प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रशंसा चाहता है। सही अर्थों में प्रशंसा एक प्रकार का प्रोत्साहन है!
प्रशंसा में सृजन की क्षमा होती है। इसलिए प्रशंसा करने का जब भी अवसर मिले उसे व्यक्त करने से नहीं चूकना चाहिए।
प्रशंसा करने से प्रशंसक की प्रतिष्ठा बढ़ती है।
सभी में गुण व दोष होते हैं। ऐसा नहीं है कि बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कोई गुण न हो। कोई न कोई गुण तो सबमें होता है।
असत्य बोले बिना किसी में प्रत्यक्ष या परोक्ष गुण दिखाई पड़ें तो उसे प्रकट कर देना चाहिए।
ऐसा करने से आपकी सद्भावना प्रकट होती है और दूसरा आपके अनुकूल बनता है।
प्रशंसा रूपी प्रोत्साहन से आप किसी को भी आगे बढ़ा सकते हैं।
सकारात्मक प्रोत्साहन से व्यक्ति के आचरण में सुधार भी आता है।
प्रशंसा एक ऐसा शस्त्र है जिससे आप किसी से भी कुछ भी करा सकते हैं, पर आपकी प्रशंसा असत्य जान नहीं पड़नी चाहिए।
वांछनीय कार्य हो रहा हो या वांछित प्रयोजन पूरा हुआ हो तभी प्रशंसा का शस्त्र कारगर होता है।
समय से पूर्व की गई प्रशंसा या प्रोत्साहन कारगर नहीं होता है।
प्रशंसा जितनी सृजनात्मक होगी उतनी कारगर होगी।
प्रशंसा नामक शस्त्र के उचित प्रयोग से आप जीवन में कई वांछनीय कार्य व प्रयोजन पूरे कर सकते हैं।
इसको व्यवहार में लाकर देखें आपको अवश्य सफलता मिलेगी।