shabd-logo

निर्भया का पत्र आपके नाम

23 जून 2016

214 बार देखा गया 214

निर्भया का पत्र आपके नाम- अंचल ओझा, अंबिकापुरलोग कहते हैं मुझे आज़ादी ज्यादा मिल गई, इसलिये बिगड़ गई हूँ।लोग कहते हैं मैं छोटे कपड़े पहनती हूँ, इस लिये बदचलन हूँ। पड़ोस के काका ने भाई से कहा आजकल तेरी बहन मोबाईल पर ज्यादा बात करती है, सम्हालो नहीं तो हाथ से निकल जायेगी। पड़ोस में चर्चा होती है की बेटी को ज्यादा पढ़ा रही हो, लड़का भी वैसा ही ढूँढना पड़ेगा, दहेज़ कहाँ से लाओगी।जो लोग मेरे घर देर से लौटने को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ बनाते हैं, मेरे अफेयर की बात करते हैं, दरअसल शाम या फिर रात में मैं जब पैदल घर पहुँचती हूँ, तो इन्हीं आरोप लगाने वालों के सुशील और संस्कारी लड़के मुझे छेड़ते हैं, मुझे देखते ही तरह तरह से इशारे करते हैं और जब उनका जवाब नहीं देती, उनकी ओर ध्यान नहीं देती तो मुझ पर एसिड डाले जाते हैं, मेरे साथ बलात्कार होता है, छेड़-छाड़ तो रोज की बात है।      

 कहते हैं मुझे आज़ादी मिली हुई है, मेरी इस आज़ादी को मैंने कब तोड़ा, कब मैने किसी लड़के पर एसिड फेका, कब किसी लड़के के साथ गैंग रेप जैसी घटनाएं हुई, कब लड़कियों ने मिलकर लड़कों को छेड़ा, उन से उनकी शिक्षा कब छीनी, कब उनसे उनका सम्मान छिना, कब उन से उनके जीने का हक छिना, कब किसी लड़के को गर्भ में मार दिया गया, कब ऐसा हुआ जब दहेज़ के लिये लड़के को मार दिया गया। समाज कहता है, समूचा राष्ट्र कहता है, मुझे आज़ादी मिली हुई है। कैसी है ये आज़ादी बलत्कार करने के बावजूद वह समाज में शान से घूमता है और मैं पीड़िता होने के बावजूद समाज से, मुहल्ले से, घर परिवार के लोगों से चेहरा छुपाती हूँ। क्या यही है आज़ादी ?          

 सच तो यह है की समाज ने नारी को केवल और केवल भोगने योग्य वस्तु अर्थात भोग्या समझा है, आज समाज की यह सच्चाई है की अपने घर की बहन बेटियों और पारिवारिक सदस्यों को छोड़ कर सभी को कई नजरों से देखा जाता है। कहीं किसी को वेश्या कहा जाता है तो किसी को बदचलन, कई अन्य नामों से भी महिलायें पुकारी जाती हैं। किन्तु पुरुष केवल पुरुष होता है, बदचलन वह कभी नहीं हो सकता, कभी वेश्या नहीं होता, कभी किसी दूसरे नाम से नहीं पुकारा जाता।            

क्या नहीं कर सकती मैं, पुरुष के बराबर सारे काम कर सकती हूँ, बच्चों की जननी मैं हूँ, क्या कभी कोई पुरुष बच्चे को जन्म दे सकता है, 9 महीने तक नारी पुरुष को अपने पेट में पालती हैं, सारे कष्ट सहती है, जन्म के बाद सारा प्यार उस पर निछावर कर देती, बड़ा होने के बाद उस पुरुष की सोच केवल वहां तक पहुचती है, जहाँ महिला उसे केवल भोग्या नज़र आती है, कैसे महिला मेरे वश में आ जाये, बस इसी की जुगत भिड़ाने में लगा रहता है।और फिर जब हम महिलाएं यह सोच लें की इस पुरुष प्रधान समाज में हमें वाजिब न्याय मिल जायेगा तो यह सपने से ज्यादा और कुछ नहीं।     

दामिनी को आप सभी कहते हैं, मुझे(दामिनी) को न्याय मिल गया, आरोपियों को सजा मिल गई, सच तो यह है की मुझसे भी ज्यादा कष्ट कई निर्भया, कई दामिनी को सहना पड़ रहा है। मुझे तो मौत ने जल्दी गले लगा लिया, किन्तु कई निर्भया और दामिनी रोज तिल तिल कर मर रही हैं। किन्तु उन्हें कब न्याय मिलेगा, समझ से परे है। निर्भया और दामिनी हमेशा संघर्ष करती रही हैं और पृथ्वी के अंत तक संघर्ष करती रहेंगी। हमारा देश इस बात का गवाह है, एक राजा ने अपनी प्रजा के कहने पर पत्नी का त्याग कर दिया, अग्नि परीक्षा के बाद भी उसे इस समाज के लायक नहीं समझा गया। यही वह देश है जहां के पुराणों में यह बताया जाता है की पत्नी जुआं में लगायी जाती है, और हारने पर उसका चिर हरण उसके अपनों के सामने किया जाता है। यही वह देश है जहां पर ऋषि की पत्नी को पाने एक व्यक्ति जिसे भगवान् की संज्ञा मिली हुई है, उसने ऋषि वेश में पतिव्रता के इज्जत का हरण कर लिया और उसे लोग भगवान् मान कर पूजते हैं, किन्तु उस ऋषि पत्नी को कई वर्षों तक पत्थर के रूप में रहना पड़ा।      यह सच हैं की सदियों से नारी को शक्ति का रूप माना जाता रहा है, किन्तु यह भी सच है की पौराणिक कालों से ही महिलायें सतायी जाती रही हैं और पुरुष उनसे आज जैसा व्यवहार करते हैं, वैसा कल भी किया करते थे। ना तो निर्भया को कभी आज़ादी मिली और ना दामिनी को कभी न्याय.........सदियों से न्याय के इन्तजार में आपकी दामिनी, आपकी बेटी निर्भया।


1

क्या यही है देश की तकदीर

12 जून 2016
0
2
1

जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में,पैदा होता देश का तारणहार है,जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में,वोट का करता वह नोट से व्यापार है।क्या वो देश को चला पायेगा,इस तरह के लोभ में मतंगियों को,कौन राह दिखायेगा ?क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,या फिर से पैदा होना पड़ेगा,भगत, आजाद, शिव

2

स्वच्छ पर्यावरण हेतु मजबुत इच्छाशक्ति की आवष्यकता : अंचल ओझा

23 जून 2016
0
0
0

पाॅलिसी निर्माण में सरकार की अह्म भूमिका होती है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को लेकर बात की जा रही है, शुद्ध, स्वच्छ एवं स्वस्थ्य पर्यावरण को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है। भारत के परिपेक्ष्य में मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि पर्यावरण को

3

निर्भया का पत्र आपके नाम

23 जून 2016
0
1
1

निर्भया का पत्र आपके नाम- अंचल ओझा, अंबिकापुरलोग कहते हैं मुझे आज़ादी ज्यादा मिल गई, इसलिये बिगड़ गई हूँ।लोग कहते हैं मैं छोटे कपड़े पहनती हूँ, इस लिये बदचलन हूँ। पड़ोस के काका ने भाई से कहा आजकल तेरी बहन मोबाईल पर ज्यादा बात करती है, सम्हालो नहीं तो हाथ से निकल जायेगी। पड़ोस में चर्चा होती है की बेटी को

4

स्वच्छता अभियान कुछ इस तरह से

12 जनवरी 2017
0
2
1

पूर्व से ही निर्मल भारत अभियान के नाम से यह योजना संचालित थी, किन्तु तब शौचालय बनवाने एवं अन्य कार्य के लिये जबरदस्ती नहीं किया जा रहा था। देश में नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आयी उसने स्वच्छ भारत अभियान को ज्यादा तवज्जों दी और राज्य सरकारों को, राज्य सरकारों ने जिला सरकार

5

खादी और चरखा विचारधारा की लड़ाई

14 जनवरी 2017
0
2
0

खादी और चरखा दोनोें ही महात्मा गांधी के पर्याय माने जाते हैं। राजनीति के चश्में को यदि किनारे कर दिया जाये, कांग्रेस और भाजपा की सोच पर यदि निष्र्कष निकाला जाये तो मुझे जहां तक लगता है, कि हां कम से कम कांग्रेस ने गांधी को मिटाने या हटाने का प्रयास नहीं किया। उनके ब

6

क्या हिन्दू धर्म खोखला और कमजोर है ?

16 जनवरी 2017
0
2
1

डॉ पाल दिनाकरन प्रार्थना सभा : फोटो धर्म इतना कमजोर कैसे है कि वह मात्र एक प्रार्थना से बदल दिया जाता है, या फिर आपके छुआ-छूत का भेदभाव इतना बड़ा है कि लोगों को दूसरी ओर खिंचता है, चाहे जो भी हो। किन्तु पिछले तीन दिनों में जो कुछ भी सरगुजा संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर में घटित हुआ। उसने कहीं न कहीं स

7

बेपटरी हुई बजट?

1 फरवरी 2017
0
1
0

सरकार का बजट आ गया है, उम्मीद से बहुत दूर और निराशाजनक बजट कई मायनों में है, एकाध-दो प्वाइंट को छोड़ दिया जाये, सरकार के साहस को दरकिनार कर दिया जाये तो एक-दो प्रमुख बातों के अलावा मुझे जो लगता है बजट से जनता को जितनी उम्मीदें थी, उस मुताबिक कुछ भी नहीं है, खासकर मजदूर, गरीब, किसान, युवा और महिला वर्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए