shabd-logo

सपना ...!!

10 जुलाई 2016

305 बार देखा गया 305
featured image

जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...

रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वाले

इस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदास

माला की तंद्रा मानो भंग कर दी।

जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकी

आंखों के सामने नाचने लगा।

क्योंकि इसके पीछे एक गहरी टीस छिपी थी।

दरअसल जवानी में ही विधवा हो चुकी माला ने यह तो सुन रखा था कि बगैर

पुरुष के स्त्री का जीवन बिल्कुल कटी पतंग की तरह होता है। लेकिन पिछले

कुछ सालों से वह इस यथार्थ को भोग रही थी।

पति के गुजरने के बाद विकट परिस्थितियों में भी माला ने अपने इकलौते बेटे

सतीश की परवरिश में पूरी ताकत झोंक दी। इसी का नतीजा है कि पिता की मौत

के समय अबोध रहा सतीश अब किशोरावस्था की दहलीज तक पहुंच पाया है।

लेकिन  सतीश की एक बड़ी कमजोरी है। उसे मां के साथ कही  जाना बिल्कुल

मंजूर नहीं है। वह शायद अपनी मां की नियति को ले बाहरी लोगों के सामने

खुद को शर्मिंदा महसूस करता है।

सतीश तब भी टस से मस नहीं हुआ था जब माला को इलाज के लिए बड़े शहर जाने

की जरूरत हुई।

काफी दबाव देने व मनाने के बावजूद उसका बेटा उसके साथ जाने को तैयार नहीं हुआ।

उसे बहाने पर बहाने बनाता देख माला का कलेजा छलनी हो गया।

वह बार – बार एक ही बात कहता ... मां चली जाओ न किसी को साथ लेकर... मेरे

पास दूसरे भी काम है।

आखिरकार काफी तलाश के बाद एक नेक इंसान काफी सकुचाते हुए उसे अपने साथ उस

बड़े शहर को ले गया। दरअसल उसे भी वहां इलाज के लिए जाना था।

लेकिन लौटने पर इसे लेकर परिचितों के बीच खूब कानाफूसी हुई। उस भले आदमी

की पत्नी ने भी इस पर काफी हंगामा किया।

इस विचित्र पीड़ा ने माला को एक और दर्द दे दिया। क्योंकि ट्रेन से बड़े

शहर जाने के दौरान उसे अनेक सहयात्री मिले जो बाबा जगन्नाथ के दर्शन व

सैर – सपाटे के लिए पुरी जा रहे थे। उनमें से कई ने बताया कि उन्हें जब

भी मौका मिलता  है, वे पूरे परिवार के साथ तो कभी अकेले ही पुरी के लिए

निकल पड़ते हैं। वहां उन्हें असीम खुशी मिलती है क्योंकि वहां बाबा

जगन्नाथ के दर्शन के साथ समुद्र स्नान का सौभाग्य उन्हें एक साथ मिलता

है।

सहयात्रियों के इस अनुभव ने माला को न चाहते हुए भी फिर अतीत में लौटने

को मजबूर कर दिया। दरअसल उसकी भी तो बड़ी साध थी कम से कम एक बार पुरी

जाने की। उसके शहर से यह कोई ज्यादा दूर भी नहीं है। कई लोग तो जब – तब

वहां जाते रहते हैं। लेकिन माला की यह हसरत शादी से लेकर विधवा होने तक

कभी पूरी नहीं हो पाई।

पति जिंदा थे तो कई बार पुरी जाने का कार्यक्रम बना। लेकिन कभी आर्थिक

परेशानियां तो कभी बेटे सतीश से जुड़ी दिक्कतों के चलते उनका कभी वहां

जाना नहीं हो पाया।

इसी कश्मकश में एक दिन वह विधवा भी हो गई।

यात्रा के दौरान जख्मों पर लगी इस चोट ने माला को भाव – विह्वल कर दिया।

उसे लगा कम से कम दिवंगत पति के लिए एक बार वह पुरी जाए। शायद इससे  उसके

पति की आत्मा को शांति मिले कि जो काम वह अपने जीते – जी नहीं कर पाए,

उसे उसकी अनुपस्थिति में अकेले ही सही माला ने कर दिखाया।

लेकिन फिर वही अड़चन। सतीश उसके साथ जाने को बिल्कुल तैयार नहीं हुआ। औऱ

एक विधवा यदि किसी दूसरे के साथ वहां जाए तो इस पर भी बवाल होना लाजिमी

है।

उसने अपने कई परिचितों के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे यदि परिवार के साथ

कभी पुरी जाएं तो वह उनके साथ जा सकती है। लेकिन इस प्रस्ताव पर किसी ने

मुंह बिचकाया तो किसी ने हंस कर चुप्पी साध ली।

उसी पुरी धाम के बाबा जगन्नाथ के जयकारे ने माला के जख्मो पर फिर गहरी चोट की।

आंखों में आंसू भर कर माला बुदबुदाई ... प्रभू दुनिया में आने वाले

अनगिनत लोगों की असंख्य हसरतें पूरी होती है। लेकिन कुछ अभागों को छोटी

से छोटी इच्छा पूरी करने के लिए भी खून के आंसू रोने पड़ते हैं... आखिर

क्यों....!!

माला के  मस्तिष्क में अनेक सवाल उमड़ – घुमड़ रहे थे। लेकिन प्रत्युत्तर

में सिर्फ डरावनी व रहस्यमय खामोशी छाई हुई थी।

------------------------------

लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र  हैं।

----------------------------

पता ः अमितेश कुमार ओझा

भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल)

पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 08906908995

email_kamitesh87@gmail.com

अमितेश कुमार ओझा की अन्य किताबें

  सुरेश

सुरेश

जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ स्वामी की जय

14 जून 2017

1

समय का मोल ...

9 जुलाई 2016
0
4
0

कहानी------------समय का मोल...!!अमितेश कुमार ओझाकड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और बेटा चौंक उठे। अनायास ही उन्हें कुछ  प्रतिकूलता का भान हुआ। क्योंकि भोला को और देर से घर पहुंचना था। लेकिन अपेक्षा से काफी पहले ही वह घर लौट आया था। जरूर कुछ गड़बड़ हुई.... भोला की

2

सपना ...!!

10 जुलाई 2016
0
1
1

जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वालेइस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदासमाला की तंद्रा मानो भंग कर दी।जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकीआंखों के सामने नाचने लगा।क्योंक

3

घर वापसी...!!

11 जुलाई 2016
0
1
0

अरे महाराज... कहां चल दिए। रुकिए तो ... गाड़ी कभी भी चल पड़ेगी। उस युवा साधु को छोटे से स्टेशन से आगे बढ़ता देख दूसरे साधु चिल्ला उठे। लेकिन उस  पर तो जैसे अलग ही धुन सवार थी। वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। दूसरे साधु पीछे - पीछे चिल्लाते हुए लगभग दौड़ने लगे। महाराज , आपको कुछ भ्रम हो गया है क्या। आप कह

4

जनाब, जरा हमारे स्कूल पर भी हो नजरें - इनायत ....

12 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश में भेदभाव मिटाने औऱ समानता कायम करने पर काफी बातें होती है। लेकिन वास्तव में होता इसके बिल्कुल विपरीत है। क्योंकि दरअसल असमानता , गरीबी व बेरोजगारी की जड़ हमारी शिक्षा नीति में है, लेकिन इस ओर देश के कर्णधारों का ध्यान ही नहीं जाता। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि देश की भीषणतम समस्या गरीबी और

5

खुशी...!!

15 जुलाई 2016
0
1
0

वृद्धाश्रम में संदूक रखते ही राजाराम ने चैन की सांस ली। अरसे बाद उनके चेहरे पर एेसी रौनक लौटी थी। हालांकि उनका यह व्यवहार दूसरे साथियों की तरह संचालकों व स्वयंसेवकों के लिए भी खासा रहस्यमय था। क्योंकि इस वृद्धाश्रम में खुशी - खुशी अब तक कोई नहीं आया था। सब मुसीबत के मारे होते। देखने वाला कोई न होता,

6

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
0
0

 तो कहना मुश्किल था कि इसकी कितनी भयंकरपरिणति उसके परिवार को झेलनी पड़ती। अब सवाल उठता है कि यदि पेशेवरव्यावसायिक डिग्रियों का यह हाल होगा तो साधारण विद्यार्थियों के लिए देश– समाज में कौन सा स्थान बचेगा। क्या साधारण युवा अपने को दौर के लिहाजसे बचा पाने में सफल हो पाएंगे। आज स्किल इंडिया की बात हो रह

7

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
4
0

अमितेश कुमार ओझाव्हाट्स योर क्वालिफिकेशन ...। पहले छात्रों से जब यह सवाल पूछा जाता था,तो जवाब साधारणतः एमबीए और इंजीनियरिंग के मिलते थे। लेकिन समय के साथऐसे जवाब मिलने दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं। क्योंकि उपभोक्तावाद केमौजूदा दौर में इन डिग्रियों का महत्व काफी कम हो गया है। यदि कहें कि इनडिग्रियों क

8

धोखा....!!

22 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझाकस्बे के नगर सेठ गोविंद दास अपने नौकर राजाराम को बेटे से कम नहीं मानता था। कदाचित इसका कारण गोविंद दास का नंबर एक औऱ दो दोनों प्रकार का धंधा था।राजाराम उसका हर राज जानता था। इसलिए गोविंद दास उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखने की भरपूर कोशिश करते। परिवार के भरण - पोषण की मजबूरी में राजाराम

9

आरक्षण और युवा पीढ़ी

23 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा जब मैं छोटा था तब मेरेलिए आरक्षण का मतलब ट्रेन का रिजर्वेशन था। लेकिन कॉलेज पहुंचने पर मुझे इसके सहीमायने समझ में आए। इस मुद्दे पर मैने अनेक वाद – विवाद देखे और सुने। जिससे मैंसोच में पड़ गया। बेशक समाज के उस वर्ग को जिसे सदियों तक पीछे धकेला गया, पिछड़ेबने रहने पर मजबूर किया गया, क

10

भयंकर होता दहेज का दानव ...

25 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझामेरी एक परिचित महिला ऐसी है जो जवानी में ही विधवा होने को अभिशप्त रही। बच्चे बड़े होने पर उसे उनकी शादी की चिंता हुई। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी की शादी के लिए महिला दर – दर की ठोकरें खाती रही। कहीं से मदद की आस होते ही वह उनके दरवाजे पहुंच जाती और अपने से कम उम्र के लोगों के भ

11

बलि प्रथा पर रोक जरूरी...!!

27 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश  में धर्मांधता पर बनने वाली फिल्में काफी पसंद तो की जाती है। लेकिन इन फिल्मों का लेशमात्र भी सकारात्मक असर समाज पर पड़ता हो, एेसा नहीं कहा जा सकता। इसका जीता - जागता उदाहरण सदियों बाद भी समाज में बलि प्रथा का कायम रहना है। साधारणतः हर धर्म में यह किसी न किसी रूप में मौजूद है। जिसे रोक पाने

12

कमाओ भैया कमाओ... लेकिन पब्लिक को यूं मूर्ख तो न बनाओ

28 जुलाई 2016
0
3
0

अमितेश कुमार ओझाहमारे देश मेंअच्छे – खासे पढ़े लिखे डिग्रीधारी नौजवानों को चंद हजार की नौकरी भले न मिलती हो,लेकिन फिल्मी स्टार और क्रिकेट खिलाड़ियों की करोड़ों की कमाई की चर्चा यूं कीजाती है मानो दस – बीस रुपए की बात हो रही हो। कोई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसेकरोड़ों में खेलने वाला करार दे दिया जाता

13

जरूर दो जनाब वीआइपी को सिक्यूरिटी , लेकिन जनता का भी तो ख्याल रखो ...!!

3 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ दिन पहले मैं अपनेशहर में किसी जरूरी कार्य से जा रहा था, कि अचानक एक बड़े पुल पर पुलिस ही पुलिसदेख घबरा गया। पुल  के नीचे से रेलवे लाइनगुजरती है। मैने सोचा क्या कहीं कोई अनहोनी हो गई है। पुल पर इतनी पुलिस क्यों है।चौंकने वालों में मैं अकेला नहीं था। जिसकी भी नजर इतनी अधिक संख्या

14

युवाओं के लिए आजादी का मतलब...

9 अगस्त 2016
0
2
1

अमितेश कुमार ओझासमाज की यह बड़ी विडंबना है कि हर दौर में पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी अधिकस्वतंत्र व गैर  - जिम्मेदार लगती है। हम अक्सर बुजुर्गों से सुनतेहैं... भैया ... आजकल के ये लड़के...। इनकी तो न ही पूछो तो ठीक....लेकिन सवाल उठता है कि क्या पुरानी पीढ़ी की नई पीढ़ी के प्रति यह सोचउचित है। बेशक आज क

15

कैसे मजबूत हो बैंकों की बुनियाद

26 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ साल पहले मेरे शहर में दिन – दहाड़े बैंक की 20 लाख रुपए की रकम लूट ली गई। वाकया दिन को हुआ था, लिहाजा पुलिस ने आनन – फानन कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन असली समस्या तब आई जब लूट का शिकार बने बैंक के कर्मचारियों ने शिनाख्त परेड के दौरान अपराधियों को पहचानने से साफ इन्कार कर

16

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
0
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

17

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
2
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए