shabd-logo

मेटामोर्फोसिस

9 अगस्त 2016

277 बार देखा गया 277

article-image



किसी भी देश के द्वारा चुनी गई आर्थिक नीतियाँ केवल वहाँ के नागरिकों की सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगियों पर ही असर नहीं डालतीं बल्कि उन ज़िंदगियों की पारिवारिक और नैतिक बुनियादें भी तय करतीं हैं। ग्रेगोर साम्सा नाम का एक आदमी एक दिन सुबह-सुबह नींद से जागता है और अपने आप को एक बहुत बड़े कीड़े में बदल चुका हुआ पाता है। कहानी जो शुरुआत में किसी साइन्स फिक्शन की तरह लगती है धीरे-धीरे एक पूंजीवादी देश के पारिवारिक मूल्यों पर चोट करती महागाथा में बदल जाती है। मेटामोर्फोसिस (Metamorphosis)। 1915 में फ्रांज़ काफ्का का जर्मन में लिखा एक लघु उपन्यास जो कि अपनी अनोखी लिखावट की वजह से एक कालजयी रचना बन चुका है। मेटमोर्फोसिस दरअसल एक बायलॉजिकल प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई कीड़ा या मछली अपनी शारीरिक रचना को बनाता है मसलन लार्वा से किसी कीड़े का बनना या कैटरपिलर से किसी तितली का।


अपने ही परिवार के बीच में कोई कैसे alienate हो सकता है! इस बुनियादी सवाल को केंद्र मानकर लेख क ने मुख्य किरदार को एक कीड़ा बना दिया। इस तरह लेखक ने न केवल उसे alienate ही किया बल्कि उसके alienation को अमूर्त्य (abstract) भी कर दिया। ये alienation किसी की विकलांगता की वजह से हो सकता है, लकवे की वजह से, दिमागी स्थिति की वजह से, या फिर बुढ़ापे की वजह से भी हो सकता है। ग्रेगोर एक ट्रैवल सेल्समैन है जिसकी कमाई से पूरा घर चलता है। धीरे-धीरे लोगों को उसकी कमाई की आदत लग जाती है। लोग उसे एक पारिवारिक इंसान की तरह न मानकर उसे एक ATM मशीन समझने लगते हैं। लेकिन वो खुश है। और उसकी खुशी शायद इस बात पर ज़्यादा टिकी है कि वो ज़्यादातर बाहर ही रहता है। कभी-कभार ही घर आता है तो वो इस बदलाव को कभी इतने गौर से नहीं समझ पाया। लेकिन ऐसा व्यक्ति यदि अब अपाहिज हो जाये तो क्या बाक़ी सदस्य उसकी ताउम्र देखभाल कर सकेंगे? और यदि कर भी सकेंगे तो क्या 'अपनेपन' से कर सकेंगे? ये कुछ मानवीय स्वभाव को कुरेदने वाले सवाल हैं।


जलगाँव में रहने वाले दिवाकर चौधरी के बड़े भाई की दिमागी स्थिति कुछ खराब हो गई और एक दिन उन्होनें अपने ही 8 साल के बेटे और अपनी बीवी की हत्या कर दी। बाद में कोर्ट ने उन्हें इलाज के लिए मानसिक चिकित्सालय भेज दिया। दिवाकर ने अपने भाई के साथ अपनी ज़िंदगी के अनुभव को 'स्कीत्ज़ोफ़्रेनिया' में बयान किया है जो कि मेटामोर्फोसिस की कहानी से एकदम उलट है और रिश्तों की गहराइयों का एहसास कराती है। स्कीत्ज़ोफ़्रेनिया की कहानी 1991 के आर्थिक सुधारों के पहले के एक गाँव की कहानी है जबकि मेटामोर्फोसिस प्रथम विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ रहे यूरोप के एक पूंजीवादी देश की कहानी है। अभी हाल में अनुराग कश्यप की एक फिल्म आई थी 'Ugly' (अग्ली), जिसमें 2014 का मुंबई दिखाया गया है और एक बच्ची के किडनैप के बैकड्रॉप में जो कहानी बुनी है वो यही बताती है कि इंसान भीतर से इतना सड़ चुका हैं कि इंसानियत में अब फफूंद लग चुकी है। 'लगे रहो मुन्नाभाई' का एक दृश्य है जिसमें एक बूढ़ा पिता, जिसने ताउम्र मेहनत कर के अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया, आज खुद उनकी ही दुनिया में फिट नहीं हो पा रहा। ठीक फ्रांज़ काफ्का के ग्रेगोर साम्सा की तरह।


इस किताब को आप Amazon से खरीद सकते हैं .

अभिषेक ठाकुर की अन्य किताबें

1

अटाला

10 जून 2016
0
5
0

एक कहानी जिसे सुनाना बाक़ी है एक तस्वीर जिसे उतारना बाक़ी है यादों और ख्वाहिशों के गलीचों के बीच कुछ ऐसा है जिसे अभी टटोलना बाक़ी है सोचता हूँ घर के टाँड़ पे पड़े काठ के टूटे घोड़े में चंद कीलों के पैबंद लगा किसी बचपन को दे दूँ कि कल की यादों में आज के लम्हों को बचाना बाक़ी है और...  कुछ झपटी हुई पतंगें है

2

War Craft

10 जून 2016
0
2
0

आजदेखने गए war craft मूवी। ऑफिस से ही सभी लोग जीवी सिनेमा में देखने गएथे। कई फिल्में ट्रेलर में ही ज़्यादा आकर्षक लगती हैं। असल में जब देखो तो बहुत निराशाहोती है। और ये निराशा हॉलीवुड की मूवीस के साथ ज़्यादा होती है। बॉलीवुड ने तो फॉर्मूलाप्रधान फिल्में बना बना के अपना स्तर और अपेक्षाएँ इतनी कम कर ली

3

अंशि

12 जून 2016
0
3
0

नंगे पंजों के बल दौड़ते हुएगिरने के बाद जो सौंधा अहसास है रोज़मर्रा कि फीकी ज़िन्दगी के बीच जो मिश्री की मिठास है पुतलाये ठूंठ मुखौटों के बीच जो किलकारी कि आवाज़ है दशहत से पथराई आँखों के बीच जो परियों का  मासूम ख्वाब है कंटीली दुनियादारी के मरुस्थल में फूटती नई कपोल पे ओस कि महक यकीं नहीं होता वो कस्तू

4

बचपन

14 जून 2016
0
2
0

इस दुनिया में छिपी एक और दुनिया है जिस दुनिया में कोई क़ायदा नहीं होता बस प्यार होता है आँखों में मासूमियत होती है असीम विश्वास होता है निहीत स्वार्थ और फ़ायदा नहीं होता यहाँ शेर को बचाता एक चूहा है ख़रगोश को हराता एक कछुआ है हमारी दुनिया की तरह कोई भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िया नहीं होता इस दुनिया का हर शख्स 

5

अव्यक्त

16 जून 2016
0
3
0

कभी कुछ कहते हुए थोड़ा रह जाता हूँ मैं कभी आँखों के रस्ते थोड़ा बह जाता हूँ मैं मैं अव्यक्त हूँ एक पहेली-सा एक अनकही में कुछ कह जाता हूँ मैं अव्यक्त का अपना एक वजूद है व्यक्त उसका ही तो प्रकट स्वरुप है पर अव्यक्त किसका स्वरुप है ?किस अमूर्त्य का मूर्त्य है ?किसकी खोज है ?किसको ढूँढता रह जाता हूँ मैं ए

6

ययाति के मिथक - भाग 1

16 जून 2016
0
1
1

नियति क्या है? क्या ये महत्त्वपूर्ण है? क्योंकि जब आप नियति की बात करते हैं तो किरदार गौण हो जाते हैं। लेकिन वे किरदार ही हैं जो अपनी-अपनी ज़िंदगियों के सिरों को जोड़कर नियति को गढ़ते हैं। शब्दों से इतर कहानी क्या है? अगर नुक्ते  और लकीरें, मात्राओं, हलन्तों और अक्षरों की शक्लें अख़्तियार ना करें तो क्

7

महायज्ञ

21 जून 2016
0
0
1

साल 1930। जवाहर लाल नेहरू लाहौर में रावी के तट पर भारत का झंडा फहरा चुके थे। कांग्रेस पूर्ण स्वराज की घोषणा कर चुकी थी। साहब सुबह सवेरे अपने घर के दालान में बैठे थे। सामने मेज पर एक खाकी टोपी और कुछ अखबार।  गहरी चिंता में लगते थे। खाकी वर्दी, घुटनों तक चढ़ते बूट और उस पर रोबदार मूंछे। साहब अंग्रेजी स

8

नारद की भविष्यवाणी

28 जून 2016
0
2
0

अभी हाल ही में जो क़िताब ख़तम की वो है मनु शर्मा की लिखी 'नारद की भविष्यवाणी'। मनु शर्मा ने कृष्ण की कहानी को आत्मकथात्मक रूप में लिखा है। ये क़िताब 'कृष्ण की आत्मकथा' सिरीज़ का पहला भाग है। लिखने का तरीका मौलिक है। कृष्ण की कहानी टीवी सीरियलों में कई बार देख चुके हैं। लेकिन एक व्यक्तित्व के रूप में उनक

9

2014 दि इलेक्शन दैट चेंज्ड इंडिया

13 जुलाई 2016
0
3
0

अभी हाल में राजदीप सरदेसाई की किताब '2014 दि इलेक्शन दैट चेंज्ड इंडिया' पढ़ी। एक ही शब्द है लाजवाब। 2014 में हुए इलैक्शन का इससे अच्छा ब्यौरा दे पाना मुश्किल है। किताब में 10 चैप्टर हैं और इनके अलावा एक भूमिका और एक एपिलॉग भी है। राजदीप सरदेसाई मीडिया में एक जाना पहचाना नाम हैं। 2008 में उन्हें पद्मश

10

कितने पाकिस्तान

31 जुलाई 2016
0
2
0

पाकिस्तान क्या है? क्या सिर्फ एक देश जिसने भारत से अलग हो कर अपना वजूद तलाशने की कोशिश की? या फिर पाकिस्तान एक सोच है? एक सोच जिसमें कि एक ही देश के लोग अपने बीच एक सेकटेरियन मानसिकता को पहले उपजाते हैं, फिर उसको सींचते हैं और फिर हाथों में हंसिये और कुदाल ले कर उसी फसल को काटते हैं। एक ऐसी सभ्यता ज

11

किताबें अगस्त की

31 जुलाई 2016
0
4
0

तो इस महीने तीन किताबें पढ़ीं: 1. 2014 The Election That Changed India  (राजदीप सरदेसाई)2. खुशवंतनामा (खुशवंत सिंह)3. कितने पाकिस्तान (कमलेश्वर)अगस्त का टार्गेट 4 किताबों का है और ये चार किताबें हैं:1. Metamorphosis (फ्रैंज काफ्का) 2. गुनाहों का देवता (धर्मवीर भारती)3. मेरे मंच की सरगम (पीयूष मिश्रा)

12

मेटामोर्फोसिस

9 अगस्त 2016
0
3
0

किसी भी देश के द्वारा चुनी गई आर्थिक नीतियाँ केवल वहाँ के नागरिकों की सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगियों पर ही असर नहीं डालतीं बल्कि उन ज़िंदगियों की पारिवारिक और नैतिक बुनियादें भी तय करतीं हैं। ग्रेगोर साम्सा नाम का एक आदमी एक दिन सुबह-सुबह नींद से जागता है और अपने आप को एक बहुत बड़े कीड़े में बदल चुका हुआ

13

मिसेज़ फनीबोन्स

13 अगस्त 2016
0
1
0

अगस्त महीने की दूसरी किताब थी - "मिसेज़ फनीबोन्स"। किताब की लेखिका हैं ट्विंकल खन्ना। ट्विंकल खन्ना, जिन्हें ज़्यादातर लोग कई रूप में जानते हैं - राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया की बेटी, अक्षय कुमार की बीवी और एक फ्लॉप एक्ट्रेस। लेकिन इनके अलावा इनकी एक शख्सियत और है। ये बात अक्सर मध्यम वर्गीय लोगों में

14

गुनाहों का देवता

21 अगस्त 2016
0
1
1

अगस्त महीने की तीसरी किताब थी - गुनाहों का देवता। किताब के लेख क हैं धर्मवीर भारती। बहुत कुछ सुना था इस किताब के बारे में। इस किताब को मेरे जान-पहचान के बहुत लोगों ने recommend भी किया था। ये हिन्दी रोमैंटिक उपन्यासों में सबसे ज़्यादा ल

15

किताबें सितंबर की

28 अगस्त 2016
0
1
0

अगस्त के लिए चार किताबों का लक्ष्य था और येकिताबें सोचीं थीं:1. Metamorphosis (फ्रैंज काफ्का)2. गुनाहों का देवता (धर्मवीर भारती)3. मेरे मंच की सरगम (पीयूष मिश्रा)4. Home and the World (रबिन्द्रनाथटैगोर) इनमें से 'मेरे मंच कीसरगम' और 'Home and the World' की delivery ही नहीं हो पाई।इसलिए इन दो किताबों

16

द ग्लास कैसल

4 सितम्बर 2016
0
0
0

अगस्त महीने की आखिरी किताब थी जीनेट वॉल्स की लिखी 'द ग्लास कैसल'। जीनेट वॉल्स एक अमरीकी जर्नलिस्ट हैं और ये उनका लिखा संस्मरण है। एक किताब जो उनके और उनके पिता के रिश्ते के बीच कुछ तलाश करती हुई सीधे दिल में उतरती है और कुछ हद तक उसे तोड़ भी देती है।इंसान एक परिस्थितिजन्य पुतला है। उसका व्यक्तित्व पर

17

द होम एंड द वर्ल्ड

12 सितम्बर 2016
0
0
0

सितंबर महीने की पहली किताब थी - रबिन्द्रनाथ टैगोर की लिखी 'द होम एंड द वर्ल्ड'। यूं तो टैगोर का नाम सभी ने सुना है। गीतांजली के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था। उनका लिखा गीत 'जन गण मन' हमारा राष्ट्रगान बना और उन्हीं का लिखा एक और गीत 'आमार शोनार बांग्ला' पाकिस्तान

18

और तभी...

25 फरवरी 2017
0
2
0

एक बार फिर उसने बाइक की किक पर ताकत आज़माई. लेकिन एक बार फिर बाइक ने स्टार्ट होने से मना कर दिया. चिपचिपी उमस तिस पर हेलमेट जिसे वो उतार भी नहीं सकता था. वो उस लम्हे को कोस रहा था जब इस मोहल्ले का रुख़ करने का ख़याल आया. यादें उमस मुक्त होतीं हैं और शायद इसलिए अच्छी भी लगती हैं. अक्सर ही आम ज़िंदगी हम

19

विधानसभा चुनाव - नज़रिया

13 मार्च 2017
0
0
1

कल पाँच राज्यों में चुनाव के नतीजे आ गए। दिन भर YouTube और Facebook पर ऑनलाइन नतीजे देखते रहे। ये चुनाव भी एक बार फिर डेमोक्रेसी की च्विंगम ही साबित हुए। रस तो कब ही का खत्म हो चुका है बस रबड़ है जब तक चबाते रहो। प्रधानमंत्री एक बार फिर सबसे शक्तिशाली साबित हुए। उनकी जीत के बाद तथाकथित liberals एक बा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए