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रामू काका

2 जुलाई 2016

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"अरे! बबुआ / तुम कईसे-कईसे यहाँ पहुँच गए /" रामू काका अचानक मुझे दरवाजे पर खड़ा पाकर हैरान थे / दरवाजा खोलकर झट मुझे अपनी गोद में उठाना चाहा / लेकिन अब मैं इतना भारी हो गया था कि काका उठाने के अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाये / 

मै हंसते -हंसते उनसे लिपट गया और बोला " काका अब मैं बड़ा हो गया हूँ / मुझे अब तुम गोद में नहीं उठा सकते /" काका ने तुरंत मुझे अपने गले से लगा लिया / 

रामू काका मेरे घर में लगभग बीस वर्षों से नौकरी करते है / छोटा कद, गहरा रंग , घुटने तक धोती और बाहों वाला गंजी पहने काका कभी बाल नहीं झाड़ते / लेकिन सुबह उठकर नहा जरुर लेते / हमारे घर में रसोई बनाने से लेकर बागवानी और घर की पहरेदारी तक का सारा जिम्मा रामू काका ही सम्हालते है / वे कहाँ से आये और कैसे आये ये तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना पता है की वे आज तक कभी अपने घर नहीं गए / वे बताते है कि उनका अब कोई नहीं है / मुझसे वे बहुत प्यार करते है / मेरे पिताजी अक्सर अपने बिजनेस के सिलसिले में बाहर ही रहते है / माँ भी कई सामजिक संगठनो से जुडी है / इसलिए वो भी घर में बहुत कम समय दे पाती है / पिताजी कहते है कि माँ का सामाजिक पहचान उनके व्यवसाय बृद्धि में बहुत सहायता प्रदान करता है / इसलिए मेरा बचपन रामू काका के साथ ही ज्यादा गुजरा है / वे पढ़े -लिखे नहीं है लेकिन बहुत सारी कहानियां जानते है / मैं रोज उनसे कहानिया सुनता / मुझे याद है  जिस दिन मेरे मम्मी -पापा मुझे पहली बार होस्टल में रहने के लिए मुझे छोड़ने जा रहे थे रामू काका  खूब रोये थे /  मैं तब छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढने जा रहा था / मुझे भी  अपनी मम्मी-पापा से बिछुड़ने से ज्यादा दुःख रामू काका से बिछड़ने का था / तब मेरे पापा ने मुझे समझाया था कि काका होस्टल में हमेशा मुझसे मिलते रहेंगे / और वे ही मुझे हॉस्टल में मिलने आया करते थे / पापा और मम्मी कभी कभार ही हॉस्टल आते / 

अब मैं दशवी कक्षा में हूँ / और मेरा एडमिशन दूसरे शहर के एक स्कुल में करा दिया गया है / मैं वही हॉस्टल में रहता हूँ / मेरे घर से दुरी अधिक होने के कारण रामू काका अब हॉस्टल नहीं आ पाते / मम्मी या पापा ही आया करते है वो भी फ़ीस देने / लेकिन पिछले आठ महीनो से मेरे घर से कोई भी मेरे पास नहीं आया / पिछले महीने माँ ने फोन पर बतलाया था कि वो इस दीपावली में मेरे पास आएगी / लेकिन अभी तक नहीं आ पाई / 

आज बाल दिवस है मैंने सोचा क्यों न मैं घर पहुँच कर मम्मी -पापा को सरप्राइज दूँ  और उनका आशीर्वाद लू / इसलिए सुबह -सुबह हॉस्टल से भाग कर घर पहुंचा हूँ /

"मम्मी -पापा घर पर है तो ?" मैंने रामू काका से जानना चाहा /

" नाही बबुआ उ लोग घर में नाही है / मालिक तो तीन दिन से नाही है अउर परसु आवेंगे / मालकिन तो सुबहे -सुबहे निकल गईं / महिला लोगन आई थी कवनो बचवन सन का (बच्चों का ) परगुराम (प्रोग्राम) है / उहवें गई है / आज ना आ पावेगी/ कल आवेंगी /" रामू काका ने जीतनी सहजता से बताया मेरा मन इस बात को उतनी सहजता से नही ग्रहण किया / मेरे चेहरे का रंग पढ़ कर रामू काका समझ गए कि मुझे दुःख पहुंचा है / अतः मुझे संतावना देने के लिए बोले " चलो बबुआ कोई नाही है तो क्या हुआ, मैं तो हूँ / चलो हम तुम्हारे लिए गरमा गरम पकौड़ा बनाते है अउर चाय पीलाते है / तोहार बाबूजी दार्जिलिंग से चायपत्ती लाये है / बड़ा बढ़िया चाय का स्वाद है "

" नहीं काका मुझे नहीं पीना पिताजी का लाया चाय / मैं तो तुम्हारे हाथों का बना तुलसी और अदरख वाला चाय पिऊंगा / बहुत दिनों से नहीं पीया /" 

ऐसा नहीं कि मुझे दार्जिलिंग चाय नहीं पसंद है लेकिन मुझे पिताजी से चिढ हो रही थी इसलिए मैं उनका लाया चाय पीने से इंकार कर दिया / 

रामू काका एक तरफ पकौड़े तल रहे थे और दूसरी  ओर तुलसी और अदरख वाला चाय बना रहे थे / वे बहुत खुश थे / 

" बबुआ तू तो अब जवान हो गए हो /" रामू काका मेरे पुरे शरीर को निहार रहे थे /

मैंने हंसते -हंसते कहा " हाँ काका अब मेरे लिए कोई दुल्हनिया खोजो/" 

" नाही बबुआ / नाही / अभी तू  शादी -वादी  नाही करना / पढ़ -लिख लो / डाक्टर बाबू बन जइयो तो तोहार ला सुन्दर दुल्हनिया तोहार बाबूजी लाइ दिहे " काका को शायद लगा कि मैं सचमुच शादी करना चाहता हूँ / 

" लेकिन काका मैं तो तुम्हारे पसंद कि दुल्हनिया से शादी करूंगा" मैंने भी अपना शर्त रख दिया /

" ठीक है मैं तुम्हारे लिए परी जैसा दुल्हनिया खोज दूंगा " काका बोले भी जा रहे थे और पकौड़े तले भी जा रहे थे / 

मैंने कहा " काका केवल पकौड़े तलते रहोगे या फिर खिलाओगे भी /" 

"अभी लाया बबुआ"  काका तुरंत गरमा-गरम पकौड़ा और तुलसी-अदरख की चाय मेरे सामने परोस दिए / 

"अब अपनी हाथों से एक पकौड़ा खिला भी दो /" मैंने काका से निवेदन किया/ 

" नाही मैं ना खिलाऊंगा/ तुम दांतों से हाथ काट देते हो" काका को याद था जब भी कभी काका बचपन में मुझे कुछ खिलाना चाहते थे तो मैं जानबूझ कर उनके उँगलियों को काट लेता था/ काका को जितना दर्द होता उससे ज्यादा वो चिल्लाते और मैं खूब हँसता / 

" काका अब मैं बड़ा हो गया हूँ / नही काटूंगा/" मैंने उनको आश्वस्त किया / 

काका एक-एक कर मुझे सारे पकौड़े खिला डाले / उनके  हाथों से पकौड़े खाने से मुझे जितना आनंद मिला शायद उतना आनंद श्रीराम को संवरी के बेर खाने से भी नहीं मिला होगा /

" अब तुम थोडा आराम करो / मैं तुम्हारे लिए भोजन तैयार कर दूँ /" काका ने भोजन के लिए मेरी पसंद को नहीं जानना चाहा क्योकि वो मेरी एक-एक पसंद को बचपन से जानते थे /" 

" काका तुम मुझे आज कहानियां नहीं सुनाओगे/" मैं जब तक इस घर में था उनकी कहानियां सुने बगैर नहीं सोता था / 

काका कहानी सुनाने लगे / कहानी सुनते -सुनते मैं कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला / 

" बबुआ उठो / भोजन तैयार है " काका के आवाज़ से मेरी निद्रा भंग हुई /" 

मैंने हाथ मुह धोकर खाने के मेज पर नजर डाला / फुले-फुले कचौड़ियाँ, गोभी कि सब्जी, खीर, गुलाब जामुन, मीठी चटनी , सलाद , पापड / काका को मेरा पसंद अब तक याद है /

" मम्मी -पापा कैसे है /" मैंने खाना खाते -खाते पूछा /

" मालिक को घर आये तो बहुते -बहुते दिन हो जात है / मालकिन भी कहाँ घर में रह पावत है / कोई ना कोई रोज बुलाई लेत है /" 

" दोनों लोगों कि मुलाक़ात भी हो पाती है की नहीं /" 

" महीनों बीत जावत है / कभी मालिक आवत है तो मालकिन नाही रहत है अउर मालकिन आवत है तो मालिक नहीं / कबो कभार दोनों मिल जावत है /"

ये कोई नई बात नहीं थी इसलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ / 

मेरे पिताजी बहुत बड़े ठेकेदार है / करोड़ों की आय है / अधिकांश अपने साइट पर ही रहते है / कभी-कभार घर आते तो मेरे लिए महंगे -महंगे उपहार लाते / लेकिन नशे में धुत रहने के कारण मैं उनसे बात नहीं कर पाता / माँ कई सामाजिक और राजनितिक संगठनो से जुडी है / रोज कही ना कही कोई ना कोई कार्यक्रम में उनका निमंत्रण रहता है / घर में भी होती है तो संगठनो के लोगो के साथ बैठक में समय गुजार देती है / पिताजी भी उनके साथ कुछ पल गुजारने के लिए तरसते है / लेकिन वो अच्छी तरह जानते है कि माँ के सामाजिक और राजनैतिक पहचान के कारण ही उनकी ठेकेदारी चलती है / इसलिए कुछ नहीं बोलते / 

खाने खाकर उठा तो दिन के दो बज चुके थे / मैंने कहा " काका आज तुम्हारे हाथों का खाना खाकर मजा आ गया /" 

" रात में इससे भी बढ़िया खाना खिलाऊंगा/" काका भी खाना खा कर हाथ-मुह धोने लगे / 

" लेकिन मैं रात में यहाँ नहीं ठहरने वाला  /" 

" काहे बबुआ / बिना मालकिन से मिले चले जाओगे/" 

" हाँ काका / मैं होस्टल से भाग कर आया हूँ ना / आज बाल दिवस है / मैंने सोचा था मम्मी-पापा से मिलकर आशीर्वाद लूंगा / रात होने के पहले हॉस्टल पहुँचना होगा /" 

" तो आगे क्यों नहीं मालकिन को बताय दिए / नाही जाती वो परोगराम में " 

" नहीं काका / तुम तो जानते हो पापा को अपने व्यवशाय और मम्मी को अपने कैरियर संवारने से मौक़ा कब मिलता है जो वो मेरे लिए अपना कार्यक्रम बदल देती /" मैं मायूस होकर काका से बोला / 

" अभी हम टेलीफून कइके मालकिन के बुलाई लेत है " कहते -कहते काका जैसे ही टेलीफोन कि ओर बढे मैंने उनका हाथ पकड़ लिया / 

" कोई जरुरत नहीं काका / मैं आज अपने अभिभावकों से आशीर्वाद लेने आया था/ मम्मी -पापा नहीं है तो क्या हुआ / तुम भी क्या कोई कम हो काका / तुम हमेशा मुझे मेरी मम्मी -पापा कि कमी को पूरा किये हो / आज तुम्ही मुझे आशीर्वाद दे दो /" कहकर मैं काका के पैरों में झुक गया /

काका तुरंत मुझे उठाकर अपने गले से लगा लिए / उनके आखों से निकले आसूं आशीर्वाद बनकर मेरे सर पर गिर रहे थे / मुझे बाल दिवस का उपहार मिल चुका था / मुझे रामू काका के मोती से झरते आंसू मम्मी -पापा के दिए महंगे उपहारों से ज्यादा कीमती लग रहे थे  /

(चित्र गूगल से साभार) 

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उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के सभी मदरसों में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत गाने के आदेश के खिलाफ कई मुश्लिम संगठन और इस्लामिक धर्मगुरुओं ने आवाज़ बुलंद की है / खबर है की भारतवर्ष के राष्ट्रगान वन्दे मातरम को गैर इश्लामिक करार देते हुए कई मदरसों में इसे गाने नह

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