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एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी

12 अगस्त 2016

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मित्रो में आज एक ऐसे विषय पर अपने विचार प्रेषित कर रहा हु जो आज की सबसे बड़ी समस्या है कुछ दिनों पूर्व मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ बेठा था उसने उसे प्राप्त एक किशोरी के खत की चर्चा की मेरे मानस पटल पर यही बात बात बार बार आ रही थी ... मेने सोचा अपने विचारो को ब्लॉग, फेसबुक , व्हट्स अप के सभी पाठको को अपने विचार संप्रेषित करू उसने मेरे पत्रकार मित्र को लिखा था, 'मेरे साथ जबर्दस्ती हुई थी। तब से लेकर आज तक मैं हर पल तनाव में रहती हूँ। मैं बहुत हीन भावना महसूस करती हूँ क्योंकि मैं किसी से आँख मिलाने के लायक नहीं रही...।"पता नहीं मनोचिकित्सक महोदय को बताउंगी तो क्या उत्तर देंगे। शायद कोई समझाइश या दिलासा दें । इस किस्म की कि तुम्हारी इसमें कोई गलती नहीं, भूल जाओ वगैरह। मगर क्या स्त्री के लिए 'घोर यौन शुचिता' का सामाजिक आग्रह उसे यह भूलने देगा? समाज शिकारी को नहीं, शिकार को घूरे पर फेंकेगा। ताज्य मानेगा। मान लो कि लड़की ने किसी से यह बात शेयर न की हो, तब भी समाज तो मानसिक रूप से उसके पीछे लगा ही है। स्त्रियों के दिमाग में कूट-कूटकर यह बात भरी हुई है कि जबर्दस्ती वाले यौन समागम से भी वे अपवित्र हो जाती हैं। दूषित हो जाती हैं! शायद इसी मानसिकता के चलते बलात्कार के पर्यायवाची शब्दों में इज्जत, अस्मत जैसे शब्द आते हैं। बलात्कार होने पर इज्जत लुट गई, अस्मत लुट गई, सब कुछ चला गया, किसी को मुँह दिखाने काबिल नहीं रही, आँख मिलाने लायक नहीं रही, मुँह पर कालिख पुत गई वगैरह वगेरह । समझ नहीं आता कि जिसने कुछ गलत नहीं किया उसकी 'इज्जत' क्यों गई? उसे शर्म क्यों आई? ठीक है, एक हादसा था। जैसे दुनिया में अन्य हादसे होते हैं और समय के साथ चोट भरती है वैसी ही यह बात होनी चाहिए। मगर नहीं होती। सिर्फ और सिर्फ औरत के लिए ही यौन शुचिता के आग्रह के चलते हम घटना को कलंक बनाकर शिकार के माथे पर सदा-सर्वदा के लिए थोप देते हैं। स्त्री को जिन्दगी भर के लिए कलंकित कर घुटने को मजबूर कर देते है जब उसकी कोई गलती नही होती ! हार समाज उसे घृणा की द्रष्टि से देखने लगता है ! लोग अगुली बता कर कर उसे इंगित करते है ! स्त्री का तथाकथित दंभ तोड़ने के लिए भी बलात्कार किया जाता है। प्रताड़ना करने हेतु आज भी गाँवों में स्त्री को निर्वस्त्र करके घुमाया जाता है। क्षेत्रीय अखबारों में इस तरह की आँचलिक खबरें अक्सर आती हैं। क्योंकि कहीं न कहीं हम स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द ही देखते हैं। गाँवों में महिला सरपंचों तक के साथ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ पुरुषों की अकड़ के आगे स्त्री को पदावनत करने का और कोई उपाय नजर नहीं आया तो यह किया।इसी तरह सती की अवधारणा है। जिसका ताल्लुक स्त्री की यौनिक पवित्रता से है। एक पुरुष के सिवा किसी की न होना तो उसकी एक अभिव्यक्ति भर है। यह ठीक है कि इस अभिव्यक्ति के लिए अब स्त्रियाँ पति की चिता के साथ नहीं जलाई जातीं (कभी-कभी जला भी दी जाती हैं) परंतु भारतीय समाज में सती की अवधारणा अब भी बेहद महिमा मंडित है। सदियों से भारतीय समाज में नारी की अक्षत पर बहुत अत्याचार होते आए हैं. इसे चरित्र से जोड़ना किसी भी रूप में उचित नहीं है. इसके विपरीत पुरुष समाज में सिर उठा कर चलता है जबकि नारी द्वारा किए गए नही उसके साथ किया गयाजबरन छोटे से अपराध के लिए भी उस से उस का जीने का अधिकार तक छीन लिया जाता है! .नारी जीवन में बहुत से समझौते सामाजिक, धार्मिक आर्थिक परिस्थितियों के कारण भी कर लेती है, जिस का खमियाजा उसे ताउम्र आंसू बहाते हुए करना पड़ता है.सारी नैतिकता की जिम्मेदारी केवल नारी की ही तो नहीं, पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह नारी को तन मन और धन से संतुष्ट रखे. केवल नारी से ही सतीसावित्री होने की आशा रखना उचित नहीं है. लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जितना दुरुपयोग नारी का धर्म के कारण होता है उतना किसी और कारण से नहीं....

उत्तम जैन (विद्रोही )

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बचपन की यादे और आज

10 अगस्त 2016
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                 बचपन के दिन भी क्या                  क्या वो बचपन ..वो नादानिया               वो शरारते ..वो मनमानिया !               दादी की फटकार , दादा जी मार !               पापा का चांटा और माँ की पुचकार!   बचपन के दिन भी क्या वो बचपन ..वो नादानियावो शरारते ..वो मनमानिया ! दादी की

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बेटी है तो कल है

10 अगस्त 2016
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                  बोये जाते हैं बेटेपर उग जाती हैं बेटियाँ,खाद पानी बेटों कोपर लहराती हैं बेटियां,स्कूल जाते हैं बेटेपर पढ़ जाती हैं बेटियां,मेहनत करते हैं बेटेपर अव्वल आती हैं बेटियां,रुलाते हैं जब खूब बेटेतब हंसाती हैं बेटियां,नाम करें न करें बेटेपर नाम कमाती हैं बेटियां,......क्यों की में अपने बेट

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लोभ व् क्रोध है नर्क के द्वार

11 अगस्त 2016
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क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है, प्रीति को नष्ट कर देता है। क्रोध जब व्यक्ति को आता है तो वह बेभान हो जाता है, उसे करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता, वह प्रीति को समाप्त कर देता है। प्रेम को नष्ट कर देता है। क्रोधी व्यक्ति में विवेक नहीं रहता तो विनय भी नहीं रहता। मान, विनय को नष्ट कर देता है। अभिमान म

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राजनितिक पार्टिया और भ्रष्टाचार

11 अगस्त 2016
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रंग बदलने की फितरत और उदाहरण भले ही गिरगिट के हिस्से मेंआते हैं, लेकिन मानव जाति में भी कम रंग बदलू लोग नहीं हैं। सबसेज्यादा यह प्रजाति आपको लोकतंत्र के मंदिर में मिल जाएगी ! बल्कि ऐसे लोगों कीसंख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है।तो साहेबान, कदरदान, मेहरबान, पेश हैभ्रष्टाचार में सर से पांव तक डूबे

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दिनों दिन पनपती यह गंभीर समस्या

11 अगस्त 2016
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आज वर्तमान में हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या तेजी से पनप रही है वह है तलाक नामक बीमारी ! जो व्यक्ति या नारी इस बीमारी से गुजरा है या गुजर रहा है तलाक नाम सुनते ही खुद अपने आपको दुर्भाग्यशाली समझने लग जायेगा ! आखिर यह समस्या क्यों पनप रही है ! आज क्यों अदालतो में हजारो लाखो इस तरह के केस लंबित पड़े

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एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी

12 अगस्त 2016
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मित्रो में आज एक ऐसे विषय पर अपने विचार प्रेषित कर रहा हु जो आज की सबसे बड़ी समस्या है कुछ दिनों पूर्व मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ बेठा था उसने उसे प्राप्त एक किशोरी के खत की चर्चा की मेरे मानस पटल पर यही बात बात बार बार आ रही थी ... मेने सोचा अपने विचारो को ब्लॉग, फेसबुक , व्हट्स अप के सभी पा

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ये भटकता मन

25 अगस्त 2016
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मन एक ऐसी शक्ति है जो आपको एक सेंकंड में कहा से कहा तक हजारो मील की यात्रा करा देता है !हम अपने घर पर बेठे देहली , अमेरिका तक की यात्रा मन से क्षणों में कर के आ जाते है ! इसे हम कह सकते भटकता मन ! मनुष्य का मन कितनी जल्दी भटकता है । ये नही तो

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हरियाणा विधानसभा सम्बोधन सोशल मीडिया में जंग

2 सितम्बर 2016
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सोशल मीडिया में जंग छिड़ी । हरियाणा विधानसभा के सत्र के पहले दिन जैन मुनि आचार्य तरुण सागर जी के प्रवचन को लेकर जबरदस्त विवाद छिड़ा । उनके प्रवचन को कड़वे वचन का नाम दिया गया था और सभी पार्टियों के विधायकों ने पूरी तन्मयता से उनकी बातें सुनीं थी । उनके प्रवचन को लेकर

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एक सच्ची एवं निष्कपट- क्षमा याचना

2 सितम्बर 2016
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क्षमा मांगना एक यान्त्रिक कर्म नहीं है बल्कि अपनी गलतियों को महसूस कर उस पर पश्चाताप करना है । पश्चाताप में स्वयं को भाव होता है । ताकि हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा आगे बढ़ा सकें । भूल करना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है; हम सभी भूल करते

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जैनधर्म के पर्युषण देता मधुरता व् मेत्री का सन्देश

3 सितम्बर 2016
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श्वेताम्बर सम्प्रदाय प्रति वर्ष की भाँति आत्म जागरण का महापर्व पर्युषण चल रहे हैं। व् दिगंबर सम्प्रदाय में शुरू होने वाले है यह पर्व क्षमा और मैत्री का संदेश लेकर आया है। खोलें हम अपने मन के दरवाजे और प्रवेश करने दें अपने भीतर क्षमा और मैत्री की ज्योति किरणों को। तिथि

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सफलतम जीवन की कुंजी – आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?

4 सितम्बर 2016
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में एक दिन रात्री के दुसरे प्रहर यानी करीब एक बजे में कुछ विचारो में खोया हुआ था नींद नही आ रही थी तो मन को शांत व् एकाग्रचित करने के लिए एक पुस्तक पढने बेठ गया पुस्तक हाथ में लगी रूस में एक बहुत बड़े लेखक इतने बड़े कि सारी दुनिया उन्हें जानती है। उनका नाम था लियो टॉल्स्टॉय, पर हमारे देश में उन्हे

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बेशक दंगल बेहतरीन फिल्म लेकिन नॉनवेज को बढ़ावा देने के आमिर के प्रयास घृणित

5 जनवरी 2017
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इन दिनों दंगल फ़िल्म की चर्चा सर्वत्र सुनी जा रही हैं, तो जा पहुंचे हम आज सूरत के 'V.R मॉल' के 'INOX' मल्टीप्लेक्स में, जहां प्रातःकालीन शो में आमिरखान, साक्षी तंवर आदि अदाकारों द्वारा अभिनित 'दंगल' फ़िल्म देखन

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पर्यावरण का करना ख्याल

4 जून 2017
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एक वृक्ष दस पुत्रो के समान होता है, अतः अगर हम एक वृक्ष काटते है तो हमे दस मनुष्यों की हत्या का पाप लगता है। इसलिए हमने वायु प्रदान करने वाले वृक्ष को नही काटना चाहिए। जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया,

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