shabd-logo

'काबिलियत' का चौकाने वाला सच

15 अगस्त 2016

802 बार देखा गया 802

नमस्कार संजय जी,


आज तक के तेज चैनल पर आप जी की पत्रकार वाली कहानी सुनी बेशक आप एक महान पत्रकार हैं इस कारण और कुछ लोगों को यह कहानी मजेदार लगी होगी क्योंकि वो कहानी का एक पहलू सुन रहे थे और आप सुना रहे थे।

कहानी का दूसरा पहलू जिससे शायद आप भी अवगत होंगे थोड़ा बताने का प्रयास करता हूँ, पर आपकी तरह एक महान पत्रकार नहीं हूँ इसलिए शायद उतने बढ़िया तरीके से सामने ना रख पाऊं, उसके लिए माफी चाहूंगा ।


कहानी के मुख्य पहलू :

1.अंग्रेजी का ज्ञान : अंग्रेजी एक विश्व भाषा है मां सरस्वती की कृपा से जिसे इस भाषा में महारत हासिल हो जाती है वह हर क्षेत्र में अग्रीण हो जाता है।

"भीम साहब अंबेडकर जी ने एक बार कहा था अंग्रेजी शेरनी का दूध है जो पीएगा दहाड़ेगा"

वास्तविकता : अंग्रेजी जो सरकारी स्कूलों में पढ़ाई जाती है और जो पब्लिक स्कूलों में पढ़ाई जाती है उसमें साहब बहुत फर्क है।

कैसे ?


1. सरकारी स्कूलों में छटी कक्षा का विद्यार्थी This is a ball, This is a bat, पढ़ना सीखता है तो साहब तब तक पब्लिक स्कूल का छटी जमात का बच्चा अंग्रेजी का अखबार पड़ने लायक हो जाता है।

कारण यह है कि पब्लिक स्कूलों में हिन्दी को छोड़कर सभी विषय अंग्रेजी भाषा में होते हैं और मां बाप के भी पढ़ा लिखा होने के कारण बच्चे ढंग से अंग्रेजी सीख पाते हैं।

इसमें सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का क्या कसूर अंग्रेजी भाषा का जितना कार्य साधक ज्ञान उन्हे होता है वह हर यथा संभव बच्चो को पड़ाने का प्रयास करते हैं। बच्चे ही ना सीखें तो इसमें घूस देकर सरकारी टीचर बने अध्यापकों का क्या कसूर उनका जीवन तो सफल हो गया सरकारी अध्यापक बन के बच्चे पढ़ें या ना पढ़ें, उन्हें तनख्वाह समय पर मिल ही जानी है।


खुद में भी सरकारी स्कूल का विद्यार्थी रहा हूँ इसलिए कुछ सच्चाईयों को आपके सामने रखने का प्रयास करता हूँ।


1. सरकारी स्कूल के अध्यापकों तथा पब्लिक स्कूल के अध्यापकों का अंग्रेजी टेस्ट करवा कर देख लें। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

2.आपके मत अनुसार पड़ाई तो हर स्कूल में अच्छी होती है बस बच्चे में पढ़ने की लगन होनी चाहिए एक दम सत्य बात है साहब लगन बहुत जरूरी है, पर क्या में जान सकता हूँ कि फिर क्यों सरकारी स्कूलों के अध्यापक अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ाते हैं . नेताओं के बच्चे विदेशों में क्यों पड़ते हैं, आपके खुद के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं या पब्लिक अगर पब्लिक में पढ़ते हैं तो क्यों ?


केवल लगन को आगे रखकर आप लोग वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ सकते।
एक बात और बता दूं साहब सरकारी स्कूलों में कोई अमीर परिवारों के बच्चे नहीं पढ़ते साहब यह उन घरों से आते हैं जिनमें आर्थिक तंगी के कारण रोज कलेश होता है और स्कूलों के लालची अध्यापक उनके पास टयूशन ना पढ़ने वाले बच्चों को रोज मारते है और नाम होता है भलाई के लिए मार रहे हैं


मेरे खुद के स्कूल में सिद्धू सर गणित पड़ाते थे और परमजीत सर इंग्लिश और दोनो लालची अध्यापक स्कूल के बाद बच्चो को टयूशन भी पढ़ाते थे। साहब सिद्धू सर अपने पीरियड में परमजीत सर के पास टयूशन पढ़ने वाले बच्चों की पीटाई करते थे और परमजीत सर अपने पीरियड सिद्धू सर के पास टयूशन पड़ने वालों की इतना ही नहीं यह दोनो लालची अध्यापक टयूशन फीस ना मिलने पर उन गरीब परिवारों के बच्चों को बुरी तरह मारते थे जिस कारण कई बच्चों ने स्कूल ही छोड़ दिया।


यह अध्यापक अपने अपने विषयों में बच्चो को फेल भी करते थे और मां बाप सोचते बच्चे गणित और अंग्रेजी में कमजोर है महाराज यहाँ लगन क्या करेगी। पहले पहल बालक बुद्धि होने के कारण अध्यापकों का यह शोषण मेरी समझ में नहीं आता था जब खुद 11वीं कक्षा में मुझे फेल होना पड़ा तो बात समझ आई कि उप्पल सर के पास टयूशन पढ़ने वाले सभी बच्चे क्यों पास हो गए, मैं क्यों फेल हो गया हां साहब मुझ में लगन की कमी थी या फिर हमारे पिता जी की उदारतावादी सोच के सभी स्कूलों में पड़ाइ एक समान होती है।

इतनी जदोजहद के बाद यदि कोई सरकारी स्कूल का बच्चा किसी मुकाम पर पहुंचता है तो वह वाक्य ही ताजिम के लायक है।
एक सच्चाई आप को और बता दूं साहब सरकारी स्कूल का 10 वी जमात का टोपर विद्यार्थी पब्लिक स्कूल के 9 वी फेल विद्यार्थी से अंग्रेजी में मुकाबला नही कर सकता।हमारे मुल्क में शिक्षा एक व्यापार बन गई है यह एक कड़वा सच है


अब बात करते हैं उस युवक की जो आपसे नौकरी की भीख मांगने आया था और अंग्रेजी की कमजोरी के कारण या अन्य किसी कारण से आपने उसे नौकरी नहीं दी एक महान पेशे में।
मैं उसके होंसले की दाद देता हूँ उसने सच कहकर अपनी नौकरी गवाई वरना चापलूस बनकर शायद नौकरी प्राप्त भी कर सकता था।
हम लोग किसी को भी जज करने के लिए केवल उसकी काबलियत को देखते हैं माफ करें साहब हम यह नहीं देख पाते कि इंटरव्यू में आने के लिए उसने किसी से पैसे तो उधार नहीं लिए , कहीं वह शख्स भूखा तो नहीं है,उसके घर के हालात कैसे हैं , घर से लड़कर तो नहीं आया कि आज नौकरी ना मिली तो आत्महत्या कर लेगा, बस इंग्लिश आनी चाहिए बस इंग्लिश.


दूसरी बात अगर कोई छोटा पत्रकार बिना तैयारी के किसी महान हस्ती का इंटरव्यू लेने गया है तो उसकी तैयारी ना करने के लापरवाही के अतिरिक्त क्या अन्य कारण रहे होंगे वो हम नही समझ सकते कि जो विचारा कह रह है मैडम जी इस बार इंटरव्यू दे दे आगे से पूरा ख्याल रखूँगा।
खैर बात करते हैं फिर से अंग्रेजी भाषा की तो जनाब यह मात्र एक भाषा है कोई हउवा नहीं है पंजाब के अनपड़ किसान जब विदेशो मे काम करने जाते थे तो उन्हें अंग्रेजी का कार्य साधक ज्ञान भी नहीं होता था महाराज बाद में उनके सामने आपके पढ़े लिखे युवा अंग्रेजी में टिक नहीं पाते थे यह एक सच्चाई है।


दूसरी बात अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले को ही केवल बुद्धिमान माना जाए यह हमारे समाज की सबसे पुरानी रूढ़ीवादी मानसिकता है।
हमें अंग्रेजी के अनमोल वचन अच्छे लगते हैं पर यदि हमें संस्कृत के श्लोकों का अर्थ समझ आता तो पत्ता चलता की हमारे पूर्वज हमें क्या खजाना देकर गए हैं जिन्हें समझकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने परमाणु बम तक का आविष्कार कर दिया।

Moral of the story

There's a story behind every person. There's a reason why they're the way that they are. Think about that before you judge someone!

संकल्प अविरजान

संकल्प अविरजान

दिलस्पीकस. कॉम पर भी अपनी स्टोरी शेयर करें .

31 अगस्त 2016

gsmalhadia

gsmalhadia

पड़ने के लिए आप जी का अभार

16 अगस्त 2016

रवि कुमार

रवि कुमार

भाई ये हमारे और तुम्हारे जैसे लोग ही समझ सकते है. मेरे मन की बात लिख दी . अंग्रेजी ने तो आज वाट ही लगा रखी है . जहां जाओ नौकरी के लिए आज अंग्रेजी बिना कोई नहीं पूछता , वो तो भला हो कुछ लोगों का जो आज भी काबिलियत को देखते हैं. अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए . .. आधा भारत तो अंग्रेजी से ही चलता है

16 अगस्त 2016

5
रचनाएँ
gsmalhadia
0.0
नमस्कार 🙏
1

शांति प्रस्ताव

22 जुलाई 2016
0
4
0

राम मंदिर तथा बाबरी मस्जिद                      विवाद सर्वप्रथम इस जमीन को लेकर हिन्दू मुस्लिम विवाद की शुरुआत 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल के दौरान तब हुई जब हिन्दू संप्रदाय के निर्मोही अखाड़े के संतो ने  ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद-इ-जन्मस्थान खड़ी है वहां कभी ए

2

मीडिया कैसा होना चाहिए

4 अगस्त 2016
0
1
0

लोकतंत्र के चार स्तंभ माने जाते हैं 1.संसद 2.राष्ट्रपति3.न्यायपालिका 4.मीडियामीडिया ऐसा होना चाहिए जो1.किसी राजनीति क संस्था, किसी औद्योगिक घराने या विदेशी ताकतों का गुलाम ना हो।2.जो खबरों को निष्पक्ष होकर दिखाए किसी भी प्रभाव से मुक्त होकर।3.जो केवल खबरें दिखाए किसी

3

Happy friendship day

7 अगस्त 2016
0
1
2

यूँ तो कई दोस्त बनते हैं इस दुनिया में पर वही दोस्त है ताज़ीम के क़ाबिल जिसने बुरे वक्त मैं भी आपका साथ छोड़ा ना हो।ताज़ीम - इज़्ज़त

4

आजादी के 71 साल

12 अगस्त 2016
0
2
2

हमारा स्वतंत्रता दिवस आने वाला है हमारे मुल्क को आजाद हुए 71 वर्ष हो जाएंगे। इन 71 सालों में आज हम कहाँ है आइए जरा इंडिया भारत और हिंदूस्तान के नजरिए से समझने का प्रयास करते हैं।इन 71 सालों में इंडिया ने उच्च वर्ग के समान खुब तरक्की की

5

'काबिलियत' का चौकाने वाला सच

15 अगस्त 2016
0
8
3

नमस्कार संजय जी, आज तक के तेज चैनल पर आप जी की पत्रकार वाली कहानी सुनी बेशक आप एक महान पत्रकार हैं इस कारण और कुछ लोगों को यह कहानी मजेदार लगी होगी क्योंकि वो कहानी का ए

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए