shabd-logo

मेरा घर

10 अगस्त 2016

289 बार देखा गया 289
featured image

जैसा की मैंने आपको बताया, मेरा जन्म भदोही जिले के एक छोटे से गांव मोहनपुर में हुआ, जो बहुत ही सुंदर और प्रकृति से भरा है। मेरे गाँव की भौगोलिक संरचना कुछ ऐसी है की यह भदोही और इलाहबाद जिले के बिच में है | इलाहाबाद कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यह जगह प्रयाग कुंभ मेला और कई  अन्य सांस्कृतिक विरासत अपने आप में समेटे हुए है | इसे हम तीन धार्मिक स्थानों की त्रिवेणी भी कह सकते है क्योकी हमारे निवास स्थान से प्रयाग नगरी इलाहबाद, बाबा विश्वनाथ धाम, काशी और माँ विंध्यवासिनी, मिर्जापुर की दूरी समान है, और हम इन महापावन स्थानों के केंद्र में बसते है, यह अपने आप में एक सुखदायक अनुभूती देने वाला है, हमारे आसपास तीन धार्मिक तीर्थस्थलो का संगम है | मेरा घर जो कुछ वर्षो पहले मिट्टी का था, अब कई बड़े कमरों  वाली कंक्रीट की एक बड़ी इमारत में तब्दील हो चुका है । लेकिन आज से दस वर्षो पूर्व में, तीन बड़े कमरों के साथ एक रसोईघर और एक स्नानघर था,  मेरा पूरा परीवार उसी घर में रहता था, घर में ही एक छतनुमा (जिसे हम वहां की भाषा में "कोठा" कहते थे) कमरा, जो भण्डारण हेतु उपयोग में लाया जाता था |  घर से बाहर की ओर आते समय एक बड़ा सा आँगन (जिसे हम ओसार कहते थे) था,  वह आँगन आज की तरह घुटन लिए हुए नहीं था, पुरी तरह से खुला हुआ था, ऊपर कोई छत नहीं थी, बस  उसके चारो ओर मिट्टी की एक ऊँची दीवार थी, जिससे बहार से कोई अन्दर देख ना सके|  आज भी वह सुख इन आरामदायक वातानुकूलित कमरों में भी हमें कभी नहीं मिला जो सुख हमें आँगन में मूंज से बनी हुई चारपाई में उस खुले आसमान के निचे खुले वातावरण में सोने पर मिलता था | आँगन में बांयी ओर एक अमरुद का पेड़ था, जिसके फल के स्वाद आज बाजार से लाये हुए फलो की तुलना में कई गुना मीठे और स्वादिष्ट हुआ करते थे | मै घर से निकलते ही आँगन में किसी को ना देख पेड़ पर चढ़ जाता था (क्योकी किसी सदस्य की मौजूदगी में ऐसा करना अपने लिए खतरे को बुलावा देने जैसा था), सिर्फ इस उम्मीद में की आज कोई पका हुआ फल खाने को मिलेगा, और पके हुए फल ना मिलने की दशा में भी कीसी अधपके फल को तोड़ लेते थे, उसका स्वाद इस तरह लेते थे, जैसे समुद्र मंथन के वक्त निकले पुरे अमृत इसी फल में समाये हो | उसके स्वाद में जो संतुष्टी थी, वो आज भी सफलता की उचाई पर चढ़ने के बाद भी नहीं है | लेकिन वह पेड़ जो वास्तव में सिर्फ एक पेड़ ना होकर हमारे परीवार का ही एक सदस्य था, हां, यह हो सकता है की बाकी सदस्य ऐसा ना भी मानते हो, लेकिन मै जब भी निराश या परेशान हुआ करता था, उसी पेड़ की टहनियों पर जाकर बैठ जाता था | और वह मुझे सांत्वना देती प्रतीत होती थी, एक माँ की भांती मुझे अपनी उस टहनी रूपी गोद में छुपा लेती थी | और मै उस पेड़ के सदस्य होने के कोई साक्ष्य तो नहीं दे सकता, या दलील नहीं दे सकता | लेकिन अगर आप उस नन्हे से बच्चे से दलील मांगेगे, जो बचपन में उसी की छाँव में खेल ा करता था, उसी के फल से अपनी भूख मिटाता था, और जिसके लिए वह पेड़ माँ सामान था, तो वह एक ऐसी कोशीश जरूर करेगा, और कहेगा - "घर में तो परीवार वाले ही रहते है, यह पेड़ भी तो घर में रहता है तो यह भी तो हमारे परीवार का एक सदस्य हुआ ना|" और सच ही तो कहा ना उस बच्चे ने | वह पेड़ हमारे परीवार सुख और दुःख दोनों समय हमारे साथ उसी तरह अटल खडा रहा, जैसे एक परीवार का सदस्य रहता | लेकिन किसे उस बच्चे की क़द्र थी, वही हुआ जो हमेशा से होता आया है | मानव रूपी दानव ने शहरीकरण की धुन में, आधुनिकता का हवाल देते हुए, उस मिट्टी के घर को अपने चकाचौंध सपनों तले रौद दिया, और उस पर अपने सपनो का महल खड़ा करना चाहा, जंहा अपनेपन जैसा कुछ भी न था | और मानवके उस स्वार्थ का शिकार हुआ वह पेड़ और वह बच्चा | उस विनाशकारी महल की शान हेतु जो बरामदा बनना था, उसके लिए उस पेड़ की बली जरूरी थी | उस बालक ने लाख कहा कि नहीं चाहिए उसे ऐसा बरामदा जो एक सजीव की जान ले ले, लेकिन उसकी आवाज को दबा दिया गया, और उसकी माँ की कब्र (उस पेड़) पर एक शानदार बरामदे का निर्माण कर दिया | आज लड़का भले ही बड़ा हो गया हो, क्या वह यह मंजर भूल पायेगा, जब उससे उसकी माँ उसके ही आँखों से सामने छीन ली गयी | वह लड़का तो आज भी निसहाय मानव के तांडव को देख रहा है, उस विनाश को देख रहा है, जो हरे-भरे गाँव को निगल ले रहा है, जो परीवार की खुशियाली को निगल ले रहा है | यह विकाश (विनाश) रूपी दानव इतना बड़ा हो चुका है की इसे ख़त्म करना असंभव सा लगता है, लेकिन बस सभी से प्रार्थना है की विकास किजीये लेकिन उस विकास से किसी बच्चे का बचपन ना छीने, किसी परीवार के टुकड़े ना हो, एक गाँव शहर (सहारा) ना बने | आज वही बच्चा अपनी माँ की ही कब्र पर बैठकर यह लेख लिख रहा है, और आज उसे यह दर सताने लगा है कि कही वह भी इसी विकास की दौड़ में चल पड़े | और जाने-अनजाने में किसी बच्चे से उसकी माँ छीन ले |

आज बस इतना ही, फिर मिलूंगा अपनी जिन्दगी के कुछ हिस्सों के साथ और कोशिश करूंगा उन्हें अपनी नजरो से देखने की, अगर आपने यह लेख पढ़ा हो तो अपने विचार जरूर लिखे |

धन्यवाद,
शुभ संध्या |

मेरे मन की...... - OnlineGatha-The Endless tale आज कल चर्चा है इसी बात पर की,ज़माना असहिष्णु होता जा रहा है |कोई वापस देता तमगा है,तो कोई घर छोड़ जा रहा है ||मै तो हूँ अचंभित,सब को दिख रही असहिष्णुता,दुम दबा के मुझसे ही,क्यों भगा जा रहा है ||मैंने खोजा सब जगह,खेत-खलिहान, बाग़-बगीचे |अन्दर-बाहर, सड़क और नदी,पर मुझे तो कही दिख ना रहा है ||कही फटा बम,तो कही हो रहा हमला |लेकिन पता नहीं क्यों,यह भारत में ही भगा जा रहा है ||Publisher : OnlinegathaEdition : 1ISBN : 978-93-86163-45-5Number of Pages : 142Binding Type : Ebook , PaperbackPaper Type : Cream Paper(58 GSM)Language : HindiCategory : PoetryUploaded On : July 12,2016 Partners :ezebee.com , Ebay , Payhip , Smashwords , Flipkart , shopclues , Paytm , Kobo , scribd मेरे मन की...... - OnlineGatha-The Endless tale
1

मेरी जिंदगी…………………एक कहानी

4 अगस्त 2016
0
3
0

मेरा नाम …………. छोड़ो भी, मेरे नाम मे क्या रखा है. कहते है लोगो को एक नाम इसीलिए दिए जाते है की वो रहे या ना रहे उन्हे हमेशा पहचाना जा सके, लेकिन फिर भी मै चाहता हूँ, की मेरा नाम एक गुमनाम शक्सियत हो. अब मै आप सभी को रूबरू करने जा रहा हूँ अपने इस अधूरे जिंदगी के सफ़र के बारे मे. मै शुरुआत करना चाहूँग

2

असहिष्णुता व सहिष्णुता

5 अगस्त 2016
0
3
0

आजकल चर्चा है इसी बात पर की,ज़माना असहिष्णु होता जा रहा है |कोई वापस देता तमगा है,तो कोई घर छोड़ जा रहा है ||मै तो हूँ अचंभित,सब को दिख रही असहिष्णुता,दुम दबा के मुझसे ही,क्यों भगा जा रहा है ||मैंने खोजा सब जगह,खेत-खलिहान, बाग़-बगीचे |अन्दर-बाहर, सड़क और नदी,पर मुझे तो कही दिख ना रहा है ||कही फटा बम,तो

3

मेरे बारे में.

6 अगस्त 2016
0
6
1

मै ........., छोड़िये भी | यहाँ, मेरे नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह अधिकप्रभावशाली  नहीं है |मैंने अपने जीवन के २० वर्ष पूरे कर लिए है | मैं  भदोही से हूँ, जो पूरी दुनिया में अपने वस्त्र निर्यात के लिए जाना जाता है। मेरे पास अपने बारे में बताने के लिए कोई और अधिक सामग्री नहीं है, क्योकी मै अ

4

मेरा गाँव

7 अगस्त 2016
0
5
1

मेरा गाँव मोहनपुर, कालीन नगरी भदोही जनपद का एक छोटा सा गाँव है, क्षेत्रफल की दृष्टी से यह बड़ा तो नहीं है, लेकिन जनसँख्या की दृष्टी से बड़ा है | लेकिन अब नहीं रहा क्योकी आधी से ज्यादा आबादी तो रोजगार की आशा में मुंबई जैसे महानगरो की और पलायन कर चुका है | गाँव के बीचोबीच ही सारी आबादी बसी हुई है और चार

5

मेरा परिवार

8 अगस्त 2016
0
4
0

आज बात करूंगा परिवार के कुछ सदस्यों के बारे में जिन्हें मै चाहकर भी भुला नहीं सकता मेरा परिवार जिसमे मै भारत देश की एकता और अखंडता को वीद्दमान पाता हूँ, मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है जो भारत में ख़त्म होने की कगार पर है, और मै भारत वर्ष के लोगो से इसके संरक्षण हेतु आगे आने का आह्वान करता हूँ | मेर

6

मेरे दादाजी

9 अगस्त 2016
0
3
0

मेरा पूरा गाँव मेरे परीवार के प्रत्येक सदस्य को सम्मान की दृष्टी से देखता था, अभी भी वह सम्मान बरकरार है या नहीं यह कहना थोड़ा मुश्किल है | लेकिन जो सम्मान मुझे भी मिलता आया है उसे मै अपनी बड़ी उपलब्धी मानता आया हूँ, (संभवतः अब यह भ्रम टूट गया है)| गाँव में सभी अपनो से बड़ो या छोटो को भी जिन्हें सम्मान

7

मेरा घर

10 अगस्त 2016
0
3
0

जैसा की मैंने आपको बताया, मेरा जन्म भदोही जिले के एक छोटे से गांव मोहनपुर में हुआ, जो बहुत ही सुंदर और प्रकृति से भरा है। मेरे गाँव की भौगोलिक संरचना कुछ ऐसी है की यह भदोही और इलाहबाद जिले के बिच में है | इलाहाबाद कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यह जगह प्रयाग कुंभ मेला और कई  अन्य सांस्कृतिक विरास

8

कसूरवार कौन ?

11 अगस्त 2016
0
5
0

बात तब की है जब मै सिर्फ १२ साल का था | मै अपने जन्म स्थान, उत्तरप्रदेश के भदोही जिले में अपने माता-पिता के साथ रहता था | वही भदोही जो अपने कालीन निर्यात के लिए विश्व विख्यात है | मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है, जहाँ मेरे दादाजी अपने दो भाइयों और उनके पुरे परिवार के साथ रहते है | और मै खुद को इसील

9

मासूमीयत

6 जुलाई 2017
0
6
3

शर्मा जी अभी-अभी रेलवे स्टेशन पर पहुँचे ही थे। शर्मा जी पेशे से मुंबई मे रेलवे मे ही स्टेशन मास्टर थे। गर्मी की छुट्टी चल रही थी इसलिए वह शिमला घूमने जा रहे थे, उनके साथ उनकी धर्मपत्नी मंजू और बेटी प्रतीक्षा भी थी। ट्रेन के आने मे अभी समय था।तभी सामने एक महिला अपने पाँच स

10

मजदूर

1 मई 2018
0
0
1

मजदूर, ऐसा शब्द,जिससे प्रायः हम सभी परीचित होंगे,वही गंदे पुराने कपडे, पसीने से सने हुए,चहरे पर गहरी लकीरे,और मन में हीनता की भावना|आज मजदूर दिवस,हम धूम धाम से मनाएंगे|उसे छुट्टी देकर,अच्छा सा केक खीलायेंगे|आज कोई काम नहीं करने देंगे,न

11

मेरे मन की

12 जुलाई 2018
0
2
0

#meremankeeMere Man Kare "मेरे मन की" पर आपकी रचनाओं के ऑडियो / विडियो प्रसारण के लिए सादर आमंत्रित हैं I निवेदन है कि प्रसारण हेतु ऑडियो / विडियो भेजें I आपकी कवितायेँ, गज़लें , कहानिया , मुक्तक , शायरी , लेख और संस्मरण का प्रसारण करा सकते हैं ISubscribe करने के लिए link को click करें :https://www.y

12

देशवा बचाके रख भईया

19 जुलाई 2018
0
1
0

नमस्कार,स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर|"मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी|आज हम लेकर आये है कवियत्री रेखा जी का भोजपुरी गीत "देशवा बचाके रख भईया"|आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचनाओं का आनंद ले सकते हैं| #meremankee के YouTu

13

सो जा नन्हे-मुन्हे सो जा

20 जुलाई 2018
0
0
0

नमस्कार,स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर|"मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी|आज हम लेकर आये है कवि आनंद शिवहरे जी की सुन्दर कविता "सो जा नन्हे-मुन्हे सो जा"|आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचनाओं का आनंद ले सकते हैं| #meremankee

14

दुनिया नहीं कुछ मुझे देने वाली

21 जुलाई 2018
0
1
0

नमस्कार,स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर|"मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी|आज हम लेकर आये है कवियत्री रेखा जी का सुन्दर गीत "दुनिया नहीं कुछ मुझे देने वाली"|आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचनाओं

15

फूलों में भी, काँटों में भी

24 जुलाई 2018
0
1
2

नमस्कार,स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर|"मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी|आज हम लेकर आये है वसीम महशर सौरिखी जी का सुन्दर गजल "फूलों में भी, काँटों में भी "|आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचना

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए