मन की गति बहुत तेज है। पलक झपकते इधर-उधर घूम आता है। कभी इधर जाता है तो
कभी किधर जाता है। मन की गति पर लगाम लगाना ही मन को एकाग्र करना है। जो
लगाम लगा लेते हैं वे ही कुछ हटकर करते हैं, बाकी सब तो लकीर के फकीर हैं
उनका काम रोज की दिनचर्या पूरा करके सो जाना है और अगले दिन नित्य कर्म से
निपटकर पुनः दिनचर्या को समाप्त करके सो जाना है, उनका यह क्रम आजीवन रहता
है।
लेखक मन की बात कहता है तो साहित्य बन जाता है। मन की बात व्यवहार में लाकर जब अनुभव बन जाती है तो सबके लिए उपयोगी हो जाती है।
मन की बात कहने में आनन्द बहुत आता है पर अच्छे श्रोता व पाठक न हों तो कहना व्यर्थ ही है।
कही हुई बात पर प्रतिक्रिया मिले तो उससे स्वयं में सुधार लाने का मार्ग मिल जाता है!