shabd-logo

व्यथा ,'सूरज' होने की .

16 अगस्त 2016

225 बार देखा गया 225

बिजली की लुका छुपी के खेल और ..
चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..
ताकते पीले लाल गोले को 
और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !
पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!



पर शाम आज , सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख 
एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया , 
सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल 
रोज़ दोपहरी आग उगलने वाले इस लाल गोले ने 
माथे पर पसरी पसीने की बूंदों ने 
कर दिया यूँ व्याकुल ...

पर पूछो तो भला क्यूं ?
आओ सुनाती हूँ , किस्सा सूरज और आग के रिश्ते का !




तस्वीर खींचते वक़्त तो बड़ा लाड़ आया उसके गोल मटोल होने पे ,
बाल हनुमान का भी ख्याल हो आया , 
लगा भर लूँ , हथेली में और 
बस ,अहा ...पर बोलो भला ...
सूरज की तपिश को मैं एक अदनी सी लड़की कैसे कैद करूँ !

दिल मेरा पिघला क्यूँ , ये तो बता दूं ! 



हाँ, तो वो ऐसे कि ,
सूरज दादा ने सारे जहां की गर्मी समेटी है खुद में 
पर उन के जलने की तक़लीफ़ का क्या ! 
वो रिश्ता जो आग और उनके अटूट साथ का है , 
जलते पतंगे की तरह जलते सूरज और 
..उसकी संगिनी आग का क्या !



रिश्ते कुछ ऐसे भी तो होते हैं न ,
जिनकी किस्मत सागर और तरिणी की जैसी कहाँ..
उनके ,जिनके शीतल प्रेम के मिलन में ,

तमाम प्यार की कहानियों की मिसालें जा मिलें !



यहाँ सिर्फ सारी कुदरत की ज़िम्मेदारियों का बोझ है 
प्रकृति चक्र की फ़िक्र है , याद है वो कहानी  
जब सूरज दादा के विलुप्त होने से सब थम गया था ...

और इसीलिए सूरज दा और उनकी साथी जलते , तड़पते हैं ,
मगर साथ हैं .



प्रेम शीतल हो , ज़रूरी तो नही , 
मुक़म्मल हो ,शायद ये भी नही

पर तपिश हर प्रेम की नियति है , ज़रूर !

प्रेम की अंतहीन इसी नियति के साक्षी हैं
सूरज दादा और उनकी साथी.

स्पर्श की अन्य किताबें

1

सफ़र और हमसफ़र : एक अनुभव

16 अगस्त 2016
0
2
1

 अकसर अकेली सफ़र करतीलड़कियों की माँ को चिंताएं सताया करती हैं और खासकर ट्रेनों में . मेरी माँ केहिदयातानुसार दिल्ली से इटारसी की पूरे दिन की यात्रा वाली ट्रेन की टिकट कटवाईमैंने स्लीपर क्लास में . पर साथ में एक परिवार हैबताने पर निश्चिन्त सी हो गयीं थोड़ी .फिर भी इंस्ट्रक्शन मैन्युअल थमा ही दीउन्होंने

2

' सशक्तिकरण,सत्ता,और औरत '

16 अगस्त 2016
0
0
0

 14 साल की और 21 साल की मेरी दो बहनें आई पीएस और आई ए एस बनना चाहती हैं . सुनकर ही अच्छा लगेगा .लडकियां जब सपने देखती हैं और उन्हें पूरा करने को खुद की और दुनिया की कमज़ोरियों से जीतती हैं तो लगता है अच्छा .बेहतर और सुखद. खासकर राजनीति ,सत्ता और प्रशासन के गलियारे और औरतें .वहां जहाँ औरतें फिलहाल ग्र

3

ताकता बचपन .

16 अगस्त 2016
0
2
1

अब वो नमी नहीं रही इन आँखों में शायद दिल की कराह अब,रिसती नही इनके ज़रिये या कि सूख गए छोड़पीछे अपने  नमक और खूनक्यूँ कि अब कलियों बेतहाशा रौंदी जा रही हैं क्यूंकि फूल हमारे जो कल दे इसी बगिया को खुशबू अपनी करते गुलज़ार ,वो हो रहे हैं तार तार क्यूंकि हम सिर्फ गन्दी? और बेहद नीच एक सोच के तले दफ़न हुए जा

4

व्यथा ,'सूरज' होने की .

16 अगस्त 2016
0
1
0

बिजली की लुका छुपी के खेल और ..चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..ताकते पीले लाल गोले को और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!पर शाम आज ,सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया , सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल रोज़ दोपहरी आग

5

शहर पुराना सा .

16 अगस्त 2016
0
2
0

 अंग्रेज़ीदा लोगों का मौफुसिल टाउन ,और यादों का शहर पुराना सा .कुछ अधूरी नींद का जागा,कुछ ऊंघता कुनमुनाता साशहर मेरा अपना कुछ पुराना सा .हथेलियों के बीच से गुज़रतेफिसलते रेत के झरने सा . कुछ लोग पुराने से ,कुछ छींटे ताज़ी बूंदों केकुछ मंज़र अजूबे सेऔर एक ठिठकती ताकती उत्सुक सी सुबह . सरसरी सवालिया निगाह

6

दो पत्ती का श्रमनाद !

16 अगस्त 2016
0
1
2

 पसीने से अमोल मोती देखे हैं कहीं ?कल देखा उन मोतियों को मैंनेबेज़ार ढुलकते लुढ़कतेमुन्नार की चाय की चुस्कियों का स्वादऔर इन नमकीन जज़्बातों का स्वादक्या कहा ....बकवास करती हूँ मैं !कोई तुलना है इनकी ! सड़कों पर अपने इन मोतियों की कीमतमेहनतकशी की इज़्ज़त ही तो मांगी है इन्होंनेसखियों की गोद में एक झपकी ले

7

बनैली बौराई तुम ?

16 अगस्त 2016
0
0
1

  तुम कितनी शांत हो गयी हो अब ,बीरान सी भी .वो बावली बौराई सरफिरीलड़की कहाँ छुपी है रे ? जानती हो , कितनी गहरी अँधेरी खाइयों मेंधकेल दी जाती सी महसूसती हूँ खुद कोजब तुम्हारे उस रूप को करती हूँ याद . क्यों बिगड़ती हो यूँ ?जानती हो न ,तु

8

तर्क-वितर्क और सत्य की खोज .

16 अगस्त 2016
0
3
0

 किसी भी घटना के कई पक्ष और पहलू होते हैं .हर घटना को अलग अलग चश्मों से गहरी या सतही पड़ताल के ज़रिये अलग अलग निष्कर्षों पर पहुंचा जा सकता है . निष्कर्ष वही होते हैं जो रायों में परिवर्तित हो जाते हैं और रायें पीढ़ी दर पीढ़ी , समाज की हर ईकाई के माध्यम से संस्थागत हो जाती हैं . और इस तरह वे अमूमन संस्कृ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए