जिंदगी गडित के एक सवाल की तरह हैं जिसमें सम विषम संख्यायों की तरह सुलझें - अनसुलझें साल हैं .हमारी दुनियां वृत की तरह गोल हैं जिस पर हम परिधि की तरह गोल गोल घूमतें रहते हैं .आपसी अंतर भेद को व् जीवन में आपसी सामंजस्य बिठाने के लिए कभी हम जोड़ - वाकी करते हैं तो कभी हम गुणा भाग करते हैं .लेकिन फिर भी हमारें जीवन में दूरियाँ बनी रहती हैं .कोईछोटे कोष्ठक में जीवन जीता हैं तो कोई बड़े कोष्ठक के तो कोई मंझले कोष्ठक के दरमियाँ रहते हैं .हमारे सामाजिक - नेतिक ,वित्तीय मूल्य किसी से बड़े ,तो किसी से छोटे होते हैं .बराबर का दर्जा लाने में चूंकि ,ईस लिए का तर्क - वितर्क करते रहतें हैं .जिन्दगी हमारी लघुत्तम हो या महत्तम ,लेकिन हमारी कोशिश समावर्तक जीवन जीनें की होती हैं .हमें रिश्तें क्रय - विक्रय करके या लाभ हानि को ध्यान में रखकर नहीं बनाना चाहिए और न ही हमें यह सोचना चाहिए की इतने व्याज की दर से ,इतना नाम कमाया या रिश्तों में खटाश या मिठास पायी .हमें केवल इतने प्रतिशत ही भाग्य में आया .हमें अपने अनुपात में समानुपात वाली भावना का उदगम करना चाहिए न की व्युतक्रमानुपाती में उलझ जाना चाहिए .क्योकि हमारे जीवन कीसाल दर साल की समस्याएं ,गुजरते लम्हों के सुलझें - उन्सुल्झें सवाल फील्ड वर्ग में फैलें हुए हैं .जिनका समाधान ढूँढनेमें प्रिम्ये को हल करने जेसे पेज के पेज अथार्त साल के साल लग जाते हैं .
जीवन आड़ी - तिरछी रेखायो का संसार हैं जिसमें हम अपने गुजरें हुए लम्हों को मिटाकर एक नव जीवन के सुखमय ,आनन्दमयी सपनों को रेखांकित क्र देते हैं .फिर चाहें उसमें दुखों का न्यूनतम कोण या सुखों का अधिक कोण या ठहराव भरी जिन्दगीं का समकोण हो या डूबते उतराते जीवन का विषम कोण .आसन्न कोण की तरह हम अपने जीवन में हर उस पल में समता लाने की कोशिश में लगें रहते हैं .फिर भी हमारा जीवन बीज गडितकी तरह कटिन हो जाता हैं और हम किसी एक बिंदू पर सिथर हो जाता हैं .हमारी जीवन शैली रेखा खंड की तरह खंड - खंड होकर छितर - वितर हो जाती हैं .फिर भी हम उस सिथर बिंदू से अच्छी अनगिनत रेंखाएँ खीच क्र उसमें अपना अस्तित्व तलाशनें की कोशिश में लगें रहते हैं कुछ तो उनमें भिन्न सवालों की तरह रह जाते हैं ,तो कुछ दशमलव के सवालों की तरह नेया किनारे लगा ले जाते है और कुछ तो जीवन के बिखरे हुए आकड़ों का पाईथागोरस प्रमेय से हल दूदने मे सफल रहते हैं .और जीवन के ग्राफ पेपर पर लाल - हरी सुख - दुःख की लकीरें खींच कर विभिन्न आक्र्तियो में चाँद की तरह चमकते हैं .और जिन्दगीं की रफ्तार पटरी पर दौङने लगती हैं जिस पर नटराज पेंसिल से मीलों दूर तक तकदीर बदलनें की रेंखाएँ खींचतें हुए जिन्दगीं के सुखों का वर्ग मूल ,घन मूल रूपी अनंत पहाड़ों का पहाड़ खड़ा क्र पाते हैं .