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विज्ञान कथा परिवर्तन : दूसरा व अन्तिम भाग

20 जून 2016

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एकाएक उसके दिमाग में एक विचार आया और उसकी ऑंखें चमकने लगीं. उसने एक बार फ़िर मृतक की तलाशी लेनी शुरू कर दी, और जल्दी ही उस व्यक्ति की भीतरी जेब से उसे सिक्के के आकार की एक माइक्रोचिप मिल गई. ये चिप दरअसल किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति के जिस्म का अनिवार्य अंग होती थी. उस व्यक्ति का समस्त पिछला रिकॉर्ड , उसकी आदतें, बैक्ग्राउन्ड सभी कुछ उस छोटी सी चिप में स्टोर रहता था. ये चिप किसी भी व्यक्ति की शिनाख्त का महत्वपूर्ण ज़रिया थी.

आनंद ने आई कार्ड और चिप दोनों चीज़ें अपनी जेब में रखीं और उस व्यक्ति की लाश को समुन्द्र के हवाले करने के बाद वहां से रवाना हो गया. अब वह एक प्लास्टिक सर्जन के पास जा रहा था जो चोरी छुपे लोगों का चेहरा बदलने में माहिर था.

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आनंद जब सीवाट कंपनी के ऑफिस में दाखिल हुआ तो कोई नहीं कह सकता था की वह उस कंपनी का जनरल मैनेजर नहीं है. प्लास्टिक सर्जन ने उसका चेहरा इस तरह बदल दिया था कि सीवाट की चेयरपर्सन यानी जनरल मैनेजर की पत्नी भी उसे अपना पति स्वीकार कर लेती. वह ऑफिस के विभिन्न भागों से गुज़रता हुआ जनरल मैनेजर के चैम्बर में दाखिल हो गया.

मैनेजर की कुर्सी पर बैठकर उसने एक सुकून की साँस ली. कोई भी उसे पहचान नहीं पाया था. इसके पीछे बहुत बड़ा हाथ उस माइक्रोचिप का था जिसने जनरल मैनेजर के बारे में पूरी जानकारी आनंद को दी थी.

उसके होंठों पर एक व्यंगात्मक मुस्कान उभरी. कुछ समय पहले तक उसके पास समुन्द्र का एक छोटा सा भाग पट्टे पर लेने के लिए पैसे नहीं थे और अब पूरे समुन्द्र पर उसका कब्ज़ा हो चुका था.

उसने दिन भर की रिपोर्ट लेने के लिए असिस्टेंट मैनेजर को काल किया और एक निहायत खूबसूरत युवक ने उसके चैम्बर में प्रवेश किया. यह असिस्टेंट मैनेजर डिसूजा था. डिसूजा को आनंद ने हैरत से देखा. क्योंकि जनरल मैनेजर की माइक्रोचिप ने बताया था कि डिसूजा एक रोबोट है. ऐसा कम्प्लीट रोबोट आनंद ने पहली बार देखा था. वह तो हर तरफ़ से एक हाड़ मांस का मनुष्य लग रहा था.

"क्या रिपोर्ट है आज की?" आनंद ने उससे पूछा.

"फर्स्ट क्लास सर. हमारी वाटरफील्ड , जो अभी खाली पड़ी हुई थी, आज ही एक नै कंपनी को एलोट कर दी गई है. उसने इसके लिए पाँच करोड़ अडवांस रकम भी दे दी है.

इस फाइल में पूरी डिटेल मौजूद है सर." डिसूजा की आवाज़ पूरी तरह एक मनुष्य की आवाज़ थी. उसी तरह कोमल और भावनाओं से ओत प्रोत.

"गुड. ठीक है. मैं यह फाइल देख लेता हूँ. तुम जा सकते हो." 

"ठीक है सर." डिसूजा जाने के लिए मुडा, फ़िर जैसे उसे कुछ याद आया, "सर, आज आपकी कार नहीं दिखाई दे रही है."

"उसका एक्सीडेंट हो गया है. मैं तो बाल बाल बच गया लेकिन वह नष्ट हो चुकी है. तुम कार कंपनी को नई कार का आर्डर दे दो. साथ में सख्त हिदायत दे दो कि इस बार मुझे मज़बूत कार चाहिए."

"ओ.के. सर!" रोबोट डिसूजा बाहर निकल गया. आनंद ने आराम कुर्सी से पीठ टिकाकर ऑंखें बंद कर लीं और कल्पनाओं में विचरण करने लगा. अब उसके पास सब कुछ था, कार, मेंटेन ऑफिस, बंगला और .... शायद एक बीवी भी. किस्मत इस तरह भी करवट लेती है. कहाँ तो भूख उसकी ज़िन्दगी छीन रही थी और कहाँ अब ज़िन्दगी की रंगीनियाँ उसका चैन छीन रही थीं. 

'तो अब अपनी बीवी से भी मुलाकात की जाए. , यानी उस मृत जनरल मैनेजर की विधवा से. लेकिन कहीं उसे अपने पति के नकली होने का शक न हो जाए.खैर ये एडवेंचर भी सही.'

वह महर्षि गौतम और अहिल्या की कथानुसार देवराज इन्द्र की तरह जनरल मैनेजर की बीवी से मिलने के लिए उठ खड़ा हुआ. यह तो उसे मालूम ही हो चुका था की मृत जनरल मैनेजर की पत्नी निहायत खूबसूरत है.

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उसने दबे क़दमों जनरल मैनेजर के घर में कदम रखा. उसके हाथ में एक छोटा सा खूबसूरत तोहफा था. वह उसकी पत्नी यानी अपनी 'बीवी' को सरप्राइज़ देना चाहता था. माइक्रोचिप के अनुसार असली जनरल मैनेजर कभी बारह बजे से पहले घर नहीं पहुँचता था, लेकिन वह तो आज पाँच बजे ही अन्दर कदम रख चुका था.

फ़िर उसने बेडरूम का भी दरवाजा खोल दिया. सामने का दृश्य उसके लिए अप्रत्याशित था. उसकी 'पत्नी' आपत्तिजनक अवस्था में डिसूजा की बाहों में पड़ी हुई थी. वह डिसूजा जो मनुष्य नहीं बल्कि एक रोबोट था.

दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनकर दोनों चौंक पड़े.

"तो आज असलियत तुम्हारे सामने आ ही गई." उसकी पत्नी चादर से अपने जिस्म को ढांकती हुई बोली.

"य..ये डिसूजा तो रोबोट.."आनंद ने हकलाते हुए कहना चाहा. 

"हाँ. मैं जानती हूँ कि यह रोबोट है. लेकिन मि० पतिदेव यही मेरा असली महबूब है. यह मेरी हर ख्वाहिश पूरी करता है. लेकिन कभी अपना हुक्म मानने के लिए मुझे मजबूर नहीं करता. मुझे अब तुममें कोई इंटेरेस्ट नहीं. हम दोनों ने मिलकर तुम्हारी कार का एक्सीडेंट कराया. लेकिन बड़े सख्तजान निकले तुम तो. इतने भयंकर एक्सीडेंट के बाद भी बच निकले. कोई बात नहीं. वार बार बार तो खाली जाता नहीं. डिसूजा...!" उसकी पत्नी ने डिसूजा को इशारा किया. डिसूजा ने फुर्ती के साथ जेब से पिस्टल निकाली और आनंद कि तरफ़ तान दी.

"अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ. तुम्हारे मरते ही सीवाट कंपनी पूरी तरह मेरे कब्जे में आ जायेगी. और मेरी दुनिया से तुम्हारा बदसूरत वजूद हमेशा के लिए मिट जाएगा."

"म..मेरी बात तो सुनो..!" आनंद की बात अधूरी रह गई. क्योंकि डिसूजा की पिस्टल की गोली उसकी खोपडी में छेद कर चुकी थी.

मरने से पहले उसके दिमाग में एक ही ख्याल उभरा था, 'काश कि मैं मशीन योनि में पैदा होता.' 

----समाप्त-------


 जीशान जैदी लेखक

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रचनाएँ
sciencefiction
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हिंदी साइंस फिक्शन की दुनिया में आपका स्वागत है. इस ब्लॉग पर आप ज़ीशान ज़ैदी द्वारा लिखित हिंदी विज्ञान कथाओं का आनंद लेंगे। साथ ही यहां भारतीय (हिंदी) विज्ञान कथाओं से सम्बंधित समाचार, लेख व परिचर्चाओं को भी आप समय समय पर पढ़ सकते हैं.
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