मन से कहा. 'लेकिन कैसे?' मन के इस प्रश्न का उसके शरीर के पास कोई जवाब नहीं था. पृथ्वी पर अब कंप्यूटर तथा रोबोट युग अपने चरम पर था. निम्न दर्जे के सारे काम रोबोट तथा कंप्यूटर करते थे, तथा उच्च दर्जे पर जो लोग थे उनमें से हर एक की स्वयं की कंपनी थी, जिसका सञ्चालन उनके स्वयं के परिवार के हाथों में था. समुन्द्र के किनारे घूमते हुए एकाएक उसकी दृष्टि अखबार के एक टुकड़े पर पड़ी जिसमें कोई इश्तिहार छपा था. पढ़कर उसकी ऑंखें चमक उठीं. इश्तिहार में ऐसे बेकार लोगों की ज़रूरत थी जो अपने शरीर पर किसी कंपनी का इश्तिहार छपवाकर पैसा कमाने के इच्छुक हों. उसने अखबार का टुकडा जेब में रखा और उसपर लिखे पते को ढूँढने चल पड़ा.

-------------

कंपनी के सामने उसी के जैसे बेकारों की एक लम्बी लाइन लगी हुई थी. जिसे चार ट्रैफिक रोबोट कंट्रोल कर रहे थे. जब भी कोई व्यक्ति लाइन से तितर बितर होकर आगे बढ़ने की कोशिश करता, रोबोट का एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे वापस अपनी जगह पहुँचा देता था.

आखिरकार शाम को उसकी बारी आई. एक कंप्यूटर ने उसके शरीर का एक्स लेसर किरणों की मदद से पूरा जायेज़ा लिया. "तुम्हारा नाम?" कंप्यूटर के स्पीकर द्वारा पूछा गया.

"आनंद!" उसने जवाब दिया. कंप्यूटर ने दो तीन सवाल और पूछे और फ़िर उसे ओ.के. कर दिया. आनंद को दूसरे कक्ष में पहुँचा दिया गया. जहाँ उसके शरीर के ऊपरी कपड़े उतारकर उसके सीने तथा पीठ पर कंपनी का विज्ञापन तैयार किया जाने लगा.

शरीर पर विज्ञापन की शुरुआत इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में ही हो गई थी, और बाद में तो यह एक आवश्यकता बन गई थी. क्योंकि पृथ्वी पर कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहाँ होर्डिंग या बैनर लगाया जा सके.

कंपनी के एग्रीमेंट के अनुसार अब आनंद को छः महीने तक बिना किसी ऊपरी वस्त्र के रहना था. लेकिन आनंद अब खुश था क्योंकि छः महीने तक उसकी भूख मिटने का इन्तिजाम हो गया था. कई दिनों बाद उसने एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाया और कुर्सी पर पैर फैलाकर सोचने लगा.

'मेरा ख्याल है कि मुझे साफ पानी बनने की फैक्ट्री खोल लेनी चाहिए. आजकल इसी वस्तु की सबसे अधिक डिमांड है.' उसने सोचा. उसकी जेब में जो रकम थी उसे दिखाकर किसी भी बैंक से लोन मिल सकता था. समुन्द्र के पानी से स्वच्छ पानी बनाने की फैक्ट्री खोलकर कई लोग अरबपति बन चुके थे.

---------------

आनंद ने बैंक से लोन लेने के लिए अपना प्रोजेक्ट तैयार किया. एक बैंक ने उसका लोन स्वीकार कर लिया. लेकिन पेमेंट के लिए अब उसे ज़रूरत थी कम से कम चार हज़ार वर्ग मीटर समुन्द्र की. समुन्द्र में इतनी जगह लेने के लिए भी अच्छी खासी रकम की ज़रूरत थी. क्योंकि सागरों के अलग अलग भागों पर विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिकार था. ये कम्पनियाँ लोगों को शुद्ध पानी बनाने के लिए समुन्द्र का एक हिस्सा पट्टे पर देती थीं, और बदले में अच्छी खासी रकम वसूलती थीं.

एकाएक सामने हुए एक्सीडेंट ने उसकी विचार तंद्रा भंग कर दी. हवा में बिना पहियों के चलने वाली एक आलीशान कार अपनी दिशा भटक कर साइड की पहाड़ी से टकरा गई थी, और पल भर में उसके परखच्चे उड़ गए. वह जल्दी से दौड़कर घटनास्थल पर पहुँचा. इस सुनसान स्थान पर उसे छोड़कर और कोई मनुष्य नहीं था. कार के पास एक अधेड़ व्यक्ति पड़ा हुआ था जिसके शरीर से खून बह रहा था. आनंद ने उसे टटोलकर देखा, उसका जिस्म बेजान हो चुका था. शिनाख्त के लिए उसने लाश की तलाशी ली. जल्दी ही उसे उस व्यक्ति का आइडेंटिटी कार्ड मिल गया. उस कार्ड के अनुसार वह व्यक्ति सीवाट कंपनी का जनरल मैनेजर था, जिसके कब्जे में मुंबई के समुन्द्र का एक बड़ा भाग था.


.......जारी है 

7
रचनाएँ
sciencefiction
0.0
हिंदी साइंस फिक्शन की दुनिया में आपका स्वागत है. इस ब्लॉग पर आप ज़ीशान ज़ैदी द्वारा लिखित हिंदी विज्ञान कथाओं का आनंद लेंगे। साथ ही यहां भारतीय (हिंदी) विज्ञान कथाओं से सम्बंधित समाचार, लेख व परिचर्चाओं को भी आप समय समय पर पढ़ सकते हैं.
1

विज्ञान कथा परिवर्तन : भाग - 1

19 जून 2016
0
1
0

लेखक - जीशान जैदी बेरोज़गारी के धक्कों ने उसे बेहाल कर दिया था. दो दिन से उसके पेट में एक दाना भी नहीं गया था. मीठे पानी को तो वह बहुत दिन से तरस रहा था, क्योंकि पानी अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति हो चुका था. समुन्द्र का खारा पानी वह किसी तरह पी रहा था. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुन्द्र में न

2

विज्ञान कथा परिवर्तन : दूसरा व अन्तिम भाग

20 जून 2016
0
1
0

एकाएक उसके दिमाग में एक विचार आया और उसकी ऑंखें चमकने लगीं. उसने एक बार फ़िर मृतक की तलाशी लेनी शुरू कर दी, और जल्दी ही उस व्यक्ति की भीतरी जेब से उसे सिक्के के आकार की एक माइक्रोचिप मिल गई. ये चिप दरअसल किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति के जिस्म का अनिवार्य अंग होती थी. उस व्यक्ति का समस्त पिछला रिकॉर्ड ,

3

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 1

25 जून 2016
0
2
0

---- ज़ीशान हैदर ज़ैदी एस.टी.आर. कालेज न केवल शहर का बल्कि देश का जाना माना इंजीनियरिंग कालेज है। उसकी क्वालिटी का चरचा इतना ज्यादा है कि देश भर के छात्र उसमें एडमीशन लेने के सपने देखते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम लोग वहाँ बड़े से बड़ा डोनेशन देने को तैयार रहते हैं। यहाँ के शिक्षक जब किसी को बताते हैं

4

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 2

26 जून 2016
0
0
0

डा0प्रवीर चुप होकर उसकी प्रतिक्रिया का इंतिज़ार कर रहा था। फिर माहम ने हिम्मत करके बोलने का फैसला किया, ''सर, एक्चुअली मैंने कभी आपको इस नज़र से नहीं देखा। ''तो अब देख लो। क्या बुराई है।" इस बार डा0प्रवीर ने नार्मल लहजे में कहा। माहम की हिम्मत थोड़ी और बंधी और उसने आगे कहा, ''सर। एक्चुअली मैं एक लड़

5

नक़ली जुर्म (कहानी) - तीसरा अंतिम भाग

27 जून 2016
0
1
0

''मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। मैं उससे प्यार करता था और वह मयंक के पीछे दीवानी थी। इसलिए मैंने अपनी यह मशीन उसके ऊपर आज़माने का फैसला किया।"''लेकिन यह मशीन काम कैसे करती है?"''एक ऐसी हक़ीक़त जिसकी तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है, वह ये कि जिसे हम बाहरी दुनिया के तौर पर देखते व महसूस

6

अपनी दुनिया से दूर (भाग-एक )

10 जुलाई 2016
0
0
0

----जीशान हैदर जैदी उसकी खूबसूरती सितारों को मात दे रही थी। उसके चेहरे पर वो कशिश थी कि नज़र एक बार पड़ने के बाद हटना गवारा नहीं करती थी। पूरे पाँच सौ लोगों की भीड़ में हर व्यक्ति उसी को घूर रहा था। लेकिन खुद उसकी निगाहें किसको ढूंढ रही हैं, यह किसी को मालूम नहीं था।‘‘एक्सक्यूज़ मी, क्या आप मेरे साथ

7

अपनी दुनिया से दूर (दूसरा अंतिम भाग)

12 जुलाई 2016
0
0
0

‘‘लेकिन तुम मुझे सम्राट से क्यों मिलाना चाहती हो?’’ शीले ने एक मशीन पर झुकते हुए पूछा। इस समय वह अपनी लैब में मौजूद था और ज़ारा भी उसके साथ थी। ‘‘दरअसल हमने सम्राट को गलत समझा। जब मैंने सम्राट से तुम्हारे बारे में बताया और कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं तो वह बहुत खुश हुए और कहा कि मैं किसी को ज़बर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए