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सूर्योपनिषद - 7

2 जुलाई 2016

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यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा  महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते।  अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य-  भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति।  पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति।  मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्।  सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां सावित्री विद्यां न किंचिदपि न कस्मैचित्प्रशंसयेत्। य एतां महाभागःप्रातः पठति स भाग्यवांजायते। पशून्विन्दति। वेदार्थं लभते। त्रिकालमेतज्जप्त्वा क्रतुशतफलमवाप्नोति। यो हस्तादित्ये जपति स महामृत्युं तरति स महामृत्युं तरति य एवं वेद  इत्युपनिषत्।।8।।                                                                                                                                                   इस मन्त्र के नित्य जप करने वाला ही ब्राह्मण कहलाता है। सूर्य भगवान् की ओर मुख करके इस मन्त्र के जाप से बड़ी व्याधियों के भय से मुक्ति मिलती है, 

दारिद्रय दूर होता है व वह सभी अखाद्य पदार्थों के भक्षण दोष से मुक्त होता है। अगम्य मार्ग अर्थात् गलत मार्ग पर जाने के दोष, गलत सम्भाषण, असत्य  वार्तालाप इन सभी पापों से भी मुक्त हो जाता है। मध्याह्न काल में  सूर्याभिमुख होकर इस उपनिषद का पाठ करना चाहिए। जो ऐसा करता है,  वह मनुष्य  तत्काल  उत्पन्न हुए पंचमहापातकों से निवृत्त हो जाता है। इसे सावित्री विद्या कहा गया है, इसकी किसी से कुछ भी प्रशंसोक्ति न करे। जो महाभाग प्रातः  काल इसका पाठ करता है, वह भाग्यवान् होता है, उसे गौ आदि पशुधन की प्राप्ति तथा वेदार्थ विद्या की प्राप्ति होती है। त्रिकाल संध्या करने से सैकड़ों यज्ञों

का पुण्यफल मिलता है। सूर्यदेव का हस्तनक्षत्रकाल अर्थात् आश्विन मास में जप करने वाला महामृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है, जो इसका ज्ञाता है वह 

भी महामृत्यु से पार हो जाता है। यही उपनिषद्(रहस्यमयी विद्या)है। 

।।इति सूर्योपनिषत्सामाप्ता।। 



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रचनाएँ
upnishedonkaamrit
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उपनिषदों का अमृत चखाएंगे!
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सूर्योपनिषद् - 1

25 जून 2016
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    सूर्योपनिषद अथर्ववेदीय परम्परा से संबंध रखता है। इस उपनिषद में आठ श्लोकों में ब्रह्मा और सूर्य की अभिन्नता वर्णित है और बाद में  सूर्य  व  आत्मा  की अभिन्नता प्रतिपादित की गई है। इस उपनिषद के पाठ के लिए हस्त नक्षत्र स्थित सूर्य का समय अर्थात् आश्विन मास सर्वोत्तम माना गया है।  इसके पाठ  से व्यक्

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सूर्योपनिषद् - 2

27 जून 2016
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    ॐ भूर्भुवः सुवः। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमिहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।2।।    जो प्रणव रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भूः, भुवः, स्वः रूप त्रिलोक में संव्याप्त है। समस्त सृष्टि के उत्पादन करने  वाले उन  सवितादेव  के सर्वोत्तम  तेज का  हम ध्यान करते हैं, जो(वे सविता देवता)हमारी बुद्धियों

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सूर्यापनिषद् - 3

28 जून 2016
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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। सूर्याद्वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते। सूर्याद्यज्ञः  पर्जन्योऽन्नमात्मा।।3।।  सूर्यदेव समस्त जड़ और चेतन जगत् की आत्मा हैं। सूर्य से सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है। सूर्य से ही यज्ञ, पर्जन्य, अन्न एवं आत्मा(चेतना) का  प्रादुर्भाव  होता  है।  नमस्त आदित्य। त्वमेव प्रत्यक

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सूर्योपनिषद् - 4

29 जून 2016
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आदित्याद्वायुर्जायते। आदित्याद्भूमिर्जायते। आदित्यादापो जायन्ते।आदित्याज्ज्योतिर्जायते।आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते।आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्याद्वेदाजायन्ते। आदित्यो वा एष एतन्मंडलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म।आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहंकाराः।आदित्यो वै व्यानः समा- नोदानोऽपानः प्राणः। आदित्यो व

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सूर्योपनिषद् - 5

30 जून 2016
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नमो मित्राय भानवे मृत्योर्मा पाहि। भ्राजिष्णवे विश्वहेतवे नमः। सूर्याद्भवनित भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च। चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः। चक्षुर्धाता दधातु नः। आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि।तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।  सविता पश्चात्तत्सविता 

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सूर्योपनिषद् - 6 -

1 जुलाई 2016
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ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म। घृणिरिति द्वे अक्षरे। सूर्य इत्यक्षरद्वयम्। आदित्य इति त्रीण्यक्षराणि। एतस्यैव सूर्य स्याष्टाक्षरो मनुः।।7।। ॐ यह प्रणव एकाक्षर ब्रह्म है। घृणि और सूर्य यह दो दो अक्षरों के मन्त्र हैं तथा आदित्यः इसमें तीन अक्षर हैं। इन सबके सहयोग से सूर्यदेव  का आठ अक्षरों वाला महामन्त्र बनता

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सूर्योपनिषद - 7

2 जुलाई 2016
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3 जुलाई 2016
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पूर्व में सात भाग में सूर्योपनिषद् की चर्चा की गई है। इस चर्चा में सूर्योपनिषद् के अमृत का रसास्वादन कराया गया था। यदि आप  सूर्योपनिषद् को पुस्तक रूप में अपने मेल पर मुफ्त में पाना चाहते हैं तो  मित्रता का अनुरोध करते हुए उपनिषदों का अमृत वेबपेज का अनुसरण करें और मुझे मेरे अधोलिखित मेल पर उक्त पुस्त

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16 जुलाई 2016
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चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है।

4 अगस्त 2016
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हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। आगे पढ़ें- चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। नेत्रों में पीड़ा हो या उसमें रोशनी न हो तो वे व्यर्थ हैं। नेत्र नीरोग रहें उसमे

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