हम निज विचारों से ही निज व्यक्तित्व निर्मित करते हैं।
यदि हम अपने विचारों को सृजनात्मक व स्फूर्तिमय बना लें तो इससे हम अपना ही निर्माण करेंगे।
हमारी इच्छाएं, आवश्यकताएं, भावनाएं और आर्दश हमारे विचार ही तो हैं।
विचारों के संयम से ही व्यक्त्वि का संयम होता है। हमारे विचारों की समृद्धि व प्रखरता ही हमारे भीतर मानवता का प्रादुर्भाव करती है।
इसी से हमें कार्य कुशलता मिलती है। दूसरों के अनुभवों के निरीक्षण से कार्य करने की योग्यता आ जाती है। ज्ञान से योग्यता बढ़ती है और जब यह योग्यता कार्यक्षेत्र में व्यक्त होती है तो उसे कुशलता कहते हैं।
हमारी योग्यता को कार्यक्षेत्र में ले जाने वाला परिवाहक मन है। वस्तुतः हमें मन को नियंत्रित व प्रशिक्षित बनाना चाहिए। मन का चिन्तन जब सही दिशा में होगा तो हमारे कार्य भी सही और सुनियोजित होंगे। कार्य कुशलता सफलता में सहायक है इसलिए सदैव कार्यकुशल बनना चाहिए।