तुम्हारी बज़्म में शिरकतें करते हमको जमाना हो गया,
जब तलक समझे मुहब्बत तुम्हारा दिल बेगाना हो गया।
कभी लौटकर आती नहीं कोई ज़िन्दगी मरने के बाद,
फिर भी चाहत इंतजारी में हमारा दिल दिवाना हो गया।
जब-जब तेरी आँखों में मेरे लिए शिकवे दिखे हैं दोस्ती,
शिकायत हो गई खुद से नज़र मुश्किल मिलाना हो गया।
नहीं देखा है मुद्दत से तेरे चेहरे पे हँसता नूर कोई भी,
तू बताना ज़िन्दगी क्या बहुत महँगा मुस्कुराना हो गया।
यार मर-मर कर जिया हूँ आज तक मैं और मेरी आरज़ू,
आज क्यों वक़्त का रुख इस क़दर यूँ वहशियाना हो गया।
खौफ आँखों में ना कोई अक्स दिखता है उम्मींदों का कहीं,
घर-शहर दहशतजदा हैं जर्रा-जर्रा क़ातिलाना हो गया।
गिर के सपने टूटते हैं और कांच टूटा आईना कोई,
बेरहम चट्टानों से मिलना रोज टकराना बहाना हो गया।
गैर बाजिव हो गई हैं कोशिशें खामोशियों के सिलसिले,
दौर जो कल तक नया था आज वो सचमुच पुराना हो गया।
'अनुराग' है तेरे मुक़द्दर में नहीं मौसम सुहाना मानलो,
दर-बदर खानाबदोशी ही हमारा आशियाना हो गया।