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गुनाहों का देवता

21 अगस्त 2016

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अगस्त महीने की तीसरी किताब थी - गुनाहों का देवता। किताब के लेख क हैं धर्मवीर भारती। बहुत कुछ सुना था इस किताब के बारे में। इस किताब को मेरे जान-पहचान के बहुत लोगों ने recommend भी किया था। ये हिन्दी रोमैंटिक उपन्यासों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय उपन्यासों में एक है। इसके कई भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं, सौ से ज़्यादा संस्करण निकल चुके हैं और आज भी युवा वर्ग में हिन्दी प्रशंसकों की ये पसंदीदा किताबों में एक है। इस उपन्यास में प्रेम का एक बलिदानी रूप लेखक ने खींचा है और वो कितना सही, कितना गलत है इसे open-ended रख छोड़ा है। ख़ैर, इस उपन्यास के इतने लोकप्रिय होने के बारे में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है।


इस उपन्यास का पहला संस्करण 1949 में छपा था। तब देश का माहौल कुछ दूसरा था। उस समय की जो युवा पीढ़ी थी उसके चारों तरफ त्याग, बलिदान और आदर्श के लिए प्रेरणास्रोत बने क्रांतिकारी थे। उसी समय नई-नई आज़ादी मिली थी। दूसरे विश्वयुद्ध के ख़त्म होने और हिटलर के पतन के बाद जो दुनिया एक नए शीत-युद्ध की तरफ बढ़ रही थी वो दो धड़ों में बंट चुकी थी। एक तरफ अमरीका का घोर पूंजीवाद था जो ताज़ा-ताज़ा हिरोशिमा-नागासाकी पर बम गिरा चुका था और दूसरी तरफ था समाजवाद। भारत ने हाल ही में 200 साल के क्रोनी कैपिटलिज़्म से मुक्ति पाई थी। ऐसे में समाजवाद एक नैचुरल रोमांटिक थॉट था। भारत के शीर्ष नेता नेहरू, जो दुनिया के बड़े डेमोक्रैट्स में गिने जाते थे, खुद समाजवादी थे। भारती का ये उपन्यास ऐसे ही दौर में युवा पीढ़ी के भीतर का द्वंद्व है जिसे एक प्रेम कहानी की शक्ल में खींचा गया है।


कोई इंसान अपने कर्मों से महान बनता है लेकिन यदि कर्मों का प्रयोजन ही सिर्फ महानता को प्राप्त कर लेना हो जाये तो परिभाषा का एक नया संकट पैदा हो जाता है। महानता की परिभाषा का। कहानी का मुख्य किरदार है चंदर जिसकी परवरिश इलाहाबाद के शुक्ला जी के घर में होती है जो शिक्षा विभाग में बड़े अधिकारी हैं। उनकी एक लड़की है सुधा। चंदर और सुधा में एक अनकहा प्रेम है। शुक्ला जी के चंदर के ऊपर बहुत अहसान हैं। एक दिन शुक्ला जी चंदर को बुलाते हैं और उसे अपनी नई किताब के बारे में बतलाते हैं। किताब में भारत की जाति व्यवस्था की पुरज़ोर पैरवी की गई है। चंदर और सुधा की जाति एक नहीं है। और एक समय आता है जब वो शुक्ला जी के अहसानों के लिए अपने प्यार को बलिदान कर देता है। त्याग और बलिदान के आदर्शों पर चलने वाले के लिए ये बात बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि त्याग और बलिदान का उद्देश्य क्या है। गांधी ने त्याग किया अंग्रेजों का मनोबल तोड़ने के लिए। भगत सिंह ने बलिदान दिया देश में आज़ादी के जज़्बे को जगाने के लिए। वो दौर जब नेहरू और अंबेडकर हिन्दू कोड बिल की तैयारी कर रहे थे, एक त्याग जिसके अंतस में जाति-व्यवस्था के लिए रजामंदी छुपी है। उस त्याग के ऊपर एक लेप लगाया गया शुक्ला जी के अहसानों का। फिर एक और कवर चढ़ाया गया प्लेटोनिक लव का जिसमें दैहिक संबंध के बिना अपने प्रेम का चरम रूप दो प्रेमी दिखाना चाहते हैं। और इस प्लाटोनिक लव के नाम पर नायक का खुद को देवता समझ लेना उसे अंत आते आते तक गुनाहों का देवता बना देता है। लिखावट में बहुत पैनापन है। भारती कहानी में मेटाफोर गढ़ने और मेटाफोर में कहानी गढ़ने में उस्ताद नज़र आते हैं। आपको उनकी लिखावट को between the lines भी interpret करते चलना होता है। मसलन कई जगह फूलों का ज़िक्र है कि फूल सिर्फ पौधे में लगे रहें तो सुंदर हैं और अगर किसी ने उन्हें तोड़ के बालों में लगा लिया तो वो 'उपयोग' की श्रेणी में आ गया। प्यार और सेक्स के बीच संबंध क्या है? क्या शादी के पहले सेक्स करना पाप है? यथार्थ में घट रहे प्रेम को अनदेखा कर आदर्शवादी और आज्ञाकारी बने रहना इस उपन्यास के तमाम पात्रों की चारित्रिक विवशता नज़र आती है। अंत में सुधा को फूल तोड़ कर पूजा में चढ़ाते दिखाया गया है। उपन्यास में उस समय के शहरी मध्यम वर्ग की उदासीनता भी नज़र आती है। एक ऐसा मध्यम वर्ग जो आज़ादी के बाद एक आदर्श समाज की परिकल्पना तो करता है पर उसके सामाजिक जीवन में कोई बदलाव नहीं चाहता क्योंकि वो खुद जाति-व्यवस्था में कुछ ऊंचे पायदान पर है। शुक्ला जी उसी मध्यम वर्ग के प्रतीक हैं। एक ऐसा मध्यम वर्ग जो अपने गाँव को बहुत पहले छोड़ चुका है, अपनी जड़ों से कट चुका है और अब उन्हें सीमेंट, टाइल्स और कांक्रीट के नीचे तलाश कर रहा है। जब गाँव की एक लड़की जिसका नाम बिनती है चंदर से कहती है कि गाँव में तो शादी के पहले भी सेक्स हो जाता है और वहाँ पर ये इतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना आप लोगों ने इसे शहर में बना दिया है। शहरी मध्यम वर्ग के लिए ये outrageous है, क्योंकि उसकी जड़ें, जो दरअसल काल्पनिक हैं, वो तो ऐसी हो ही नहीं सकतीं।


कुल मिला के एक बहुत बढ़िया उपन्यास है। एक ऐसा उपन्यास जो ख़त्म हो जाने के बाद आपके भीतर कहीं दोबारा शुरू होता है।


इस उपन्यास को आप Amazon से खरीद सकते हैं।

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