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सूर्यापनिषद् - 3

28 जून 2016

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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः  पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।। 

सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का  प्रादुर्भाव  होता  है। 

नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक्षं कर्मकर्तासि। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षं विष्णुरसि। त्वमेव प्रत्यक्षं रुद्रोऽसि। त्वमेव प्रत्यक्षमृगसि। त्वमेव प्रत्यक्षं यजुरसि।त्वमेव प्रत्यक्षं सामासि। त्वमेव प्रत्यक्षमथर्वासि। त्वमेव सर्वं छन्दोऽसि।।4।।

हे आदित्यदेव! हम आपके प्रति  नमस्कार करते हैं।  आप  ही प्रत्यक्ष कर्मों के करने वाले हैं। आप ही ब्रह्मा, विष्णु व रुद्रदेव हैं।  आप ही ऋक्, यजुष,  साम  व अथर्व स्वरूप हैं। आप ही समस्त छन्दों के प्रत्यक्ष रूप है।



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    ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।।    जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने  वाले उन  सवितादेव  के सर्वोत्तम  तेज का  हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों सूर्योपनिषद् २
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upnishedonkaamrit
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उपनिषदों का अमृत चखाएंगे!
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    ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।।    जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने  वाले उन  सवितादेव  के सर्वोत्तम  तेज का  हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों

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सूर्यापनिषद् - 3

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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः  पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।।  सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का  प्रादुर्भाव  होता  है।  नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक

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सूर्योपनिषद् - 4

29 जून 2016
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आदित्याद्वायुर्जायते। आदित्याद्भूमिर्जायते। आदित्यादापो जायन्ते।आदित्याज्ज्योतिर्जायते।आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते।आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्याद्वेदाजायन्ते। आदित्यो वा एष एतन्मंडलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म।आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहंकाराः।आदित्यो वै व्यानः समा- नोदानोऽपानः प्राणः। आदित्यो व

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नमो मित्राय भानवे मृत्योर्मा पाहि। भ्राजिष्णवे विश्वहेतवे नमः। सूर्याद्भवनित भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च। चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः। चक्षुर्धाता दधातु नः। आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि।तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।  सविता पश्चात्तत्सविता 

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3 जुलाई 2016
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पूर्व में सात भाग में सूर्योपनिषद् की चर्चा की गई है। इस चर्चा में सूर्योपनिषद् के अमृत का रसास्वादन कराया गया था। यदि आप  सूर्योपनिषद् को पुस्तक रूप में अपने मेल पर मुफ्त में पाना चाहते हैं तो  मित्रता का अनुरोध करते हुए उपनिषदों का अमृत वेबपेज का अनुसरण करें और मुझे मेरे अधोलिखित मेल पर उक्त पुस्त

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16 जुलाई 2016
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चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है।

4 अगस्त 2016
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हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। आगे पढ़ें- चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। नेत्रों में पीड़ा हो या उसमें रोशनी न हो तो वे व्यर्थ हैं। नेत्र नीरोग रहें उसमे

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