shabd-logo

खुशी...!!

15 जुलाई 2016

139 बार देखा गया 139
featured image

वृद्धाश्रम में संदूक रखते ही राजाराम ने चैन की सांस ली। अरसे बाद उनके चेहरे पर एेसी रौनक लौटी थी। 

हालांकि उनका यह व्यवहार दूसरे साथियों की तरह संचालकों व स्वयंसेवकों के लिए भी खासा रहस्यमय था। क्योंकि इस वृद्धाश्रम में खुशी - खुशी अब तक कोई नहीं आया था। सब मुसीबत के मारे होते। 

देखने वाला कोई न होता, तब ही यहां कोई आता। वह भी भारी अफसोस के साथ। केंद्र में काफी दिन बिताने के बावजूद विरले ही वृद्ध यहां के माहौल के साथ तारतम्य बिठा पाते। सभी गम में डूबे रह कर उन तथाकथित अपनों को याद कर तड़पते रहते, जिन्होंने उन्हें इस हाल में छोड़ दिया। केंद्र में रहने वाले हर वृद्ध के मुंह से बार - बार एक ही बात निकलती... हे भगवान.... अब मुझे उठा ले... अब नहीं सहा जाता, रहम कर भगवान....। 

लेकिन राजाराम अपवाद थे। यहां आने के बाद उनके चेहरे पर प्रसन्नता साफ नजर आ रही थी। जिसे देख कर हर कोई हैरान था। 

उनकी यह रहस्यमय खुशी  देखकर आश्रम के सेवादारों से रहा न गया। आखिरकार उनमें से एक ने साहस कर  पूछ ही लिया... चचा , यहां आकर हर किसी का मुंह लटक जाता है। लेकिन आप काफी खुश दिख रहे हो। आखिर इस खुशी का राज क्या है...। 

कौतूहल को उचित बताते हुए राजाराम ने अपनी जो आपबीती सुनाई, उसे सुन कर सभी हैरान रह गए। 

दरअसल राजाराम का बचपन घोर संघर्ष में बीता था। वे पढ़ने में काफी तेज थे। लिहाजा कालेज जीवन में ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई। 

लेकिन शहर आने के कुछ दिन बाद ही उन्हें पता चला कि उनका भतीजा किसी बात से नाराज होकर घर से भाग गया है। किसी तरह ढूंढ कर उसे पकड़ा  जा सका। 

बड़े भैया ने उसे उनके हवाले करते हुए कहा ... राजाराम इसे तू अपने पास रख ले। तेरे साथ रहेगा, तो इसका भी भविष्य बन जाएगा। खर्चे की तू बिल्कुल चिंता मत करना, मैं हर महीने भेज दिया करूंगा...। 

इसके बाद भतीजा उनके पास ही रहने लगा। कुछ महीनों के दौरान  दो  अन्य रिश्तेदार भी अपने - अपने बिगड़ैल बच्चों के साथ उसके यहां आए, और उन्हें अपने पास रख लेने की गुजारिश करने लगे। 

राजाराम किसी को मना नहीं कर सके। तीनों बच्चों को उन्होंने अपनी संतान की तरह पाला - पोसा। अच्छे मार्गदर्शन की वजह से तीनों अच्छा पढ़ने भी लगे। हालांकि राजाराम ने कभी किसी से एक भी पैसा खर्चे के तौर पर नहीं लिया। तीनों को लायक बनाने की धुन में उन्होंने अपना घर बसाने का ख्याल ही छो़ड़ दिया। 

गांव वालों के पूछने पर वे कहते... मेरा बचपन खुद ही दुख में बीता है, अब दूसरों का भविष्य संवारना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। हालांकि कईयों ने उन्हें सचेत किया। लेकिन राजाराम नहीं माने। 

तीनों बच्चे भी उन पर जान छिड़कते। वे अक्सर कहा करते... जिस तरह आपने हमारा ख्याल रखा, बुढ़ापे में हम भी आपको इतना ही अपनत्व देंगे। आपको कभी किसी बात का गम नहीं रहेगा। 

लेकिन बड़े होने पर सभी अच्छी - अच्छी नौकरी से जुड़ते हुए राजाराम को एकबारगी भुला ही बैठे। 

जिन्हें राजाराम ने इस काबिल बनाया, उनका उनसे वास्ता सिर्फ मोबाइल भर से था। कभी - कभार फोन कर वे हाल - चाल ले लेते। 

बहुत हुआ तो जरूरत की बात पूछ ली जाती। पैसों की बात से राजाराम के आत्मसम्मान को गहरा धक्का लगता। एेसी बातों पर वे देर तक बड़बड़ाते रहते। 

समय के साथ अकेलेपन ने राजाराम को तोड़ कर रख दिया। रिटायर्ड जीवन वह भी बिल्कुल अकेले काटना उनके लिए दुष्कर साबित होने लगा। क्योंकि नजदीकी रिश्तेदारों ने भी उनसे दूरी बना ली थी। 

इस बीच घरों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों के साथ होने वाली आपराधिक वारदातों ने उनमें असामान्य खौफ पैदा कर दिया था। वे अकेले बड़बड़ाते रहते.... एेसी जिंदगी से तो जेल भली, कम से कम वहां हर समय काफी लोग तो रहते हैं... मेरी तरह उन्हें हर समय दीवार तो नहीं देखना पड़ता.... । एेसा अकेलापन तो कैदियों को नहीं झेलना पड़ता होगा...। उनके मुंह से एेसी बातें सुन कर कईयों को लगा कि राजाराम का मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है। इस बीच कुछ ने उन्हें वृद्धाश्रम जाने का सुझाव दिया। 

काफी कश्मकश के बाद उन्होंने वृद्धाश्रम में  रहने का फैसला कर लिया। पदाधिकारियों को सौंपे गए आवेदन के स्वीकृत होते ही राजाराम खुशी से झूम उठे। तभी से वे इतने प्रसन्न नजर आने लगे थे। 

उत्सुकता से उनकी आपबीती सुन रहे सेवादारों को बारी - बारी से छूते हुए राजाराम बोले ... अब मुझे वह मारक अकेलापन नहीं झेलना पड़ेगा... अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं... अब मैं जिंदगी से कभी कोई शिकायत नहीं करूंगा...। 

राजाराम की इस अप्रत्याशित प्रसन्नता से वहां मौजूद हर कोई हतप्रभ था। 

-------------------------------------------------------------------------------------------

लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र  हैं।

अमितेश कुमार ओझा की अन्य किताबें

1

समय का मोल ...

9 जुलाई 2016
0
4
0

कहानी------------समय का मोल...!!अमितेश कुमार ओझाकड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और बेटा चौंक उठे। अनायास ही उन्हें कुछ  प्रतिकूलता का भान हुआ। क्योंकि भोला को और देर से घर पहुंचना था। लेकिन अपेक्षा से काफी पहले ही वह घर लौट आया था। जरूर कुछ गड़बड़ हुई.... भोला की

2

सपना ...!!

10 जुलाई 2016
0
1
1

जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वालेइस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदासमाला की तंद्रा मानो भंग कर दी।जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकीआंखों के सामने नाचने लगा।क्योंक

3

घर वापसी...!!

11 जुलाई 2016
0
1
0

अरे महाराज... कहां चल दिए। रुकिए तो ... गाड़ी कभी भी चल पड़ेगी। उस युवा साधु को छोटे से स्टेशन से आगे बढ़ता देख दूसरे साधु चिल्ला उठे। लेकिन उस  पर तो जैसे अलग ही धुन सवार थी। वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। दूसरे साधु पीछे - पीछे चिल्लाते हुए लगभग दौड़ने लगे। महाराज , आपको कुछ भ्रम हो गया है क्या। आप कह

4

जनाब, जरा हमारे स्कूल पर भी हो नजरें - इनायत ....

12 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश में भेदभाव मिटाने औऱ समानता कायम करने पर काफी बातें होती है। लेकिन वास्तव में होता इसके बिल्कुल विपरीत है। क्योंकि दरअसल असमानता , गरीबी व बेरोजगारी की जड़ हमारी शिक्षा नीति में है, लेकिन इस ओर देश के कर्णधारों का ध्यान ही नहीं जाता। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि देश की भीषणतम समस्या गरीबी और

5

खुशी...!!

15 जुलाई 2016
0
1
0

वृद्धाश्रम में संदूक रखते ही राजाराम ने चैन की सांस ली। अरसे बाद उनके चेहरे पर एेसी रौनक लौटी थी। हालांकि उनका यह व्यवहार दूसरे साथियों की तरह संचालकों व स्वयंसेवकों के लिए भी खासा रहस्यमय था। क्योंकि इस वृद्धाश्रम में खुशी - खुशी अब तक कोई नहीं आया था। सब मुसीबत के मारे होते। देखने वाला कोई न होता,

6

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
0
0

 तो कहना मुश्किल था कि इसकी कितनी भयंकरपरिणति उसके परिवार को झेलनी पड़ती। अब सवाल उठता है कि यदि पेशेवरव्यावसायिक डिग्रियों का यह हाल होगा तो साधारण विद्यार्थियों के लिए देश– समाज में कौन सा स्थान बचेगा। क्या साधारण युवा अपने को दौर के लिहाजसे बचा पाने में सफल हो पाएंगे। आज स्किल इंडिया की बात हो रह

7

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
4
0

अमितेश कुमार ओझाव्हाट्स योर क्वालिफिकेशन ...। पहले छात्रों से जब यह सवाल पूछा जाता था,तो जवाब साधारणतः एमबीए और इंजीनियरिंग के मिलते थे। लेकिन समय के साथऐसे जवाब मिलने दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं। क्योंकि उपभोक्तावाद केमौजूदा दौर में इन डिग्रियों का महत्व काफी कम हो गया है। यदि कहें कि इनडिग्रियों क

8

धोखा....!!

22 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझाकस्बे के नगर सेठ गोविंद दास अपने नौकर राजाराम को बेटे से कम नहीं मानता था। कदाचित इसका कारण गोविंद दास का नंबर एक औऱ दो दोनों प्रकार का धंधा था।राजाराम उसका हर राज जानता था। इसलिए गोविंद दास उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखने की भरपूर कोशिश करते। परिवार के भरण - पोषण की मजबूरी में राजाराम

9

आरक्षण और युवा पीढ़ी

23 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा जब मैं छोटा था तब मेरेलिए आरक्षण का मतलब ट्रेन का रिजर्वेशन था। लेकिन कॉलेज पहुंचने पर मुझे इसके सहीमायने समझ में आए। इस मुद्दे पर मैने अनेक वाद – विवाद देखे और सुने। जिससे मैंसोच में पड़ गया। बेशक समाज के उस वर्ग को जिसे सदियों तक पीछे धकेला गया, पिछड़ेबने रहने पर मजबूर किया गया, क

10

भयंकर होता दहेज का दानव ...

25 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझामेरी एक परिचित महिला ऐसी है जो जवानी में ही विधवा होने को अभिशप्त रही। बच्चे बड़े होने पर उसे उनकी शादी की चिंता हुई। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी की शादी के लिए महिला दर – दर की ठोकरें खाती रही। कहीं से मदद की आस होते ही वह उनके दरवाजे पहुंच जाती और अपने से कम उम्र के लोगों के भ

11

बलि प्रथा पर रोक जरूरी...!!

27 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश  में धर्मांधता पर बनने वाली फिल्में काफी पसंद तो की जाती है। लेकिन इन फिल्मों का लेशमात्र भी सकारात्मक असर समाज पर पड़ता हो, एेसा नहीं कहा जा सकता। इसका जीता - जागता उदाहरण सदियों बाद भी समाज में बलि प्रथा का कायम रहना है। साधारणतः हर धर्म में यह किसी न किसी रूप में मौजूद है। जिसे रोक पाने

12

कमाओ भैया कमाओ... लेकिन पब्लिक को यूं मूर्ख तो न बनाओ

28 जुलाई 2016
0
3
0

अमितेश कुमार ओझाहमारे देश मेंअच्छे – खासे पढ़े लिखे डिग्रीधारी नौजवानों को चंद हजार की नौकरी भले न मिलती हो,लेकिन फिल्मी स्टार और क्रिकेट खिलाड़ियों की करोड़ों की कमाई की चर्चा यूं कीजाती है मानो दस – बीस रुपए की बात हो रही हो। कोई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसेकरोड़ों में खेलने वाला करार दे दिया जाता

13

जरूर दो जनाब वीआइपी को सिक्यूरिटी , लेकिन जनता का भी तो ख्याल रखो ...!!

3 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ दिन पहले मैं अपनेशहर में किसी जरूरी कार्य से जा रहा था, कि अचानक एक बड़े पुल पर पुलिस ही पुलिसदेख घबरा गया। पुल  के नीचे से रेलवे लाइनगुजरती है। मैने सोचा क्या कहीं कोई अनहोनी हो गई है। पुल पर इतनी पुलिस क्यों है।चौंकने वालों में मैं अकेला नहीं था। जिसकी भी नजर इतनी अधिक संख्या

14

युवाओं के लिए आजादी का मतलब...

9 अगस्त 2016
0
2
1

अमितेश कुमार ओझासमाज की यह बड़ी विडंबना है कि हर दौर में पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी अधिकस्वतंत्र व गैर  - जिम्मेदार लगती है। हम अक्सर बुजुर्गों से सुनतेहैं... भैया ... आजकल के ये लड़के...। इनकी तो न ही पूछो तो ठीक....लेकिन सवाल उठता है कि क्या पुरानी पीढ़ी की नई पीढ़ी के प्रति यह सोचउचित है। बेशक आज क

15

कैसे मजबूत हो बैंकों की बुनियाद

26 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ साल पहले मेरे शहर में दिन – दहाड़े बैंक की 20 लाख रुपए की रकम लूट ली गई। वाकया दिन को हुआ था, लिहाजा पुलिस ने आनन – फानन कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन असली समस्या तब आई जब लूट का शिकार बने बैंक के कर्मचारियों ने शिनाख्त परेड के दौरान अपराधियों को पहचानने से साफ इन्कार कर

16

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
0
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

17

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
2
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

---

किताब पढ़िए