संगीत के 'बौद्धिक' जानकार मुकेश की गायकी को सादा बताकर उसे उनकी सीमित प्रतिभा कहते थे लेकिन आम आदमी खुद को इसी आवाज के सबसे करीब पाता था
मुकेश के हिस्से में शायद ही कभी मस्तीभरे गाने आए हों लेकिन अपने गानों के मिजाज से अलग वे मासूमियत भरे मजाक करने में कभी चूकते नहीं थे. यहां तक कि उन्हें खुद पर मजाक करने से भी गुरेज नहीं था.
मुकेश मजाक-मजाक में कहा करते थे कि लता मंगेशकर इतनी उम्दा और संपूर्ण गायिका इसलिए समझी जाती हैं क्योंकि उनके साथ गाते हुए वे खूब गलतियां करते हैं
मुकेश के बारे में आम राय है कि वे बहुत ‘सादा’ गाते थे. यहां सादे का मतलब बोझिल नहीं बल्कि सरल गाने से है और बौद्धिक संगीतविशारद इसी सादगी को लंबे समय तक उनकी सीमित प्रतिभा कहते रहे. लेकिन यही वह आवाज थी जिसने फिल्मी गीतों के माध्यम से हमारे जीवन में पैदा होने वाली उदासी और दर्द को सबसे असरदार तरीके से साझा किया.
मुकेश के गानों से जुड़ी एक दिलचस्प बात है कि जब वे ‘जिंदगी हमें तेरा ऐतबार न रहा...’ गाते हैं तो बिल्कुल धीरे-धीरे गहरी हताशा की तरफ ले जाते हैं तो वहीं एक दूसरे गाने में ‘गर्दिश में तारे रहेंगे सदा...’ गाते हुए मुकेश बहुत-कुछ खत्म होने बाद भी थोड़ा बहुत बचा रहने की दिलासा देते हैं. हताशा और दिलासा का यह दर्शन मुकेश के कई गानों में है. ये दोनों भाव निकलते दर्द से ही हैं, उस दर्द से जो हम सबके जीवन का अनिवार्य हिस्सा है. इसलिए हर शब्द जो मुकेश के गले से निकलता है हमारे आसपास से गुजरता हुआ महसूस होता है.
संगीतकार कल्याण जी ने मुकेश की इस खूबी को उनकी सबसे बड़ी खासियत बताते हुए कहा था, ‘जो कुछ भी सीधे दिल से आता है, आपके दिल को छूता है. मुकेश की गायकी कुछ ऐसी ही थी. उनकी गायकी की सरलता और सादापन जिसे कुछ लोगों ने कमी कहा, हमेशा संगीत प्रेमियों पर असर डालती थी.
किसी कालजयी गायक की सबसे बड़ी पहचान यही होती है कि उसके गाने सुनते हुए आप उन्हें गुन-गुनाने से खुद को रोक नहीं पाते. मुकेश भी ऐसे ही गायक रहे हैं.