जीवन राह देता है पर हम उसे पकड़ नही पाते हैं।
अकर्मण्यता या आलस्य वश ऐसा होता है।
भाग्य भी पुरुषार्थ से फलीभूत होता है।
कर्म के योग से कुशलता प्राप्त होती है।
कर्म की महत्ता सर्वोपरि है। बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता है।
ईश्वर आशीष से हमें जो यह अनमोल जीवन मिला है इसे सार्थक करने के लिए हमें कर्म को महत्ता प्रदान करनी होगी।
सुविचार के चिन्तन से लक्ष्य का प्रादुर्भाव होता है।
लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमें एक योजना बनानी होगी। उस योजना के अनुरूप हमें समर्पण भाव से सतत प्रयास करना होगा तो लक्ष्य सधेगा।
लक्ष्य साधने के मार्ग में आने वाले कंटकों को दूर करने हेतु उनके अनुरूप योजना में परिवर्तन करने पड़ते हैं पर निगाह अपने लक्ष्य पर रखनी होती है। इस पूर्ण प्रक्रिया में लक्ष्य हमारा होता है।