समाधानाय सौख्याय नीरोगत्वाय जीवने ।
योगमेवाभ्यसेत प्राज्ञः यथा शक्ति निरंतरम्।।
आधुनिकचिकित्साशास्त्र (मॉडर्न मेडिकल साइंसेज) में प्रमुखता से रोग होने के बाद की चिकित्सा (उपाय योजना ) विस्तृत रूप से दिखती है। जबकी हमारे चिकित्सा शास्त्र में सर्वप्रथम रोग हो ही नहीं इस संबंध में नियम मिमांसा विस्तृत रूप में दी गई है और उसके उपरान्त भी अगर यदाकदा कोई रोग हुआ तो उसकी चिकित्सा का विवरण आया हुआ दिखता है।
इस एकमेव विधान से ही हमारे भारतीय चिकित्सा शास्त्र का महत्व सिद्ध हो जाता है।
निरोगत्व का महत्व
भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष ये मानव जीवन के श्रेष्ठतम ध्येय बताये गए हैं जो दूसरे श्ब्दों में ’पुरूषार्थ’ कहलाते हैं। इन चार पुरूषार्थों को साध्य करने का कार्य आरोग्य के बिना सिद्ध नहीं हो सकता।
निरोगत्व तथा आहार
सामान्यतः ’निरोगी’ का अर्थ रोग-जन्तू विरहित शरीर ऐसा लिया जाता है तथापि रोग यह व्यक्त लक्षण होने के कारण रोग का अभाव अर्थात आरोग्य संपदा यह कहना भी अनुचित है। ऋषि मुनियों को निरोगत्व का इतना ही संकुचित अर्थ अभिप्रेत नहीं है। निरोगत्व की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं-
समदोषः समग्निश्च समधातुमलक्रियाः।
प्रसन्नात्मेंद्रियमनः स्वस्थैत्यभिधीयते।।
समदोष:- हमारे शरीर में वायु, पित्त, कफ ये तीन दोष हैं जो शरीर में नियंत्रक शक्ति के रूप में कार्यरत रहते हैं ऐसा आयुर्वेद में कहा गया है। इस समप्रमाण को साध्य करने हेतु योग्य आहार ही एकमेव मार्ग है।
समग्नि:- श्लोक में प्रयुक्त इस दूसरे शब्द का अर्थ ’जठराग्नि’ है। सर्वसामान्य भाषा में जठराग्नि को ’भूख’ इस शब्द से जाना जाता है। जिसे भोजन के नियोजित समय कसकर भूख लगती है उसे निरोगी समझा जा सकता है।जब मानव को अधिक भूख लगना अथवा बिलकुल भी भूख नहीं लगना ऐसी कोई अवस्था नहीं आती है तो उसे ’निरोगी’ कहा जाता है।
समधातुः- यह शब्द रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र इन शरीरस्थ सात धातुओं के वर्णन हेतु आयुर्वेद में प्रयुक्त हुआ है। निरोगत्व हेतु सभी धातुओं का उत्तम बलशाली होना एवं उनका विशिष्ट प्रमाण में होना आवश्यक है। इन सातों धातुओं का पोषण अर्थात शरीर का पोषण।
मलक्रियाः- पाचनक्रिया में अहितकारी व अनावश्यक द्रव्य शौच, मूत्र, कफ, श्रमबिन्दु (पसीना) का शरीर से निःस्सारण किया जाता है। इस निःस्सारण क्रिया को मलक्रिया कहते हैं। आधुनिक काल में भागदौड़ भरी जिंदगी में शारिरिक कष्ट, समुचित व्यायाम एवं असंतुलित व अयोग्य आहार इत्यादि कारणों से मलविसर्जन क्रिया बाधित होने के कारण ही रोग बढ़ते जा रहे हैं।