(06 जुलाई 2015 को हिन्दुस्तान कानपुर में प्रकाशित)
चीं चीं...चीं चीं
चीं चीं...चीं चीं
अरे हुजूर!
यह क्या हाल बना रखा है, चहचहा क्यों रहे हैं? अच्छे-खासे इनसान हैं, चिडि़या बने क्यों घूम रहे हैं?
उफ जमूरे! रह गए जमूरे के जमूरे ही।
इस चहचहाहट में बड़े-बड़े गुण। निर्गुण, सगुण, दुर्गुण...सारे गुण इसमें समाए हैं। जब भी लगे कि आसमां में तुम्हारे नाम का चांद डूबने लगा है, दन्न से एक बार चहचहा दो...। जैसे बीट करने से पहले पक्षी नहीं देखते कि गंदगी किस पर गिरेगी, वैसी ही इनसान की चहचहाहट होनी चाहिए। इसके बड़े फायदे हैं।
कौन दुनिया की बात कर रहे हुजूर! हमारे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा...?
यही तो खास बात है इस चहचहाहट में जमूरे। किसी के कुछ समझ में नहीं आता। चहचहाने वाला चहचहा देता है और लोग जूझ मरते हैं। और तो और जो लोग बयान बहादुर बनकर इस चहचहाहट पर ताल ठोंकते हैं उनके भी समझ में नहीं आता कि आखिर किस बात पर कट-मर रहे हैं। उस बात का कोई मतलब है भी कि नहीं। वह बात किसके खिलाफ जा रही है।
हुजूर! कुछ पल्ले पड़े उसके पहले यह बताइए कि यह चहचहाहट है किस बला का नाम?
तो सुनो हे जमूरे! आधुनिक काल में चार अमेरिकियों ने मिलकर इंटरनेट पर अपनी भावना व्यक्त करने के लिए लोगों को एक मंच दिया। यहां अधिकतम 140 शब्दों में अपनी बात कही जा सकती है। इसी बात को इन अमेरिकियों ने नाम दिया ट्वीट (चहचहाना)। अब इन चारों अमेरिकियों का भले ही जो उद्देश्य रहा हो, अपने यहां इसका जमकर सदुपयोग किया जा रहा है, खासकर किसी पर कीचड़ उछालने के लिए।
हुजूर! तो ऐसा कहिए न...कि आप ट्वीट की बात कर रहे हैं। इसको तो हम अच्छे से जानते हैं। इसका सबसे बढि़या उपयोग तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं और करते आए हैं। अपने मन की बात वह या तो रेडियो पर करते हैं या फिर ट्वीट करते हैं।
हां जमूरे...सही पकड़े...वही वाला चहचहाहट...। पर, आज-कल इसका सबसे बढि़या उपयोग एक दूसरा ही मोदी कर रहा, भगोड़ा मोदी। भइया... ऐसा छाया है कि कुछ पूछो मत। खुद तो लंदन में छिपकर बैठा है पट्ठा। और रोज एक बार चहचहा भर देता है... कि फलां ने उसे लंदन भागने में मदद की। ढिमका ने उसे थाईलैंड का वीजा दिलाया। इसने लंदन में कॉफी पी तो उसने चाची से मदद दिलाने की कोशिश की। इसके बाद पट्ठा फिर गायब हो जाता। यहां अपने देश में मचता है बवाल... बयान पर बयान, हम नंगे पर देखो तुम हमसे ज्यादा नंगे...। इस्तीफे की मांग... कुर्सी छोड़ो-कुर्सी छोड़ो तुमने ज्यादा खाया कुर्सी छोड़ो। किसिम-किसिम के कीचड़, कुछ इम्पोर्टेड कीचड़ तो कुछ देशी...सब खूब उछाले जा रहे। बड़ा मजा आ रहा है...खासकर मीडिया को।
कई साल हो गए भगोड़े मोदी को देश छोड़े, पर देश है कि उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा। ये इन्टरव्यू, ओ इन्टरव्यू... पुराने फुटेज, नया चेहरा...पता नहीं कौन-कौन सा क्रीम-पाउडर पोतकर टीवी पर उसको दिखाया जा रहा। एकदम नारद बन गया है ई भगोड़ा मोदी...। एक बात देवताओं की सभा में उछाली...दूसरी असुरों की सभा में... दोनों लड़-मर रहे। ई दूर खड़ा होकर कह रहा...नारायण...नारायण...।
मान गए हुजूर... ई तो बड़े ही काम की चहचहाहट है...चलिए हम भी शुरू हो जाते हैं...।
(इतिश्री चहचहाहट कथा)
-विशाल शुक्ल ‘अक्खड़’