सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।।
सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का प्रादुर्भाव होता है।
नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक्षं कर्मकर्तासि। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षं विष्णुरसि। त्वमेव प्रत्यक्षं रुद्रोऽसि। त्वमेव प्रत्यक्षमृगसि। त्वमेव प्रत्यक्षं यजुरसि।त्वमेव प्रत्यक्षं सामासि। त्वमेव प्रत्यक्षमथर्वासि। त्वमेव सर्वं छन्दोऽसि।।4।।
हे आदित्यदेव! हम आपके प्रति नमस्कार करते हैं। आप ही प्रत्यक्ष कर्मों के करने वाले हैं। आप ही ब्रह्मा, विष्णु व रुद्रदेव हैं। आप ही ऋक्, यजुष, साम व अथर्व स्वरूप हैं। आप ही समस्त छन्दों के प्रत्यक्ष रूप है।
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ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।। जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने वाले उन सवितादेव के सर्वोत्तम तेज का हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों सूर्योपनिषद् २