shabd-logo

तपस्या...

13 जुलाई 2016

177 बार देखा गया 177
तपस्या
तू बनी मील का पत्थर , देखती  रही उनको,
जो बढ़ते रहे लेके तुझसे, दिशा का अनुमान,
तेरे होने पर भी, न था आभास तेरे होने का,
तुझे भी न थी जैसे, प्रतीक्षा किसी धन्यवाद की,
क्युँकी पहुँच जाएँ मंज़िल तक वो,
उनकी ख़ुशी थी, तेरी खुशी …
तू बनी रही मिट्टी जड़ो की, वो चढ़ते रहे परवान,
कभी प्रेम लगा सिंचाई में , और कभी अरमान,
तू खड़ी रही रसोई में , पर चलता रहा जहान,
ना अहसास है तेरे होने का, न प्रतीक्षा धन्यवाद की,
क्युँकी उनकी ख़ुशी थी, तेरी खुशी …

वो उड़ते रहे पतंग बन, खुली हवा, खुला आसमान,
तुम थमी रही धरती पे, चरखी और माँझा बन,
वो रहे आते जाते,
तू खोलती और करती रही बंद दरवाज़े,
ना अहसास है तेरे होने का, न प्रतीक्षा धन्यवाद की,
क्युँकी उनकी ख़ुशी थी, तेरी खुशी …

पूँछा इक दिन मैंने जब, कैसे कर पाती हो सब,
मुँह से कोई आह नहीं, क्या तेरी कोई चाह  नहीं,
संयम धीरज बाकी सब पे, क्या विश्वास तेरा है सच,
कहती है, क्या पता मुझे, कुछ तो होगा यकीन उसे,
जो चुना मुझे उसने है तो, सही गलत अब जाने वो,
जो उसने दिया, मैंने जिया, उसकी रज़ा में मेरी रज़ा…

सब अपनी जगह सही, सब अपनी जगह बुलंद है,
न की तूने कोई हठ कभी , न कोई चुभन है,
पर जीवन को ऐसे जीना, क्या किसी तपस्या से कम  है,
जीवन को ऐसे जीना, क्या किसी तपस्या से कम  है…
  
By – Sneha Dev

1

ख़ुशगुमानी

12 जून 2016
0
0
0

ख़ुशगुमानीयूँ आरज़ू को हवा दी मैंने ,की उड़ा ले चली है मेरी रूह को ऐसे,की आता नहीं सुकूँ जमी पर मुझे,और क़दम ठहरते नहीं बादलों पर मेरे.. ऐ खुदा, हसरतों को देकर रवानी थोड़ी, मेरी हस्ती को कोई तो कहानी दे दे...कुछ तो होगा तेरे ज़हन में मेरा नक़्श,राह दिखा कुछ, ज़िंदगी में ज़िंदगानी दे दे .. यूँ तो तेर

2

ज़िन्दगी तुम मेरी प्रिय सहेली...

13 जून 2016
0
4
5

ज़िन्दगी तुम मेरीप्रिय सहेली...  रोज़सुबह सूरज के संग, तुम भी यू आ जाती हो,उठामुझे गरम बिस्तर से, काम थमा यूँ देती हो,फिरभी होती हूँ मैं प्रसन्न, और देती हूँ यूँ मुस्कुरा,एकऔर दिया है सुंदर दिन, जीने को तुमने ओप्रिया, कभीहुए दुखी तुमसे हम, कभी घंटो राह तकी है,कभीभीगे हुए नयनो में भी, तुमसे आस जगी है

3

ख़ामोश लफ्ज़

13 जून 2016
0
4
6

गर रहती ख़ामोश तो बदल जाते लफ़्ज़ ज़हर मेंऔर मैं मर जाती ...आते जो लफ़्ज़ बाहर.. रिश्ते मर जाते,नुक़सान तो आख़िर हुआ मेरा ही इस सफ़र में...By - Sneha 

4

याद के साये…

14 जून 2016
0
2
1

याद के साये… लम्हा लम्हा, पलछिन पलछिनगुज़र गए हैं, एक दिन दो दिनधुआँ धुआँ हैं, याद के सायेये दिन वो दिन, वो दिन ये दिन,अब भी अक्सर आते जाते,उड़ते फिरते, आवारा से,बादल के छिछोरे गुब्बार,अनचाहे ही ज़िद्दी बन के,छू के करें ठिठोली मन से,बन बन बारिश की बौछार…महक उड़ा सौंधी मिट्टी की ,जगा गए हैं, अतृप्त प

5

शब्दानगरी को धन्यवाद

14 जून 2016
0
4
0

मेरी लिखी रचनाओं को पसंद और पुरुष्कृत करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.   आपकी सरात्मक टिप्पीडियो के लिए आभार. स्नेहा देव 

6

कोरा मन…

18 जून 2016
0
1
0

कोरा मन… कोरा सा मन, कोरा है दिन, औऱ मेरा कागज़ भी,लिख दूँ सुन्दर इसमें कुछ मैं, या बहा दूँ बना नावं इसकी,धीमी धीमी लहराती पवन, मन तरंग हुई पतंग,बहती हवा से, उलझता पानी,झन झन, कल कल आती धवनि,रेत किनारे , पत्थरों को जैसे,सहला के पिघलने को कहती लहर,हर कोशिश में छोड़ जाती है छाप अपनी,पत्थर अडिग है, लहर क

7

बाबूजी ... (पित्र दिवस के अवसर पर सभी पिताओं को समर्पित मेरी एक रचना)

19 जून 2016
0
4
2

‘बाबूजी’…  कभी था स्तम्भ एक गर्वित सा,  जो जीवन पथ पर डटा हुआ,हर एक पल जिसके जीवन का था, संघर्ष से भरा हुआ,फिर भी दिखा न हमें कभी उसके माथे कोई मलाल,या समय नहीं था रुकने का, और उठा सके कोई सवाल,अनजाने ही में ये सब उसने सिखा दिया था हमको भी,तो क्या मलाल और क्या सवाल, शब्दावली में यह थे ही नहीं… सब जग

8

तपस्या...

13 जुलाई 2016
0
2
0

तपस्यातू बनी मील का पत्थर , देखती  रही उनको,जो बढ़ते रहे लेके तुझसे, दिशा का अनुमान,तेरे होने पर भी, न था आभास तेरे होने का,तुझे भी न थी जैसे, प्रतीक्षा किसी धन्यवाद की,क्युँकी पहुँच जाएँ मंज़िल तक वो,उनकी ख़ुशी थी, तेरी खुशी …तू बनी रही मिट्टी जड़ो की, वो चढ़ते रहे परवान,कभी प्रेम लगा सिंचाई में , और कभ

9

यकीं ...

11 अगस्त 2016
0
3
2

था यकीं इश्क़ पर मेरा, यूँ बेवफ़ाई निभा गयी मैं ...था यकीं उजालों पर तो, अंधेरों में दिए जला गयी मैं...था ऐतबार उम्मीदों पर बड़ा, हौंसला रख क़दम बढ़ा गयी मैं ...- स्नेहा देव 

10

कुछ रंग

6 दिसम्बर 2016
0
2
0

कुछ रंग तू भर दे स्याही में ,कुछ हवा दे दे अरमानों को, कलम भी तेरी कलाम भी तेरा, तू रुख बदल दे तूफानों के ...

11

तुम्हारा ख़याल

29 दिसम्बर 2016
0
1
3

सच है की तुमसे है ज़्यादा,तुम्हारा ख़्याल ख़ूबसूरत क्यूँकि इसमें हक़ीक़त के दाग़ों का शुमार नहींढल जाता है ये मेरी पसंद से …घंटो बैठता है मेरे नज़दीक ये मेरी आँखों में आँखें डाल, पकड़ कर मेरे हाथो कोदे जाता है गरमाहटठंडी अकेली शामों में अक्सर…मेरी उदासियों का गवाह बनकेचुपचाप रहता है नज़दीक मेरे बिना

12

प्यारी माँ

24 मई 2017
0
1
3

काश तुम थोड़ा और ठहर जातीकाश मैं कुछ पहले समझ पातीकाश न निभाई होती फ़िज़ूल की सामाजिक रस्में मैंने और काश तुमने भी हर बार न समझ करमेरी परिस्तिथी को, थोड़ा ज़िद करमुझें बुलाया होता,तुम तो बड़ी थी पता तो होगा तुमकोकी तुम्हारे बाद तुम्हारा ख्याल जब जबआएगा न जाने कितनें खोएं लम

13

सौत

24 मई 2017
0
2
0

नाज़ था जिस ख़ूबसूरती पर मुझे वही मासूमियत की मौत बन गया,पहुँच न पाया इश्क़ रूह तकज़िस्म राह में सौत बन गया ...By - Sneha Dev (1/5/17)

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए