आओ मिलकर झूला झूलें ।
ऊँची पेंग बढ़ाकर धरती के संग आओ नभ को छू लें ।।
कितने आँधी तूफाँ आएँ, घोर घनेरे बादल छाएँ ।
सबको करके पार, चलो अब अपनी हर मंज़िल को छू लें ।।
हवा बहे सन सन सन सन सन, नभ से अमृत बरसा जाए ।
इन अमृत की बून्दों से आओ मन के मधुघट को भर लें ।।
ऊदे भूरे मेघ मल्हार सुनाते, सबका मन हर्षाते ।
मस्त बिजुरिया संग मस्ती में भर आओ हम नृत्य रचा लें ।।
हरा घाघरा पहने नभ के संग गलबहियाँ करती धरती ।
आओ हम भी निज प्रियतम संग मन के सारे तार जुड़ा लें ।|
बरखा रानी छम छम छम छम पायल है झनकाती आती ।
कोयलिया की पंचम के संग हम भी पियु को पास बुला लें ।।
सावन है दो चार दिनों का, नहीं राग ये हर एक पल का ।
जग की चिंताओं को तज कर मस्ती में भर आज झूम लें ।।
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