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जरूर दो जनाब वीआइपी को सिक्यूरिटी , लेकिन जनता का भी तो ख्याल रखो ...!!

3 अगस्त 2016

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अमितेश कुमार ओझा

कुछ दिन पहले मैं अपने शहर में किसी जरूरी कार्य से जा रहा था, कि अचानक एक बड़े पुल पर पुलिस ही पुलिस देख घबरा गया। पुल  के नीचे से रेलवे लाइन गुजरती है। मैने सोचा क्या कहीं कोई अनहोनी हो गई है। पुल पर इतनी पुलिस क्यों है। चौंकने वालों में मैं अकेला नहीं था। जिसकी भी नजर इतनी अधिक संख्या में पुलिस जवानों पर पड़ती , वहीं चकरा जाता। कुछ बाइक सवार इधर – उधर  यह सोच कर भागने लगे कि शायद पुलिस हेलमेट पकड़ रही है। लेकिन बाद में पता लगा कि सूबे के सीएम कहीं जा रहे हैं। उनकी सुरक्षा में ही इतने सारे जवान तैनात किए गए हैं। यह नजारा देख मैं सोच में पड़ गया कि आखिर हमारे देश में राजनेताओं को इतनी सुरक्षा क्यों दी जाती है। आखिर उन्हें किसका डर है। जो जनता द्वारा चुने गए हैं उन्हें जनता से ही डर क्यों लगता है। सबसे बड़ी बात यह कि बड़े – बड़े राजनेताओं को सुरक्षा देने में जो पुलिस चौकस नजर आती है उन्हीं जवानों की तत्परता आम – आदमी को सुरक्षा देने में क्यों गायब हो जाती है। अभी कुछ दिन पहले बुलंदशहर में हुई गैंगरेप की घटना से करोड़ों देशवासियों के साथ मैं भी दहल गया। लेकिन फिर चैनलों पर देखा कि उसी बुलंदशहर की पुलिस थानों में आऱाम से सो रही है। सोने वाले जवानों से पूछना चाहूंगा कि जब उनके इलाकों में कोई वीआइपी आता है तब भी क्या वो ऐसे ही सोते रहते हैं। बिल्कुल नहीं तब तो जवानों पर अपनी मुस्तैदी दिखाने का भूत सवार हो जाता है। फिर बुलंदशहर या किसी खास प्रदेश की ही बात क्यों करे। अपने देश में अपवाद को छोड़ ज्यादातर प्रदेशों की पुलिस में पेशेवर भावना नहीं है। वे नहीं सोचते कि उन पर आम आदमी को सुरक्षा देने की कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हें जो तनख्वाह मिलती है वो जनता की जेब से निकलती है। लेकिन विडंबना यह कि पुलिस वहीं थोड़ा – बहुत मुस्तैद दिखती है, जहां कुछ कमाई की आस हो। कुछ दिन पहले मैं नेशनल हाइवे से गुजर रहा था। अचानक जाम लग गया। काफी कोशिश के बावजूद इसका कारण समझ में नहीं आया। बड़ी मुश्किल से जाम हटा तो कुछ दूरी पर जवानों को नोट गिनते देख दंग रह गया। दरअसल जवानों ने ही जाम लगवाया था, और पैसे लेकर – लेकर वाहनों को आगे बढ़ाया। गर्मी से बेहाल वाहन चालकों ने रात के डर से जैसे – तैसे पैसे देकर मुसीबत टाली। यदि किसी देश की पुलिस का यह रवैया हो तो वहां आम – आदमी की सुरक्षा की क्या गारंटी होगी। बचपन में मैं सुनता था कि खाकी वाले घूस इसलिए खाते हैं क्योंकि उन्हें तनख्वाह बहुत कम मिलती है। लेकिन अब तो ऐसी बात नहीं है। अब हर जगह खाकी व र्दी वालों को अच्छी – खासी तनख्वाह और सुख – सुविधाएं मिल रही है। फिर वे अपने रवैये से बाज क्यों नहीं आ रहे हैं। आखिर क्यों पेशेवर तरीके से अपनी डय़ूटी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। बेशक हर पुलिस के मामलें में ऐसा नहीं कहा जा सकता। निष्ठावान , ईमानदार और जांबाज पुलिस जवान और अधिकारी भी हैं जो अपनी जान पर खेल कर अपना कर्तव्य पूरा करते हैं। लेकिन दो एक जवानों से काम न हीं चल सकता । पूरी फोर्स को पेशेवर बनना होगा। तभी हम पुलिस पर गर्व कर पाएंगे। वर्ना हर जगह बुलंदशहर नजर आएगा। 

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10 जुलाई 2016
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12 जुलाई 2016
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ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
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अमितेश कुमार ओझा कुछ साल पहले मेरे शहर में दिन – दहाड़े बैंक की 20 लाख रुपए की रकम लूट ली गई। वाकया दिन को हुआ था, लिहाजा पुलिस ने आनन – फानन कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन असली समस्या तब आई जब लूट का शिकार बने बैंक के कर्मचारियों ने शिनाख्त परेड के दौरान अपराधियों को पहचानने से साफ इन्कार कर

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