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अबोध मेहमान !

31 जुलाई 2016

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जब इस प्रथम बार हथेली पर उठाया

दिनांक १६ मई २०१४ को मुझे यह मिला। किसी पेड़ से गिर गया था । कव्वे परेशान कर रहे थे। 
मेरे छोटे भाई इसे बचाकर घर ले आये । उन पेड़ो के झुरमुट में इसका घर तलाशना संभव नहीं था !

 बहुत ही छोटा सा था जो की अभी उड़ना भी नहीं जानता था ,और बहुत डरा हुवा भी ,

इसलिए इसे खुले में रखना भी उचित नहीं लगा !

इसे बचाकर घर ले आये,! 
अब समस्या यह थी के यह अभी उड़ना नहीं जानता और इसे इस हाल में अकेले नहीं छोड़ सकते ।

यह कुछ खा पि भी नहीं रहा था , इस बाबत मैंने अपने फेसबुक प्रोफाईल पर पोस्ट भी की,

और मित्रो की सलाह मांगी!

जब खिलाने के सारे तरीके विफल हो गए तो इसे छत पर ले जाया गया

और कुछ दाने वहा बिखेरे, तब कई चिड़िया वहा दाना चुगने आई । और हैरान करने वाली बात तो यह थी के उन्होंने उस नन्हे चिड़िया को भी अपने मुंह से खाना खिलाया, कुछ देर बाद वे उड़ गयी ।

तब समझ में आया के अब इसे जब तक यह उड़ नहीं जाता रोज इसी तरह छत पर ले जाना होगा ।

क्योकि शायद उसे यही तरीका पता हो खाने का ! उसकी माँ भी तो चोंच में ही भरती होगी ,

तो हमने उसे चावल के दाने उसके समक्ष रखने के बजाय हाथो से खिलाना ही उचित समझा !

और उसे उसकी चोंच के सामने चावल का दाना दिखाते स्पर्श कराते और वह गप्प से

मुंह खोलता और निगल लेता ! अब इस नन्हे मेहमान के घर आ जाने से हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ गई .

हमें घर में एक नवजात शिशु के होने का अनुभव एवं जिम्मेदारी का अनुभव होने लगा .

हमने इसके नजदीक अपना अंगूठा किया और यह नन्हा जिव फुर्र से हमारे हाथ पर आ गया ,

मानो उसने जान लिया हो के उसे मुझसे किसी प्रकार का खतरा नहीं .

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प्रथम बार इसने मेरे हाथो से भोजन ग्रहण किया

इसने उड़ने की कोशिश तो दुसरे दिन ही शुरू कर दी थी,लेकिन वह घर के बाहर नहीं जाता था,

हां घर के बाहर भी जब निकलता तब हमारे अंगूठे पर ही बैठा रहता,

 और दूसरी चिडियों को देखकर चहचहाता !

यकींन मानिए ,यह इतना मासूम और निरीह था के इसे अपने हाथो में सोता देखकर मुझे उन

लोगो की सोच पर हैरानी होती है जो इन पशु पक्षियों को मात्र स्वाद की वस्तु समझते है !
न इन्हें किसी की जुबान समझ में आती है और न किसी के शब्द ,

लेकिन फिर भी प्यार के अहसास को समझते है .
इसलिए जब से इसे लाया गया था तब से यह इतने आराम से हमारे बेड के सिरहाने सो रहा था ,

मानो इसे हमसे कोई डर ही नहीं है !
मेरी पत्नी जी ने इसे तकिये के बगल में सुलाया था ,किन्तु मैंने सोचा कही रात्रि में अनजाने में करवट लेते समय कुछ हो न जाये इसलिए इसे बेड के नजदीक एक कुर्सी पर एक कार्टन के बॉक्स में कुछ चावल,

और पानी रखकर सुला दिया करता था और वह सोता भी था  .

लेकिन सुबह सुबह ही अपने चहकने से इसने परेशान करना शुरू कर दिया !

अपने बक्से में से कूद कर सारा घर घुमता रहता ,और हम इसके पीछे परेशान रहते की कही

अपना अहित न कर ले.  

उस दिन बालकनी में लेके गया तो दूसरी चिडियो को देखकर फुदक रहा था पंख फडफडा रहा था ।

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हमारी सबसे प्यारी तस्वीर

आज खुश लग रहा था । ठीक हो रहा था लेकिन बालकनी में भी मेरी ऊँगली नहीं छोड़ रहा था ,

ऊँगली पर बैठे बैठे ही फुदकने का प्रयत्न कर रहा था  ।

आखिरकार तीन दिन हमारे घर रहनेवाले इस मेहमान ने अपनी उड़ान भरी और हमें अलविदा कह दिया !
वह तीन दिन दिन सच में बहुत भावनात्मक थे हमारे लिए ,

इसकी देखभाल में वक्त कैसे गुजर गया यह पता ही नहीं चला ,

जब हम इसे छत पर अन्य चिडियों के बिच ले गए तो

जाते जाते वे इसे भी लेते चले गए !

हमें बहुत ख़ुशी हुयी किन्तु थोड़ी तकलीफ भी हुयी !

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